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“शिक्षा कर्मी शासकीय सेवक नही” इस टिप्पणी के साथ अनुकम्पा नौकरी पाने वाली बहू को हाईकोर्ट से राहत

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बिलासपुर. ससुर की मौत के बाद बहू को दी गयी अनुकम्पा नियुक्ति शिक्षा विभाग ने इस आधार पर खारिज कर दी कि उसके पति और जेठ शिक्षाकर्मी के पद पर पदस्थ हैं। हाईकोर्ट ने विभाग के इस आदेश को गलत ठहराते हुए कहा कि ” शिक्षा कर्मी राज्य के अधिन सिविल पद नही धारण करते, लिहाजा अनुकम्पा नियुक्ति सही हैं।” इसके साथ ही बहू को बर्खास्त करने के शिक्षा विभाग द्वारा दिये गए आदेश को हाइकोर्ट ने निरस्त कर दिया। कोर्ट ने बहू को बहाल करने व बर्खास्तगी समय का भी समस्त सेवा सम्बन्धी लाभ देने के निर्देश दिए हैं।

जिला सूरजपुर के भैयाथान ब्लाक में स्व. मनमोहन सिंह पवार विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ थे। सेवा में रहने के दौरान उनकी मृत्यु 16 दिसम्बर 2018 को हो गई । इसके बाद उनकी बहू श्वेता सिंह ने राज्य शासन के 2016 के परिपत्र के आधार पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिये आवेदन किया था। 2016 के परिपत्र में यह प्रावधान किया गया था कि यदि परिवार में कोई शासकीय सेवक नही है तो ससुर की मृत्यु के पश्चात बहू को अनुकम्पा नियुक्ति की पात्रता होगी।

आवेदनकर्ता श्वेता सिंह के आवेदन का परीक्षण कर लगभग ढाई वर्ष बाद 2 जून 2021को उनको सहायक ग्रेड तीन में नियुक्ति आदेश जारी करते हुए बिलासपुर जिले में नियुक्ति दी गयी। उनकी नियुक्ति को गलत बताते हुए रजनीश साहू नामक व्यक्ति द्वारा 20 जुलाई 2021 को राज्य शासन एवं शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों को शिकायत की गई। साहू ने अपने शिकायत में बताया कि श्वेता सिंह ने नियुक्ति के समय इस तथ्य को छुपाया हैं कि उनके पति व जेठ पहले ही शिक्षा कर्मी के पद पर पदस्थ हैं। व परिवार में कोई शासकीय सेवक न होने का हवाला दे कर गलत तरीक़े से अनुकम्पा नियुक्ति प्राप्त कर ली हैं।

शिकायतकर्ता रजनीश साहू की शिकायत पर जिला शिक्षा अधिकारी बिलासपुर ने तखतपुर बीईओ के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई। जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर श्वेता सिंह को 26 अक्टूबर 2021 को जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा नोटिस जारी किया गया। नोटिस का जवाब दिनांक 30 अक्टूबर 2021 को देते हुए श्वेता सिंह ने बताया कि उनके जेठ अखिलेन्द्र प्रताप सिंह 16 जुलाई 2010 से शिक्षाकर्मी वर्ग दो के पद पर पदस्थ हैं और उनके पति बसंत प्रताप सिंह 13 अगस्त 2013 से शिक्षाकर्मी वर्ग एक के पद पर पदस्थ है। उनके जेठ अखिलेन्द्र की नियुक्ति तखतपुर ब्लाक के मेड़पार स्कूल व उनके पति की नियुक्ति बिलासपुर के राम दुलारे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में है। जब उनके ससुर की मौत हुई थी व उन्होंने अनुकम्पा नियुक्ति के लिये आवेदन दिया था उस समय उनके पति व जेठ का संविलियन नही हुआ था। लिहाजा वह शासकीय सेवक नही थे।

उनके जवाब को अमान्य करते हुए जिला शिक्षा अधिकारी ने उन्हें 23 नवम्बर 2021 को सेवा से मुक्त कर दिया। जिसके खिलाफ श्वेता सिंह ने हाइकोर्ट में याचिका लगाई। याचिका में सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट के कई न्याय दृष्टान्तों को रखा गया। साथ ही यह बताया गया कि नियुक्ति के लिये आवेदन देने के समय उनके पति व जेठ शिक्षाकर्मी थे व शिक्षा कर्मी शासकीय सेवक की श्रेणी में नही आते। विभाग द्वारा अनुकंपा नियुक्ति देने में ढाई वर्ष की देरी की गई जिसमें उनका कोई दोष नही है। उनके जेठ का संविलियन 1 जुलाई 2019 को हुआ है, व उनके पति का संविलियन 1 नवम्बर 2020 को हुआ है। और इसके पहले ही उन्होंने अनुकम्पा नियुक्ति के लिये आवेदन दे दिया था।

दोनो पक्षो की दलिले सुनने के बाद जस्टिस संजय के अग्रवाल ने यह आदेश पारित किया कि ” शिक्षाकर्मी राज्य के अधीन सिविल पद धारण नही करते है, इसलिये वह शासकीय सेवक नही है और इस आधार पर अनुकम्पा नियुक्ति को रद्द नही किया जा सकता” इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता श्वेता सिंह को सेवा में बहाल करने व बर्खास्तगी अवधि का सेवा सम्बंधित समस्त लाभ देने के निर्देश दिए।

नजीर बनेगा हाइकोर्ट का फैसला

हाइकोर्ट का शिक्षाकर्मियों को शासकीय सेवक नही मानने का फैसला नजीर बनेगा। व अन्य मामलो में भी इस आदेश को इस्तेमाल किया जा सकेगा। हालांकि अब राज्य के अधिकतर शिक्षाकर्मियों का संविलियन हो चुका है व अब जो भी भर्ती हुई है वो सीधे शिक्षा विभाग में ही शिक्षक के पद पर हुई हैं।

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