नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर पति-पत्नी साथ नहीं रहते हैं तो उन्हें एक दूसरे को छोड़ना ही बेतहर है. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश उस याचिका पर दिया जिसमें दोनों 1995 के बाद से मजह 5 दिन ही साथ रहे हैं. इस मामले में हाईकोर्ट ने तलाक का आदेश दिया था. जिसके खिलाफ पत्नी सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने महिला से कहा है कि उसे व्यावहारिक होना चाहिए. वे पूरी जिंदगी अदालत में एक-दूसरे से लड़ते हुए नहीं बिता सकते हैं. दोनों की उम्र 50 और 55 साल है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि गुजारा भत्ते को लेकर दंपती आपस में फैसला लें. कोर्ट ने पत्नी की याचिका पर दिसंबर पर विचार करने का फैसला लिया है. महिला की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि हाईकोर्ट की ओर से तलाक को मंजूरी देना गलत था. वकील का यह भी कहना है कि हाईकोर्ट ने इस बात की भी अनदेखी की है कि समझौते का सम्मान नहीं किया गया है. इसके अलावा पति की ओर से पेश वकील ने कहा है कि 1995 में शादी करने के बाद से ही उसका जीवन बर्बाद हो गया है. उसका कहना है कि दोनों का वैवाहिक जीवन महज 5 या 6 दिन का ही था.
पति के वकील ने कहा है कि क्रूरता और शादी के परिवर्तनीय टूट के आधार पर तलाक की अनुमति देना बिलकुल ठीक था. उनकी ओर से कहा गया है कि पति अब पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता है और वह उसे गुजारा भत्ता देने का राजी है. पति की वकील ने कोर्ट में दावा किया है कि 13 जुलाई 1995 को शादी के बाद उसकी पत्नी ने उनपर अगरतला स्थित अपने घर में घर जमाई बनकर रहने का दबाव डाला था. वह संपन्न परिवार से है. उसके पिता आईएएस अधिकारी थे. जब पति नहीं माना तो वह उसे छोड़कर मायके चली गई थी. तबसे दोनों अलग हैं.