प्रांतीय वॉच

ठंडे पानी में पकने वाले मैजिक राइस की जैविक खेती कर रहे किशोर

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नवागढ़ ब्यूरो (संजय महिलांग ) | नगर पंचायत नवागढ़ के युवा प्रगतिशील किसान किशोर राजपूत मैजिक धान की खेती कर रहे हैं! बेमेतरा जिला के नवागढ़ में रहने वाले 35 वर्षीय युवा किसान, किशोर राजपूत प्रदेश के सभी किसानों के लिए मिसाल हैं। पिछले कई वर्षों से वह खेती में अलग-अलग तरह के नवाचार कर रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने परंपरागत रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती की शुरूआत की, जिसमें वह न सिर्फ सामान्य फसलें बल्कि औषधीय फसल भी कर रहे हैं। अब पिछले 3 साल से उन्होंने अपनी और अपने यहाँ की खेती को एक अलग दिशा दी है। वह काला गेहूँ, काला धान और अब मैजिक धान की खेती कर रहे हैं।

किशोर इन दिनों धान और गेहूँ की नयी किस्मों की खेती को लेकर सुर्खियों में हैं। किशोर बताते हैं कि 12वी कक्षा तक की पढ़ाई के बाद वह अपनी पुश्तैनी ज़मीन संभालने लगे। उनके पास लगभग 2 एकड़ ज़मीन है जिस पर वह शुरू में परंपरागत धान, गेहूँ, दलहन आदि की खेती करते थे। आगे चलकर जब जैविक खेती के प्रति किसानों में जागरूकता आई तो उन्होंने भी जैविक की राह अपनाई।

किशोर ने बताया, “मैं अलग-अलग जगहों की यात्रा करता हूँ। खासकर जब भी कहीं कृषि मेला लगता है तो मैं वहाँ जरूर जाता हूँ। कृषि मेला में आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है। देशभर से किसान आते हैं, वैज्ञानिक आते हैं- आप उन्हें अपने बारे में बताते हैं, उनसे सीखते हैं और ऐसे ही, हम आगे बढ़ सकते हैं।”

कृषि से संबंधित इन आयोजनों के दौरान किशोर राजपूत को रायपुर से काले गेहूँ के बारे में पता चला। इसी तरह, हिमाचल प्रदेश में उन्हें काले धान और असम से मैजिक धान की किस्मों के बारे में पता चला। किशोर ने इन तीनों ही किस्मों के बारे में विस्तार से जाना और अपने खेतों में ट्रायल करने की ठानी।

वह अब तक इन काले गेहूँ,काले धान की खेती तीन बार कर चुके हैं। तीनों ही बार उन्हें काफी अच्छा नतीजा मिला है और अब मैजिक राइस की खेती कर रहे हैं। वह अपने इलाके के अन्य किसानों को भी इन किस्मों के बारे में जागरूक कर रहे हैं।

काले गेहूँ के बारे में उन्होंने बताया, “गेहूँ की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्रीफूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (नाबी) ने विकसित किया है। इसका नाम है नाबी एमजी और नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। काले गेहूँ में एंथोसाएनिन नाम के पिगमेंट होते हैं। एंथोसाएनिन की अधिकता से फलों, सब्जियों, अनाजों का रंग नीला, बैगनी या काला हो जाता है।”

एंथोसाएनिन नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट भी है। इसी वजह से यह सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। आम गेहूँ में एंथोसाएनिन महज पाँच पीपीएम होता है, लेकिन काले गेहूँ में यह 100 से 140 पीपीएम के आसपास होता है। एंथोसाएनिन के अलावा काले गेहूँ में आयरन की मात्रा भी प्रचुर होती है। काले गेहूँ में आम गेहूँ की तुलना में 60 फीसदी आयरन अधिक है।

इसी तरह से, अभी 50 एकड़ में काला धान भी वह उगा रहे हैं, जिसकी व्यापक खेती मणिपुर में होती है। काले चावल में भी एंथोसाएनिन की मात्रा काफी अधिक होती है। साथ ही, इसमें कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा काफी कम होती है और इसलिए यह शुगर के मरीज़ों के लिए बहुत ही अच्छा विकल्प माना जा रहा है। काला गेहूँ और काला चावल, दोनों ही औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इसलिए बाज़ार में इनकी अच्छी-खासी माँग है।

किशोर की माने तो दोनों की ही खेती करना बहुत ही आसान है। कोई भी किसान सिर्फ जैविक तरीकों से भी इन दोनों की अच्छी फसल ले सकता है।

“अक्सर शुरू में लोगों को डर होता है कि अगर हमारे इलाके में यह नहीं हुए तो? इसलिए किसानों को ट्रायल के लिए कम ज़मीन पर इन्हें उगाना चाहिए। जैसे शुरू में मैंने मात्र एक एकड़ से शुरुआत की। अब मैं एक एकड़ में काले गेहूँ उगा रहा हूँ। 15 नवंबर से आप इसकी बुआई शुरू कर सकते हैं। सामान्य गेहूँ की तरह ही आप इसकी भी खेती कर सकते हैं। बस आपको कोई भी रसायन इस्तेमाल नहीं करना है। लगभग 140-160 दिन में यह तैयार हो जाता है,” उन्होंने आगे बताया |

काला गेहूँ और काले धान की किस्मों के अलावा, वह आधा एकड़ में मैजिक धान की खेती भी कर रहे हैं। चावल की यह किस्म असम में प्रचलित है और इसे वहां जीआई टैग भी प्राप्त है। वह बताते हैं कि मैजिक धान की खासियत है कि इस धान के चावल को किसी रसोई गैस या चूल्हा पर पकाने की जरूरत नहीं है। इसे महज़ सादे सामान्य पानी में रखने के 45-60 मिनट के भीतर चावल तैयार हो जाता है। यह खाने में सामान्य चावल की तरह ही है लेकिन इसे पकाने के लिए आपको गैस, आग या कुकर आदि की ज़रूरत नहीं है |

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