सियासत हमें सच्चाई समझने नहीं देती, कभी चेहरा नहीं मिलता, कभी दर्पण नहीं मिलता। यही हालात बृहस्पति-वार में देखने को मिला। विधानसभा सत्र के दौरान उठे विवाद से भाजपा और टीएस बाबा को अच्छा महत्व मिल गया। कांग्रेस हाईकमान भी क्षत्रपों की गतिविधियों के चलते अब सतर्क हो गई है। ऐसा माना जा रहा है कि एकतरफा राज की संभावना कम हो गई है। विवाद के पटाक्षेप के बाद बृहस्पति सिंह के क्षेत्र में पुलिस की गश्त बढ़ा दी गई है। उनकी सुरक्षा की फिर से समीक्षा की जा रही है। इधर बाबा बार-बार सीएम भूपेश बघेल से कागज लेकर मिलने का क्रम बढ़ा रहे है। गलत समय में उठे विवाद के बाद भूपेश बघेल कितने पिघलते है ? यह देखना बाकी है?
कच्चे-पक्के में अटका पेगासस
वैसे तो छत्तीसगढ़ में पेगासस से जासूसी की चर्चा है। सरकार ने जांच कमेटी भी बना रखी है। मीडिया में खबर आई कि पेगासस से सात सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी हुई है, लेकिन इसकी सच्चाई का पता नहीं है। सच सिर्फ इतना है कि इजराइल की साइबर सिक्योरिटी फर्म के लोग वर्ष-2017 में छत्तीसगढ़ आए थे। बताते हैं कि इजराइली अफसरों की छत्तीसगढ़ सरकार के कुछ अफसरों के साथ बैठक भी हुई थी। चर्चा है कि बैठक में दो एडीजी और चिप्स के एक अफसर भी थे। इजराइली अफसर पेगासस सॉफ्टवेयर बेचने के लिए आए थे। बताते हैं कि पेगासस पर पुराने पीएचक्यू दफ्तर में प्रेजेंटेंशन भी दिया गया। छत्तीसगढ़ के अफसर खरीदने के लिए उत्साहित भी थे। भाजपा सरकार के करीबी इन अफसरों का मानना था कि पेगासस से भाजपा को चुनावी रणनीति बनाने में काफी मदद मिलेगी। चर्चा तो यह भी है कि पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदने के लिए ‘ऊपर’ से सहमति भी मिल गई थी। इजराइली फर्म के साथ सौदा पक्का भी हो गया था। लेकिन भुगतान की समस्या पैदा हो गई। इजराइली फर्म एक नंबर में भुगतान चाहती थी। फर्म की पॉलिसी रही है कि सिर्फ सरकारों को ही पेगासस बेचती है। छत्तीसगढ़ सरकार के लोग नंबर-दो में भुगतान करने के पक्ष में थे। क्योंकि सरकारी खाते से भुगतान से देर सवेर समस्या पैदा सकती थी। लेकिन इजराइली अफसर इसके लिए तैयार नहीं हुए और सौदा अटक गया। नई सरकार आई, तो एक एडीजी से पूछताछ भी हुई। लेकिन उनसे तो बड़ी मासूमियत से इजराइली अफसरों के साथ किसी तरह की बैठक से भी अनभिज्ञता जता दी। वैसे भी बैठक में रहने वाले अफसर रिटायरमेंट के करीब आ गए हैं। स्वाभाविक है कि वे ऐसी कोई जांच पड़ताल में नहीं फंसना चाहते, जिससे पेंशन रूक जाए। लिहाजा, पेगासस मामले में अब तक सरकार को जांच में कुछ हाथ नहीं लग पाया है।
ऐसे फंसे जीपी
भूपेश सरकार एकाएक जीपी सिंह के खिलाफ आक्रामक हुई, तो पुलिस और प्रशासनिक महकमे के लोग चौंक गए। क्योंकि जीपी सिंह को सरकार ने भरपूर महत्व दिया था। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि उन्हें गंभीर शिकायतों की वजह से एसीबी-ईओडब्ल्यू हटाया गया। चर्चा है कि चंदखुरी पुलिस अकादमी में पोस्टिंग के बाद से जीपी सिंह चुपचाप नहीं बैठे थे। उनकी केन्द्र सरकार के ताकतवर मंत्री से मुलाकात भी हुई थी। मंत्रीजी से मुलाकात किसने करवाई और जीपी सिंह के माध्यम से मंत्रीजी को क्या कुछ सौंपा गया, इसकी भनक यहां के लोगों को लग गई। फिर क्या था, जीपी की कुंडली निकाल ली गई और इसके बाद उनके साथ जो कुछ हुआ वह मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के इतिहास में कभी नहीं हुआ। उनके खिलाफ ऐसा पुख्ता मामला बना है जिससे कोर्ट से भी राहत मिलने में भी मुश्किल होगी। कुल मिलाकर जीपी सिंह अपना कैरियर तबाह कर बैठे हैं।
धर्मजीत का भाजपा प्रेम
जोगी कांग्रेस का विभाजन चुनाव आयोग की सहमति से होने की खबर है। जोगी कांग्रेस विधायक दल के नेता धर्मजीत सिंह ने कांग्रेस में फिर वापसी का ऑफर ठुकराकर भाजपा में जाने का मन बना चुके हैं। रेणु जोगी जरूर कांग्रेस में जाने के लिए इच्छुक है, लेकिन स्थानीय नेताओं के विरोध और अमित जोगी की वजह से मामले में पेंच फंसा है। जबकि दो विधायक देवव्रत सिंह व प्रमोद शर्मा का कांग्रेस में जाने का रास्ता साफ होने के संकेत है। देवव्रत व प्रमोद ज्यादा छटपटा रहे हैं। कांग्रेसी नेताओं का भी रूख उनके प्रति सकारात्मक है। हालांकि कानूनी उलझने पैदा करने में जोगी कांग्रेस सक्रिय है। फिर भी अगले माह तक किसी नतीजे की उम्मीद की जा रही है।
मस्तमौला अफसर
आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष सीके खेतान सेवानिवृत्ति के आखिरी दिन गुब्बारों और फूलों से सजी सरकारी गाड़ी में ऑफिस से रवाना हुए। उनका पूरा परिवार भी इस दिन ऑफिस पहुंचा था। कर्मचारियों से बेहद आत्मीयता के साथ बातचीत और हंसी-ठहाकों में दिन बीता। मुलाकातियों में आईएएस तो कम आईपीएस ज्यादा दिखे। भूपेश सरकार आते ही सीएम सचिवालय की रेस में शामिल खेतान साहब को इस सरकार से पोस्ट रिटायरमेंट पद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन वह हो नहीं पाया।
नया रायपुर का खेल निराला
निर्माण के काम में हर सरकार की रूचि होती है। पिछली सरकार ने निर्माण के काम में जबरदस्त रूचि दिखाई थी। स्वाभाविक है कि निर्माण कार्य होने से सभी की कमाई होती है, लेकिन मौजूदा सरकार के बारे में राय अलग है। कहा जाता है कि ये सरकार नया रायपुर के पक्ष मे नहीं है। फिर भी नया रायपुर में राजभवन, मुख्यमंत्री व मंत्रियों के बंगले बनाने का काम शुरू हुआ था, लेकिन कोरोना काल में सीएम ने इसे रुकवा भी दिया। इसके बाद से नया रायपुर में निर्माण कार्य करीब-करीब ठप पड़ा हुआ है। लेकिन सीएम के फरमान का नया रायपुर के दो अफसरों पर असर नहीं हुआ है। तभी तो एनआरडीए के चेयरमैन आर.पी. मंडल व सीईओ तम्बोली के घर व आफिस को सुज्जजित करने का काम जोर-शोर से चल रहा है। जाहिर है कि इससे वित्तीय अनुशासन के हल्ले की पोल खुल गई है। यह अलग बात है कि निर्माण कार्यों का ठेका एक माननीय के भाई के पास है।