सीएम भूपेश बघेल को कांग्रेस विधायक दल के भीतर अभूतपूर्व समर्थन मिला है।कई लोग बताते हैं कि इतना समर्थन तो उन्हें सीएम के चयन प्रक्रिया के दौरान भी नहीं मिला था तब टीएस के पक्ष में ज्यादा विधायक थे।लेकिन ढाई साल में उनकी कार्य शैली के इतने मुरीद हैं कि मंत्रियों समेत 62 विधायकों उन्हें बनाए रखने की वकालत की है। सरगुजा संभाग में डां प्रीतम राम, और अंबिका सिंहदेव को छोड़ दे, तो बाकी विधायकों ने नेतृत्व परिवर्तन नहीं करने की राय दी।उन्होंने अपनी भावनाओं से केसी वेणुगोपाल और पीएल पुनिया को अवगत कराया है। भूपेश के पक्ष में रूद्र कुमार गुरु और उमेश पटेल तो कार्यक्रम अधूरा छोड़ कर दिल्ली गए। पारस राजवाड़े की माता हास्पिटल में एडमिट थी लेकिन वो भी सीएम के समर्थन में दिल्ली जाने तैयार हो गए थे लेकिन सीएम ने उन्हें रोक दिया।भूपेश के समर्थन में जुटने वाले विधायकों का मत है कि सरकार की छवि किसान और छत्तीसगढिया की बन गई है और इससे चुनाव में कांग्रेस को बड़ा फायदा होगा। लेकिन हाईकमान क्या सोचता है, यह देखने वाली बात है l
ढाई-ढाई से मुकर चुके हैं बाबा
टीएस सिंहदेव सीएम पद के लिए ढाई-ढाई साल के फार्मूले का राग अलापते रहे हैं, लेकिन वो खुद पहले इससे मुकर चुके हैं।बताते हैं कि सिंहदेव जब नेता प्रतिपक्ष थे तब अंबिकापुर निगम चुनाव में कांग्रेस को बंपर जीत मिली थी।डां अजय टिर्की मेयर निर्वाचित हो गए, लेकिन सभापति पद के लिए समर्थकों में जंग शुरू हो गई। प्रदेश संगठन ने सभापति तय करने का जिम्मा सिंहदेव पर छोड़ दिया था वैसे भी सरगुजा इलाके में पार्टी से जुड़े फैसले सिंहदेव लेते आए हैं। तब सिंहदेव ने सभापति पद के लिए मजबूत दावेदार शफी अहमद, और अजय अग्रवाल में से किसी एक को चुनना था। दोनों ही उनके करीबी माने जाते हैं। सिंहदेव ने दोनों को संतुष्ट करने के लिए ढाई-ढाई साल का फार्मूला निकाला।पहले ढाई साल शफी अहमद का सभापति बनना तय हुआ था, लेकिन वो पूरे पांच साल सभापति रहे ।तब यह तर्क दिया गया था कि शफी बेहतर काम कर रहे हैं। अब कांग्रेस के ज्यादातर विधायक भी यही बात कह रहे हैं कि भूपेश बघेल बेहतर काम कर रहे हैं, तो उन्हें क्यों बदला जाना चाहिए।
भूपेश को विधायकों का समर्थन
सीएम भूपेश बघेल को कांग्रेस विधायक दल के भीतर अभूतपूर्व समर्थन मिला है।कई लोग बताते हैं कि इतना समर्थन तो उन्हें सीएम के चयन प्रक्रिया के दौरान भी नहीं मिला था तब टीएस के पक्ष में ज्यादा विधायक थे।लेकिन ढाई साल में उनकी कार्य शैली के इतने मुरीद हैं कि मंत्रियों समेत 62 विधायकों उन्हें बनाए रखने की वकालत की है। सरगुजा संभाग में डां प्रीतम राम, और अंबिका सिंहदेव को छोड़ दे, तो बाकी विधायकों ने नेतृत्व परिवर्तन नहीं करने की राय दी।उन्होंने अपनी भावनाओं से केसी वेणुगोपाल और पीएल पुनिया को अवगत कराया है। भूपेश के पक्ष में रूद्र कुमार गुरु और उमेश पटेल तो कार्यक्रम अधूरा छोड़ कर दिल्ली गए। पारस राजवाड़े की माता हास्पिटल में एडमिट थी लेकिन वो भी सीएम के समर्थन में दिल्ली जाने तैयार हो गए थे लेकिन सीएम ने उन्हें रोक दिया।भूपेश के समर्थन में जुटने वाले विधायकों का मत है कि सरकार की छवि किसान और छत्तीसगढिया की बन गई है और इससे चुनाव में कांग्रेस को बड़ा फायदा होगा। लेकिन हाईकमान क्या सोचता है, यह देखने वाली बात है l
बीजेपी में भी भीतरी-बाहरी
चिंतन शिविर में गौरीशंकर अग्रवाल, राजेश मूणत और अमर अग्रवाल को नहीं बुलाना चर्चा का विषय रहा।बताते हैं कि गौरीशंकर, शिविर में जाने के लिए इतने आतुर थे कि एक दिन पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को फोन मिला दिया।नड्डा ने बात करता हूँ, कहकर फोन रख दिया। कहा जा रहा है कि पार्टी के एक नेता ने गौरीशंकर के बेटे की भूपेश सरकार में फलते फूलते जमीन के कारोबार का ब्यौरा दिया था, यह सुनकर पार्टी के राष्ट्रीय नेता हतप्रभ रह गए। चर्चा तो यह भी है कि गौरीशंकर का अपने सहयोगी नंदन जैन के साथ पार्टी के कोष को लेकर मतभेद चल रहे हैं।इन्हीं सब कारणों के उन्हें शिविर से दूर रखा गया। राजेश मूणत और अमर अग्रवाल को लेकर यह शिकायत रही है कि विधानसभा में बुरी तरह हारने के बाद भी संगठन में महत्वपूर्ण बने हुए हैं। कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद छत्तीसगढिया वाद जोर पकड़ रहा है इसमें तीनों नेता फिट नहीं बैठते हैं। इन सब वजहों से तीनों को शिविर से दूर रखा गया।
मंत्री पुत्र की शरण में आईपीएस
सरकार के एक कमाऊ विभाग के एक आईपीएस से मंत्रीजी की नाराजगी चर्चा में है। बताते हैं कि मंत्री जी अफसर से इस कदर नाराज हैं कि वे उनसे मिलने से परहेज कर रहे हैं। परेशान अफसर ने कई बार मिलकर वस्तुस्थिति से अवगत कराने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। आखिर में थक हार कर परेशान अफसर ने मंत्री पुत्र से मुलाकात कर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की, लेकिन यहां भी कोई विशेष सफलता नहीं मिली, क्योंकि मंत्री पुत्र ने साहब को मिलने का समय तो दिया, लेकिन इसके लिए आधा घंटा इंतजार करवाया। हालांकि मीटिंग में साहब ने अपनी बात तो रखी, लेकिन लगता नहीं इसका कोई फायदा होगा।
भूपेश की धुन में थिरकते भाजपाई
छत्तीसगढ़ में भाजपा की छवि व्यापारियों की पार्टी की बन गई है। इसको तोड़ने की हल्की सी कोशिश बस्तर के चिंतन शिविर में की गई है, लेकिन लखीराम से लेकर डॉ. रमन राज तक इस वर्ग की जड़े इतनी गहरी जम चुकी है कि इनके खिलाफ बोलने वाले दर्जनों जुझारू और समर्पित भाजपाई शहीद हो गये हैं। लेकिन छत्तीसगढ़िया धुन नहीं बज पाई। भला हो भूपेश बघेल का। कांग्रेस राज आते ही छत्तीसगढ़िया धुन बनाया जिसमें अब भाजपाई थिरक रहे हैं। पार्टी की ताकतवर लाबी खुलेआम दावा करती रहती है कि पार्टी को हम चलाते हैं। पार्टी की आर्थिक संपन्नता में हमारा ही योगदान है। बेवस छत्तीसगढ़िया इसको किनारे बैठकर वर्षों से सुन रहा है। ज्यादा शोरगुल मचने पर मुखौटा पहनाकर दो-तीन लोगों को सामने कर दिया जाता है। लालीपाप पकड़ा कर संतुष्ट करने की जद्दोजहद तो हर चुनाव के समय की जाती है। भाजपा से लेकर संघ तक में सामाजिक परिवर्तन का अभियान चलाया जा रहा है इसकी आहट छत्तीसगढ़ में भी सुनाई देनी लगी है। छत्तीसगढ़िया धुन में भाजपाई ठुमके लगा रहे है और बड़े-बड़े लोगों को हाशिये में डालने की चर्चा छिड़ गई है। छत्तीसगढ़िया भाजपाईयों का कहना है कि पहले अजीत जोगी कारण और अब भूपेश बघेल के कारण ही हमारा मान सम्मान सत्ता प्राप्ति के लिए प्रदर्शन के समय बढ़ता है बाद की हालत तो आप अच्छी तरह जानते हैं।