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नकल विहीन परीक्षा, माफिया पर सख्ती…बीजेपी की गुड गवर्नेंस का पहला चेहरा थे कल्याण सिंह

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नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह का शनिवार को लखनऊ में निधन हो गया है. वे कई कामों के लिए याद किए जाएंगे. जब उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री का पद संभाला था तो प्रदेश की बोर्ड परीक्षाओं में नकल को बोलबाला था. सपुस्तकीय प्रणाली का भी प्रयोग किया जा चुका था. कानून-व्यवस्था के भी हाल बुरे थे. लेकिन कल्याण सिंह ने गुड गवर्नेंस का ऐसा पाठ पढ़ाया कि उनके पहले कार्यकाल को आज भी नजीर माना जाता है.

नकल विहीन परीक्षा
कल्याण सिंह पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री बने तो सबसे पहले नकल पर रोक लगाने की ठानी. कल्याण सरकार में शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हुआ करते थे, जिन्होंने यूपी में नकल अध्यादेश लागू किया. 1992 की यूपी बोर्ड परीक्षा में इसे लागू किया, तब नकल करना और कराना दोनों अपराध घोषित कर दिया गया था. बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने का कानून बनाया गया था. ‘नकल करना और कराना दोनों ही अपराध है’. यह बात परीक्षा कक्ष में बोर्ड पर अनिवार्य रूप से लिखी रहती थी.

नकल विरोधी कानून ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सख्त प्रशासक बना दिया था और यूपी के हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में नकल में कमी आई थी, मगर परीक्षा परिणाम निचले स्तर पर पहुंच गया था. बड़ी संख्या में स्टूडेंट फेल हो गए थे. 1992 में हाईस्कूल में महज 14.70 फीसदी जबकि इंटर में 30.30 फीसदी छात्र-छात्राएं ही पास हो पाए थे. हालांकि, 1993 के चुनाव में नकल विरोधी अधिनियम को सपा ने राजनीतिक मुद्दा बनाया था और मुलायम सिंह ने सत्ता में आते ही इसे खत्म कर दिया था, लेकिन कल्याण सिंह के शिक्षा व्यवस्था का उदाहरण आज भी दिया जाता है. कहा जाता है कि नकल अध्यादेश सख्ती से लागू कराने में राजनाथ सिंह के योगदान को देखते हुए उन्हें अच्छा प्रशासक माना जाने लगा, इसका उन्हें फायदा भी हुआ और नुकसान भी क्योंकि वह सपा के निशान पर आ गए.

माफियाओं पर कसा शिकंजा

उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की पहली सरकार में प्रदेश की कानून व्यवस्था की भी मिसाल दी जाती है. कल्याण सरकार में शातिर अपराधी, माफिया, डाकू और चोर यूपी छोड़ कर चले गए थे. यूपी में अपराधियों के एनकाउंटर पर एनकाउंटर हो रहे थे. गुंडों का सिर मुंडवा दो… मुंह काला कर गधे पर बैठाकर जुलूस निकालो… के नारे लगते थे. यूपी के तमाम बाहुबली नेताओं के लिए भी कल्याण सिंह काल बन गए थे. विपक्ष की घेरेबंदी और मानवाधिकार के द्वारा उठाए जाने सवाल के बीच कल्याण सिंह ने पुलिस अफसरों से कहा था कि माफियाओं से डरने और मानवाधिकार के सवालों से घबराने की जरूरत नहीं है. माफिया है तो उसे गोली मारो. हां, यह जरूर है कि सीने में नहीं बल्कि कमर के नीचे मारो.

बिना दबाव के काम करते थे कल्याण सिंह

बीजेपी के वरिष्ठ नेता केशरीनाथ त्रिपाठी कहते हैं कि मुख्यमंत्री रहते हुए कल्याण सिंह हर फाइल का पूरा अवलोकन करने के बाद नियमानुसार कार्रवाई करते थे. पैरवी कितनी भी बड़ी हो, दबाव कितना भी डाला जाय, लेकिन काम गलत है तो उसे कभी नहीं किया. इससे संगठन व सरकार में उनसे कुछ लोग असंतुष्ट थे तो अधिकांश उनके काम से संतुष्ट भी थे. मुख्यमंत्री रहते हुए चिकित्सा, शिक्षा व कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने पर उनका विशेष जोर था.

कल्याण सिंह को ईमानदारी के लिए जाना जाएगा

वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा कहते हैं कि कल्याण सिंह का पहला कार्यकाल सिर्फ बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए ही नहीं, बल्कि एक सख्त ईमानदार और कुशल प्रशासक के तौर पर भी याद किया जाता है. करीब डेढ़ साल का उनका कार्यकाल एक सख्त प्रशासक की याद दिलाता है. नकल विरोधी कानून एक बड़ा फैसला था, जिसकी वजह से सरकार के प्रति लोगों की नाराज़गी भी बढ़ी, लेकिन पहली बार नकल विहीन परीक्षाएं हुईं. साथ ही सूबे में समूह ‘ग’ की भर्तियों में बेहद पारदर्शिता बरती गई. कल्याण सिंह का यह कार्यकाल उनकी ईमानदारी के लिए भी याद रखा जाता है.

हालांकि, कल्याण सिंह दूसरी बार 1997 में मुख्यमंत्री बने तो पहले कार्यकाल की तरह अपने तेवर नहीं दिखा सके, क्योंकि राजा भैया सहित तमाम लोगों के समर्थन से सरकार बनी थी. ऐसे में न तो 1992 की तरह नकल विरोधी कानून को सख्ती से लागू किया और न ही अपराधियों पर उस तरह नकेल कसी गई. यह कल्याण सिंह सियासी गठबंधन की मजबूरी थी, जिसके लिए वो अपने सख्त तेवर नहीं दिखा सके.

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