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आस्था का महापर्व छठ सोमवार को शुरू हो कर उत्साह पूर्ण समाप्ति तक पहुंचा

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  • कलेक्टर , एसपी कंकाली तालाब पहुंचकर कंकाली तालाब के सौंदर्य करण जल्द करवाने का दिया आश्वासन

अक्कू रिजवी/कांकेर : कांकेर ज़िले में छठ महापर्व कांकेर शहर तथा जिले में भी धूमधाम से मनाया जाता है। चार दिनों के इस पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। यहां छठ पर्व में पहले दिन महिलाओं ने डुबकी लगाने के बाद प्रसाद ग्रहण किया और पर्व की शुरुआत की। मंगलवार को पर्व का दूसरा दिन खरना मनाया गया। सोमवार को व्रती महिला-पुरुष खाने के बाद उपवास पर चले गए। कल शाम खरना मनाया गया, जिसके लिए खास तरह की खीर बनाई गई, जिसमें चीनी की जगह गुड़ का प्रयोग होता है। कई जगह गन्ने के रस से खीर बनाई जाती है। प्रसाद में खीर के अलावा केला चढ़ाया । सबसे पहले व्रती महिलाएं इस प्रसाद का सेवन कीं। बताया जाता है नियम यह है कि व्रती महिलाएं जब खरना का प्रसाद ग्रहण करना शुरू करती हैं और इस दौरान उनके कानों में आवाज पहुंच जाए तो वह प्रसाद ग्रहण करना वहीं रोक देती हैं। उसके बाद नहीं खाती हैं। आज खरना की शाम के बाद व्रती पहले अर्घ्य और दूसरे अर्घ्य के बाद ही फिर अन्न ग्रहण करती हैं। इस दौरान पूरी तरह से निर्जला रहती हैं।

नहाय-खाय के साथ शुरू हुए छठ के महापर्व में साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते हुए, यह पूजा की जाती है। नहाय-खाय के साथ ही घर में खाना बिना नमक वाला बनता है, इसमें सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है। स्नान के बाद छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है। प्रसाद में अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती। पहले व्रती प्रसाद ग्रहण करता है और उसके बाद पूरे परिवार और आसपास के लोगों को प्रसाद दिया जाता।

छठ पूजा एक ऐसा पर्व है, जिसे पूरे परिवार को एकसाथ मिलकर मनाया जाता है। साफ-सफाई, पवित्रता और पर्यावरण… इन बातों का ख्याल रखना होता है। इधर-उधर छूना मना है। इसमें कोरोना से भी अधिक सख्त नियम हैं। किसी को छुएं तो हाथ धोना अनिवार्य है। अगर कोई शौचालय जाता है तो उसे नहाना होता है, तभी वह पर्व में शामिल होता है। इस पर्व के बहुत सख्त नियम हैं। व्रती महिलाओं की आस्था और उनका छठ मईया के प्रति विश्वास ही है कि चार दिनों तक उपवास रखते हुए पर्व को करती हैं।

बुधवार को तीसरे दिन शाम का अर्घ्य

महापर्व के तीसरे दिन शाम को सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन, इससे पहले व्रती महिलाएं घर में इसकी तैयारी करती हैं। परिवार के सदस्य पूरे नियम के साथ प्रसाद बनाने में लग जाती हैं। प्रसाद के लिए मुख्य रूप से ठेकुआ बनाया जाता है। ठेकुआ बनाने के लिए व्रती महिलाएं खुद से गेहूं साफ करती हैं, धोती हैं और उसे पिसाया जाता है। पर्व में आमतौर पर मिट्टी के चूल्हे पर ही पकवान बनाया जाता है, लेकिन आजकल गैस चूल्हे पर भी बनता है। हालांकि ऐसे चूल्हे पर बनता है, जो सिर्फ पर्व में इस्तेमाल हो। जब पकवान तैयार हो जाता है तो उसे सूप और डाले में रखा जाता है, जिसमें पकवान के अलावा कई प्रकार के फल होते हैं। सेब, नारंगी, गन्ना, पानी फल, नींबू आदि प्रसाद में चढ़ाया जाता है। इसके बाद अर्घ्य के लिए बने घाट पर व्रती सहित पूरा परिवार पहुंचते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करते हैं।

गुरुवार चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य

पर्व के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जो इस बार गुरुवार 11 नवंबर को होगा। घाट पर बच्चे, बूढ़े, जवान सभी एक साथ पहुंचते हैं। जहां पर शाम को अर्घ्य हुआ था, उसी घाट पर सुबह का अर्घ्य भी होता है। अर्घ्य में लोग दूध और जल सूर्य देवता को अर्पित करते हैं। सुबह के अर्घ्य के बाद व्रती महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं, जिसमें पहले वो पानी में घोलकर चीनी और नींबू का शरबत लेती हैं। बाद में अन्न ग्रहण करती हैं। इसके साथ ही यह व्रत और छठ पूजा संपन्न हो जाती है। कांकेर में यह महा पर्व विशेष रूप से कंकालिन तालाब के घाट पर संपन्न हुआ।आज तीसरे दिन कांकेर जिले के कलेक्टर तथा पुलिस अधीक्षक ने घाट पर पहुंचकर सबको छठ महापर्व की बधाइयां दीं, जिससे उपस्थित लोगों में हर्ष की लहर दौड़ गई। कल सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर महा पर्व की समाप्ति होगी, जब महिलाएं अपना निर्जला उपवास तोड़ेंगी।

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