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छत्तीसगढ़ से OBC सीएम बघेल को हटाना कांग्रेस के लिए पार्टी के भीतर खड़ी कर सकता है मुसीबत

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  • भूपेश बघेल को हटाने की किसी भी कोशिश को जायज नहीं ठहराया जा सकता है. वह जमीनी स्तर के नेता हैं. शक्तिशाली ओबीसी समुदाय से हैं और छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय हैं.

रायपुर : रायपुर के राजनीतिक गलियारे से वाकिफ लोग घटनाक्रम में हालिया मोड़ से काफी हैरान हैं. ऐसे समय में जबकि कांग्रेस सीएम भूपेश बघेल दृढ़ दिखाई दे रहे हैं इस बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और टीएस सिंह देव के साथ हुई उनकी हालिया बैठक के बाद राज्य में बदलाव के आसार जताए जा रहे हैं. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने सचिन पायलट की तरह आक्रामक व्यवहार नहीं किया और ना ही विद्रोही हुए. पिछले कुछ महीनों से वह सीएम बनाए जाने की मांग कर रहे हैं. राहुल गांधी अगर छत्तीसगढ़  के मुख्यमंत्री को बदलने पर विचार कर रहे हैं तो उन्हें यह सोचने की जरूरत है कि साल 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया  और सचिन पायलट के साथ किए गए इसी तरह के वादे का सम्मान क्यों नहीं किया गया? और रायपुर, जयपुर या चंडीगढ़ में कांग्रेस विधायकों की राय क्यों नहीं मांगी गई? इस मोड़ पर भूपेश बघेल को हटाने की किसी भी कोशिश को जायज नहीं ठहराया जा सकता है. वह जमीनी स्तर के नेता हैं. शक्तिशाली ओबीसी समुदाय से हैं और छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय हैं. ऐसे समय में जब भाजपा देश भर में ओबीसी या अन्य पिछड़ा वर्ग पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही है और जाति आधारित जनगणना की मांग बढ़ रही है, इस बीच ओबीसी मुख्यमंत्री को हटाने से कांग्रेस के लिए अधिक दिक्कतें पैदा हो सकती हैं.

ऐसी स्थिति में कितनी उचित है बदलाव की बात?
मिली जानकारी के मुताबिक बघेल को कुछ मंत्रियों को हटाने की सलाह दी गई है जिन्होंने कथित तौर पर सिंह देव के साथ ‘दुर्व्यवहार’ किया था. बघेल को अपने मंत्रियों की बलि देने में कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन ग्राउंड जीरो पर इशारा यह जाएगा कि सीएम कमजोर हैं या फिर दिल्ली दरबार में उनकी स्थिति कम आंकी जा रही है.

हैरानी की बात यह है कि जब बघेल ने पिछड़ी जातियों, आदिवासियों और कमजोर वर्गों के वर्चस्व वाले राज्य में कांग्रेस की पकड़ मजबूत करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं तो ऐसे में बदलाव की बात शुरू हो रही है. छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्र को सब्सिडी देने का निर्णय लिया है. जैसा कि हम जानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता एक चुनौती बनी हुई है. कोरोना वायरस महामारी के बीच भविष्य की तैयारी के लिए राज्य भर में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने का कोई भी प्रयास स्वागत योग्य है. हालांकि, सिंह देव ने इस कदम का विरोध किया था.

छत्तीसगढ़ सरकार ने कई नई योजनाएं शुरू कीं
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा कई अन्य नई योजनाएं शुरू की गई हैं. पिछले साल, सरकार ने घोषणा की कि वह किसानों से गाय का गोबर खरीदेगी, जिसका इस्तेमाल 2,300 करोड़ रुपये से अधिक के वर्मीकम्पोस्ट के उत्पादन के लिए किया जाएगा. मवेशी और पशुधन का भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ गहरा संबंध है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था और धर्म ने साथ-साथ काम किया है. महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के विचार में दोनों तत्व थे. किसानों से गोबर खरीदने का कदम न केवल उनकी आजीविका को बढ़ावा देने के लिए था, बल्कि एक बेहतर वातावरण प्रदान करने, भूमि की उर्वरता बढ़ाने और फसल सुरक्षा में भी मददगार रहा.

इस साल अप्रैल में राहुल गांधी की देखरेख में कांग्रेस ने असम विधानसभा चुनावों के दौरान ‘अपनी तरह का पहला’ प्रयोग करने का विकल्प चुना. 2 मई को हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे लेकिन बघेल और उनकी टीम ने दूसरे राज्य में अपना 100 प्रतिशत योगदान दिया. 4 अप्रैल को असम में प्रचार समाप्त होने तक, बघेल ने ऊपरी असम, बराक घाटी और निचले असम में 38 जनसभाओं को संबोधित किया था. जनवरी से अप्रैल 2021 की शुरुआत तक असम में डेरा डाले हुए लगभग 700 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति ने कुछ प्रभाव डाला- स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं को बूथ प्रबंधन, सोशल मीडिया, टॉकिंग पॉइंट, सहयोगियों के साथ समन्वय और कई अन्य मुद्दों पर प्रशिक्षित किया गया.

क्या राहुल ने किया था कोई वादा?
अहम सवाल यह है कि क्या जब दिसंबर 2018 में कांग्रेस ने सीएम चुना था तब क्या भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच कथित ढाई साल के समझौते के बारे में राहुल गांधी ने कुछ कहा था? क्या इसका कोई लिखित या मौखिक रिकॉर्ड रखा गया? इन सवालों का महत्व इसलिए है क्योंकि सिंह देव लगातार अपने कार्यकाल के हिस्से की मांग करते रहे हैं और एआईसीसी महासचिव प्रभारी पीएल पुनिया ने बघेल के तर्क का समर्थन करते हुए इसके बारे में किसी भी जानकारी से इनकार किया है.

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भले ही उस समय (दिसंबर 2018) राहुल ने अनौपचारिक रूप से साझा करने के फॉर्मूले का संकेत दिया हो, लेकिन इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है. अगर राजनीतिक रूप से बदलाव की जरूरत नहीं है तो सिंह देव के लिए कुछ और रास्ता निकाला जाएगा. उनके पास कांग्रेस विधायक दल में भी खास समर्थन नहीं है.

रमन सिंह के लिए रास्ता बंद?
जाहिर है कुछ अन्य तत्व भी हैं जो छत्तीसगढ़ संकट को हवा दे रहे हैं. राहुल गांधी के एक करीबी सहयोगी के साथ-साथ खनन क्षेत्र में रुचि रखने वालों पर भी उंगली उठाई जा रही है, जो सीएम बदलने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि द हिंदू के राजनीतिक संपादक निस्तुला हेब्बार की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में ओबीसी कार्ड खेलने के लिए नए सिरे से काम कर रही है, जिसका अर्थ है कि रमन सिंह के लिए रास्ता खत्म’ हो सकता है. जाति से राजपूत, रमन सिंह 15 साल तक राज्य के सीएम रहे.

पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस पहले से ही स्थिति को नियंत्रित करने की ओर है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या गांधी परिवार के लिए छत्तीसगढ़ में एक मोर्चा खोलना राजनीतिक रूप से सही फैसला होगा?

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