महेन्द सिंह/ देवभोग/नवापारा राजिम : हमारा देश और हमारे प्रदेश अपनी विभिन्न संस्कृति कला धार्मिक कृत्य के लिए प्राचीन काल से विश्व के अग्रणी में गिने जाते हैं हमारे विभिन्न प्रदेश और क्षेत्रों में पुत्र पुत्रियों के मंगलकारी और दीर्घ जीवन सुखमय और शांतिपूर्ण हो इसके लिए माताएं निर्जला उपवास रखती हैं उत्तर भारत में हरछठ, जिसे हलषष्ठी पर्व वह कहते हैं पुत्र के कल्याण के लिए माताएं व्रत रखती हैं । इसी परंपरा में उड़ीसा प्रदेश खास तौर पर पश्चिमी उड़ीसा जिसमें भवानीपटना, नुवापाड़ा, कोरापुट संबलपुर के साथ छत्तीसगढ़ गरियाबंद जिले के देवभोग क्षेत्र में जीव त्पुत्रिका व्रत जोकि कुवार माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है जिसमें माताएं अपने पुत्र पुत्रियों के मंगल कामना के लिए 24 घंटे से ज्यादा निर्जला उपवास रखती हैं जिसमें 24 प्रकार से ज्यादा फल और अन्य मेवा मिष्ठान रखे जाते हैं हलषष्ठी पर्व में बलभद्र की पूजा की जाती है यह पर्व भी इसी तर्ज पर मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ वॉच ब्यूरो प्रमुख महेंद्र सिंह ठाकुरविगत दिनों देवभोग के अंदरूनी क्षेत्र जिसमें मूंगझर गांव और अन्य क्षेत्रों के दौरे पर इस अनोखे पर्व के बारे में श्रीमती बसंती कश्यप, श्रीमती लावण्य लक्ष्मी कश्यप श्रीमती शरावती कश्यप श्रीमती भानुमति कश्यप श्रीमती इंदु कश्यप ने बताया बड़े थाल में 24 प्रकार के फल मेवा मिष्ठान और दीपक सजाकर शाम को सभी महिलाएं इकट्ठे होकर भगवान बलभद्र की कथा अपने पुत्र पुत्रियों के मंगल जीवन के लिए सुनते हैं जिसमें शुक और मैना को प्रतीक मानकर उनके पुनर्जन्म और उनके कर्मों के हिसाब से भगवान बलभद्र द्वारा उनको वरदान और परीक्षा के बारे में बहुत सुंदर चित्रण किया गया है फिर मंगल आरती के बाद केला फल और चिवड़ा का मिक्स प्रसाद बांटा जाता है माताएं निर्जला रहती हैं दूसरे दिन नदी या तालाब के किनारे उस प्रतीक को बालू का चौरा बनाकर भगवान शिव लिंग स्थापना कर फिर विधिवत पूजा अर्चना कर सर्वप्रथम घर के बच्चों और सयानो को भोजन प्रसादी कराने के बाद स्वयं अन्न जल ग्रहण करते हैं।
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