- कर्मिक भुख हड़ताल के 108 वे दिन छ.ग श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भरत मिश्रा व श्रीराम बरनवाल मंच पर बैठे।
भरत मिश्रा/चिरमिरी/ कोरिया। छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भरत मिश्रा एवं सम्भागीय अध्यक्ष सरगुजा श्रीराम बरनवाल गुरुवार को जिला मुख्यालय बनाओ संघर्ष समिति कर्मिक भुख हड़ताल के 108 वे दिन मंच पर बैठे, अभी तक मंच बैठे लोगों का कहना है कि यह आंदोलन चिरमिरी का अंतिम आंदोलन मानकर चल रहे है, जिसके कारण इस आंदोलन में स्वमेव ही लोग जुड़ रहे है। उल्लेखनीय रहे कि चिरिमिरी क्षेत्र अपने अस्तित्व की लड़ाई के आखिरी दौर से गुजर रहा है, जब चिरिमिरी में नौ-नौ कॉलरी संचालित थी, तो लोगों ने केवल चिरमिरी के रस से खूब सराबोर होकर लुत्फ उठाया उस समय चिरिमिरी की आबादी सवा लाख से ऊपर थी,तब चिरिमिरी में नौ खदाने संचालित थी यहाँ का कोयला पूरे देश को बिजली से रोशन कर रहा था, सारे भारत के कल कारखानो में चिरमिरी का कोयले कि खपत हो रही थी, आज चिरिमिरी में केवल तीन खदानों का संचालन हो रहा है, वह भी पता नही कब बन्द हो जायेगा, और यह सगुफ़ा चलाया जा रहा है कि चिरमिरी का कोयला समाप्ति के दौर में है, इसलिये यहाँ की खदानों को बन्द कर यहा के श्रमिकों को बाहर अन्यत्र खदानो में स्थानांतरित किया जा रहा है, जबकी असलियत इससे परे है, जबकि बताते है की चिरिमिरी क्षेत्र में 40 से 50 वर्षों का कोयला है, लेकिन प्रबंधन अधिकारीयो का कहना है कि कोयला खत्म हो चला है,ठीक है अगर कोयला समाप्त हो गया है तो कोरिया जिले का एक मात्र नगर निगम चिरमिरी जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, वही जिला मुख्यालय बनाया जाय, जिससे यहां हो रहे पलायन पर विराम लग सके और जो लोग अपने रोजगार के वजह से बाहर जा रहे है, यही रुक कर अपनी रोजी रोटी चला सके। वैसे भी छत्तीसगढ़ में जहाँ भी नगर निगम हैं वही निगम के अन्दर ही जिला मुख्यालय है, इस लिहाज से भी चिरमिरी क्षेत्र के अंतर्गत जिला मुख्यालय बनाया जाये, वैसे भी जिले की सबसे बडी आबादी वाला क्षेत्र चिरमिरी को अपने स्वाभिमान को बचा सके,वैसे भी चिरमिरी को लोग अपनी मतलब निकालने के लिए इस्तेमाल किये है, और मतलब निकल जाने के बाद रस चूस कर छोड़ दिये, चाहे वह श्रमिक संगठन ट्रेड यूनियन के नेता हो या,राजनैतिक पार्टीया हो,सभी ने चुनाव के समय अपने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया, बड़े बड़े वायदे किये, एक राष्ट्रीय पार्टी ने तो यहां ढाई हजार करोड़ का पावर प्लांट ही लगवा रहे थे, तो दूसरी राष्ट्रीय पार्टी ने मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा कर दी, लेकिन हुआ कुछ नही,1998 सरगुजा जिला बहुत बड़ा है,करके पश्चिम सरगुजा का मुख्यालय बनाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने दो रिटायर जजो की एक कमेटी बनाई जिसे दूबे आयोग का नाम दिया गया था, उस दो सदस्यीय दुबे आयोग की कमेटी एक महीने घूमने के पश्चात अपनी रिपोर्ट बना कर भेज दिया है, जिसमें यह स्पष्ट लिखा था कि जिला मुख्यालय चिरिमिरी साडा क्षेत्र के अंतर्गत मालवीय नगर में बनाया जाये। लेकिन ऐसा नही हुआ, नये जिले की घोषणा हुई, स्तिथि अभी भी लगभग वैसे ही है, अभी भी पचास करोड़ की लागत से बनने वाला जिला मुख्यालय तत्कालीन व्यवस्था के लिए 50 लाख शासन द्वारा खर्च कर पोड़ी जगन्नाथ मंदिर के पास बनाया जा सकता है, या फिर चिरिमिरी मनेन्द्रगढ़ के बीच साजा पहाड़ परसगड़ी के बीच बनाया जा सकता है। लेकिन सभी ने केवल चिरमिरी से अपना मतलब ही हल किया,,तभी तो किसी ने ठीक ही कहा है कि- चिरिमिरी है सबकी पर चिरिमिरी का कोई नही, केवल लोग चिरमिरी को इस्तेमाल ही किये, वैसे देखा जाये तो लोग इसे अपना आखिरी आंदोलन मानकर यहाँ के सब लोग स्वमेव ही अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने, चिरिमिरी जिला मुख्यालय बनाओ संघर्ष समिति में आ रहे है,और यह दृढ़ता के साथ कि जिला मुख्यालय यही बने, जिससे पलायन बन्द हो।