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पुलिस से अकेले भिड़ने वाले चंद्रशेखर को कैसे मिली ‘आजाद’ की उपाधि?, यहां जानें…

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नई दिल्ली। चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्र संग्राम के वो सेनानी थे, जिन्होंने गुलाम भारत में जन्म लेने के बाद भी खुद को हमेशा आजाद ही रखा। उस दौर के युवाओं के मन में आज़ादी का अलख जगाने का काम करने वाले आजाद को भगत सिंह, बिस्मिल जैसे कई युवा अपना आदर्श और प्रेरणा मानते थे। उन्हीं के मार्गदर्शन उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया और अपनी जान मातृभूमि को न्यौछावर कर दी। चंद्रशेखर आजाद का नाम और मान जितना हिंदुस्तान में है, उतना ही ब्रिटेन में भी है। आज भी इंग्लैंड के लोग आजाद का नाम बेहद सम्मान के साथ लेते हैं। 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के ‘भावरा’ गांव में जन्में आजाद के पिता का नाम ‘पंडित सीताराम तिवारी’ और मां का नाम ‘जागरानी देवी’ था। 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार से आहत आजाद 1921 में यानी अपने स्कूली दिनों में ही स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे।

उन्होंने दिसंबर 1921 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया था, जिसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। जब उन्हें एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्र’ और अपने निवास को ‘जेल’ बताया था। तभी से उनके नाम के साथ ‘आज़ाद’ की उपाधि जुड़ गई। फरवरी 1922 में चौरी चौरा कांड में पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों पर गोलियां चलाईं थीं। इसके जवाब में थाने पर हमला करके 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया गया था। महात्‍मा गांधी ने कांग्रेस के किसी सदस्‍य से सलाह लिए बिना खुद ही असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, जिसके बाद गया कांग्रेस में राम प्रसाद बिस्‍म‍िल ने गांधी के इस कदम का जमकर विरोध किया और खफा होकर कांग्रेस से अलग हो गए। इसके बाद उन्‍होंने ‘हिंदुस्‍तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) नाम से एक क्रांतिकारी संगठन/पार्टी बना ली।

आंदोलन वापस लेने की बात से चंद्रशेखर आजाद भी नाराज हो गए। इसके बाद ‘मन्मथनाथ गुप्त’ ने आजाद की मुलाकात बिस्मिल से कराई। स्वतंत्रता की लड़ाई में बिस्‍म‍िल और आजाद के रास्‍ते एक थे। इसके बाद आजाद रामप्रसाद बिस्मिल की पार्टी HRA  में शामिल हो गए। 9 अगस्त, 1925 को ब्रिटिश राज के खिलाफ काकोरी ट्रेन डकैती हुई जिसमें आजाद भी शामिल थे। काकोरी की इस घटना के लिए राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा दे दी गई थी, लेकिन आजाद बच निकले। इसके बाद आजाद ने भगत सिंह के साथ मिलकर भारत के क्रांतिकारी काम किए। इसके बाद HRA का नाम बदलकर ‘हिंदुस्‍तान सोशलिस्‍ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ कर दिया गया।

साल 27 फरवरी, 1931 को आजाद ने इलाहाबाद के ‘अल्फ्रेड पार्क’ में केवल एक पिस्तौल और कुछ कारतूसों के साथ ब्रिटिश पुलिस से मुठभेड़ में अपनी जान गंवा दी। इस लड़ाई में जब आजाद के पास जब केवल एक गोली रह गई तो उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर खुद को सदा-सदा के लिए आजाद घोषित कर दिया। इलाहाबाद संग्रहालय में चंद्रशेखर आजाद की ये कोल्ट पिस्टल आज भी प्रदर्शित है।

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