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गौ आधारित प्राकृतिक खेती से ही जल संरक्षण और सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढ़ सकता है – युवा किसान किशोर राजपूत

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नवागढ़ ब्यूरो (संजय महिलांग ) | एक ग्राम उपजाऊ मिट्टी में 10 करोड़ सुक्ष्म जीवाणु,रासायनिक खाद से 1 करोड़ से कम हो गई संख्या पूरी दुनिया इस समय मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग के कारण से गंभीर जल समस्या से जूझ रहा है इसका मुख्य कारण सिर्फ सूखा नहीं है,पिछले कई सालों से हमारा वाटर लेवल नीचे-नीचे जा रहा है, अच्छी बरसात होने पर वाटर लेवल में कुछ सुधार आता है, परन्तु हर साल नीचे जा रहा है, जब तक इस समस्या पर विचार नहीं किया जायेगा, तब तक पानी की समस्या बनी रहेगी |

नवागढ़ के युवा किसान किशोर राजपूत ने किसानो से अपील की हैं उन्होने कहा कि

जमीन में जब तक पानी नहीं जायेगा वाटर लेवल नहीं बढ़ सकती,आज की स्थिति यह है की बरसात का पानी ऊपर से बह जाता है,जमीन के अंदर नहीं उतरता, इसका मुख्य कारण है, रासायनिक खादों का इस्तेमाल, इस बात को आपको थोड़ा विस्तार से समझना जरुरी है, जमीन में पानी क्यों नहीं जा रहा, अगर इस बात को हम समझ लेंगे, तभी हम इस समस्या से निजात प सकेंगे |

उन्होने बताया कि हमारे वैज्ञानिकों ने समय-समय पर किये शोध बताते है,की एक ग्राम उपजाऊ मिटटी में कम से कम 10करोड़ सूक्ष्म जीवाणु होते है, आज हमारी एक ग्राम मिटटी में एक करोड़ या उससे कम जीवाणु संख्या है,कहाँ गए जीवाणु, उनकी संख्या इतनी कम क्यों हो गई, इन जीवाणु का वाटर लेवल से क्या सम्बन्ध है, इन सब बातों को जब हम विस्तार से जान लेंगे, हमारा वाटर लेवल प्रॉब्लेम अपने आप सुलझ जायेगा |

किशोर राजपूत ने बताया कि रासायनिक खाद में जैसे यूरिया खाद में 46 प्रतिसत यूरिया तथा 54 प्रतिसत साल्टी मटेरियल होता है, उसी प्रकार सिंगल सुपर फास्फेट खाद में 84 प्रतिसत साल्टी मटेरियल होता है, जब हम ये खाद मिटटी में डालते है, साल्टी मटेरियल हमारी मिटटी में उपलब्ध सूक्ष्म जीवाणु को मार डालता है, 1968 से रासायनिक खाद डाला जा रहा है, धीरे-धीरे सूक्ष्म जीवाणु मरते जा रहे है, सूक्ष्म जीवाणु जीवाणुओं के कारण मिटटी नरम, भुसभुसित बनी रहती है, अब मिटटी कड़क तथा पत्थर के जैसी बन गई है, इसमें आक्सीजन का प्रमाण कम से कम हो गया है |

रासायनिक खादों से मिटटी में गर्मी बढ़ती गई, आक्सीजन की मात्रा कम से कम होती गई, इसलिए मिटटी में जो केंचुए 1.5 से 2 फुट के लेयर में काम करते थे वो केंचुए 2 से 3 मीटर नीचे जाकर समाधिस्त हो चुके है, हमारी जमीन की वाटर लेवल का सम्बन्ध सूक्ष्म जीवाणु तथा केंचुए से है, क्योंकि एक एकड़ क्षेत्र में कम से कम 40,000 केंचुए काम करते है, प्रत्येक केंचुआ हर दिन 1.5 से 2 फुट गहरे 2 छेद बनाता है, एक एकड़ क्षेत्र में हर दिन कम से कम 80,000छेद तैयार होते है |

उनके अनुसार इन छेदों के कारण बरसात का पानी जमीन में नीचे तक जाता है, जिन खेतों की मिटटी उपजाऊ होती है, उन खेतों में बरसात का पानी ज्यादा समय तक भरा नहीं रहता, जिन खेतों की मिटटी ख़राब है वहां पानी खेतों में भरा रहता है, तथा तथा नदी नाले में बाह जाता है, खेतों में पानी मिटटी के नीचे ना उतरने के कारण ही भयानक बाढ़ भी आती है |

मतलब अगर हमें पानी की दिन प्रतिदिन भयावह होती समस्या पर नियंत्रण पाना है, तो रासायनिक खादों का इस्तेमाल बंद करना पड़ेगा, रासायनिक खादों का इस्तेमाल बंद होने के बाद जमीन में ठन्डे वातावरण की निर्मिति होते ही केंचुए ऊपर आकर काम करने लगेंगे, केंचुए मिटटी में छेद बनाएंगे और बरसात का सारा मतलब ज्यादा से ज्यादा पानी मिटटी में नीचे उतर जायेगा |

किशोर ने कहा कि सूक्ष्म जीवाणुओं की भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, इन जीवाणुओं की प्रत्येक 13 से 18 मिनिट में एक नई प्रजाति पेशी विभाजन द्वारा जन्म लेती है, इनकी जन्म प्रक्रिया इतनी फ़ास्ट है की सिर्फ 24 घंटे में एक जीवाणु से 1 करोड़ 60 लाख जीवाणु बन सकते है, सिर्फ मिटटी में जीवाणु रह सकें ऐसे वातावरण की निर्मिति की आवश्यकता है |

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