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उदंती अभ्यारण में दूलर्भ राजकीय पशु एकमात्र मादा वनभैंसा खुशी ने ली अंतिम सांस

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  • राजकीय पशु वनभैंसो के संरक्षण संवर्धन पर उठ रहे सवाल
  • तीन साल मे चार वनभैंसो की हो चुकी है मौत

पुलस्त शर्मा/मैनपुर : अभ्यारण क्षेत्र के एकमात्र मादा वनभैंसा की मौत से वन विभाग में हडकम्प मची हुई है, मादा वनभैसें की मौत की खबर लगते ही मुख्य वन संरक्षक तत्काल उदंती अभ्यारण पहुचकर हालतों का जायजा लिया और डॉक्टरों की टीम ने मृत वन भैेैंसा का पोस्टमार्डम कर देर शाम उसके शव को ससम्मान उदंती अभ्यारण्य में दफनाए जाने की जानकारी मिली है इस पुरे प्रक्रिया में वन विभाग ने मिडिया को पुरी तरह दुर रखा जो कई सवालों को जन्म दे रहा है और वनभैंसा की मौत को वन विभाग द्वारा स्वभाविक मौत बताया जा रहा है, गरियाबंद जिले के उदंती अभ्यारण्य जो राज्य पशु वनभैंसो के लिए पूरे प्रदेश में विख्यात है। उदंती अभ्यारण्य से एक बड़ी खबर निकलकर आ रही है कि एक मात्र मादा वनभैंसा खुशी जो लगभग 6 से 7 वर्ष की थी जिसको संरक्षण व संर्वधन केन्द्र में रखा गया था। बीते रात इस मादा वनभैंसा खुशी की मौत हो गई वनभैंसा की मौत की खबर लगते ही पूरे वन विभाग में हडकंप मच गया है। मादा वनभैसा की मौत के खबर के बाद मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी राजेश पाण्डेय, उदंती सीता नदी टाईगर रिजर्व के उप निदेशक आयुष जैन तथा वन विभाग के आला अफसर उदंती अभ्यारण्य पहुंचकर पूरी प्रकिया मे शामिल हुए। उंदती अभ्यारण्य में राजकीय पशु मादा वनभैंसा एक ही थी जिनका मौत से पूरे प्रदेश को बहुत बडी क्षति पंहुची है इस मादा वनभैंसा के मौत की पुष्टि उंदती सीता नदी टाईगर रिजर्व के उप निदेशक मंयक अग्रवाल ने की है। ज्ञात हो कि एक सप्ताह पहले मादा वन भैंसा खुशी के डीएनए टेस्ट पर सवाल उठ रहा था कि आखिर वन विभाग डीएनए टेस्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही है फिर अचानक जिस वन भैंसा को बचाने वन विभाग पानी की तरह पैसा बहाया था आखिर मौत कैसे हो गई निष्पक्ष जांच के बाद ही वास्तविकता पता चल पाएगी ।
ज्ञात हो कि पिछले दो वर्षो के भीतर उंदती अभ्यारण्य में चार वनभैंसांे की मौत कई सवालों खडा कर रहा है एक तरफ पुरे प्रदेश व देश में तेजी से घट रहे अति दुर्लभ वनभैंसा को छत्तीसगढ राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ शासन ने राजकीय पशु का दर्जा दिया है और इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए लाखों, करोडो रूपये पानी की तरह खर्च किया जा रहा है बावजूद इसके वन भैंसों की संख्या बढने की बजाए तेजी से घटी है जो वन विभाग के लचर कार्यप्रणाली को बताने के लिए काफी है। तहसील मुख्यालय मैनपुर से लगभग 38 किलोमीटर दूर दक्षिण उंदती अभ्यारण्य कक्ष क्रमांक 82 मंें वन विभाग द्वारा लगभग 32 हेक्टेयर घने ंजंगल को चारो तरफ से बडे बडे लोहे के एंगल और तार से बाडा घेराकर रेसक्यू सेंटर का निर्माण किया गया है और इस वन भैंसा सरंक्षण और संवर्धन केन्द्र के भीतर खुशी नामक एकमात्र मादा वनभैंसा व अन्य नर वनभैंसों को रखकर संरक्षण तथा संवर्धन का कार्य किया जा रहा था । वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मादा वनभैंसा खुशी को बीते तीन दिनोे से तेज बुखार से पीड़ित थी व रायपुर से पहुंुचे डॉक्टरों की टीम डॉ राकेश शर्मा व सुमीत जोशी द्वारा मादा वनभैंसा खुशी का ईलाज किया जा रहा था इसी पीड़ा के चलते चारा पानी छोंड दिया था, जिसका जानकारी रेसक्यू सेंटर में तैनात कर्मचारियों द्वारा वन विभाग के स्थानीय अफसरों को दिया गया था और पिछले दो तीन दिनों से बीमार मादा खुशी वनभैंसा का इलाज विभाग द्वारा डॉक्टरों के माध्यम से करवाए जाने का दावा भी किया जा रहा है लेकिन बुधवार देर रात 12 बजे वनभैंसा संरक्षण सवंर्धन केन्द्र में मादा वनभैंसा तबियत बिगड़ी और उसने अंतिम सांसे लिया इसकी जानकारी वंहा तैनात कर्मचारी के माध्यम से स्थानीय वन विभाग के अफसरों को देने पर वन विभाग में हडकम्प मच गई आननं फानन में विभाग के स्थानीय विभाग के कर्मचारियों ने मामले की जानकारी रायपुर के आला अफसरों को दिया और दोपहर तक रायपुर से मुख्य वन संरक्षक के उदंती अभ्यारण्य पहुचने के बाद मादा वनभैंसा का पोस्टमार्डम कर उसे उदंती अभ्यारण्य में ही दफनाया गया है वन विभाग के स्थानीय अफसर मादा वनभैंसा खुशी की मौत को नेचुरल मौत बताया जा रहा है।
तीन वर्ष के भीतर चार वनभैंसा की मौत
उदंती अभ्यारण्य में लाख जतन के बाद भी वनभैंसा की मौत की सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है अभ्यारण क्षेत्र के संरक्षण संवर्धन केन्द्र मे बाड़ा मे व स्वतंत्र विचरण को रखे गये दूलर्भ राजकीय पशु वनभैंसो को बचाने शासन प्रशासन व वन विभाग लाखों करोडो खर्चा करने के बाद भी राजकीय पशुओं की मौत पर अंकुश नही लगा पा रहे है पिछले तीन वर्ष के भीतर चार वनभैंसा की मौत से क्षेत्र के लोग वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे है। ज्ञात हो कि ढाई वर्ष पहले मुख्यालय मैनपुर के नजदीक नाहनबिरी के जंगल में श्यामू नामक वन भैंसा की मौत हो गई थी और इसके गले में कालर आईडी लगाया गया था बावजूद वनभैंसा के मौत के जानकारी तीन दिन बाद विभाग को इसके बारे मंे पता चल पाया था जबकि वन विभाग कालर आईडी के माध्यम से पल- पल की जानकारी का दावा करते नही थकते वही 04 मई 2019 को जूगांडू नामक वनभैंसा की मौत अभ्यारण्य क्षेत्र में बीमारी के चलते हो गई थी, फिर 19 फरवरी को 2020 को आशा मादा वनभैंसा की मौत हो गई जिसके बाद बीते बुधवार रात को एक मात्र मादा वनभैंसा खुशी की मौत हो जाने के बाद पूरा अभ्यारण क्षेत्र मादा वनभैंसा से विरान हो गया है। तीन वर्ष के भीतर चार वनभैंसों की मौत हो जाने से पर्यावरण प्रेमियो में निराशा देखनें को मिल रहा है, और क्षेत्र के लोंगो ने वनभैंसा के इलाज में बरती जा रही लापरवाही को भी इसके कारण बताए जा रहे है जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
क्या कहते है अधिकारी –
इस संबंध मे चर्चा करने पर उदंती सीता नदी टाईगर रिजर्व के उप निदेशक आयुष जैन ने बताया कि लगभग 6 से 7 वर्षीय मादा वनभैंसा खुशी की मौत तेज बुखार के चलते बुधवार रात 12 बजे के आसपास रेसक्यू सेंटर के भीतर हो गई है खुशी मादा वनभैंसा का पिछले दो दिनों से इलाज चल रहा था पोस्टमार्डम कर मादा वनभैंसा के शव को उदंती अभ्यारण्य के रेसक्यू सेटंर में राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया है उदंती में अब 8 नर वनभैंसा शेष है।

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