टीकम निषाद/देवभोग : साहब हम और आप तो किसी तरह इस लॉकडाउन में दाल रोटी सहित अन्य खाद्य सामग्री का जुगाड़ कर अपना और अपने परिवार का पेट भर लेते हैं। लेकिन यह बेजुबान भेड़ बकरी सहित मवेशियों का पेट किस तरह भरा जाए। इसलिए लॉकडाउन के नियम को तोड़ कर भी इन मवेशियों को चराने के लिए मजबूर है। उक्त बातें आम मवेशी चरवाह द्वारा कहा जाता है। जो लॉकडाउन के दौरान बिना गाइडलाइन एवं बिना कोरेना की परवाह किए बिना भेड़ बकरी का पेट भरने के लिए खेत खलियान सहित सड़क किनारे नजर आते हैं। क्योंकि ब्लॉक के सभी गौठान पर लगभग ताला लटका हुआ है ।ऐसे में 8000 से ज्यादा वाम वंशी और गाय बंसी के अलावा हजारों भेड़ बकरियों के लिए चारा का इंतजाम किस तरह किया जा सकता है। और ऐसी परिस्थिति भी नहीं है। कि घर पर रहकर इन मवेशियों का व्यवस्था हों यही वजह है ।कि छोटे-छोटे बच्चों सहित उम्रदराज चरवाहा भी घर पर बंद रहने की जगह बाहर मवेशियों को चराने के लिए मजबूर दिखाई पड़ रहे हैं। जिन्हें देख कर भी अनदेखा करना जिम्मेदारों की मजबूरी बन गया है। क्योंकि इसके अलावा चरवाहा लोगों के पास दूसरा विकल्प नहीं है ।हालांकि गौठान में मवेशियों के लिए चारा की समुचित व्यवस्था किया जाए तो काफी हद तक चरवाहों को राहत मिल सकता है। लेकिन इसकी जिम्मेदारी भी किसे सौंपा जाए क्योंकि ग्राम पंचायत सचिव को वैक्सीन टीका में ड्यूटी लगाई गई है ।तो वही जनपद मनरेगा के स्टाफ को कोविड केयर सेंटर का दायित्व सौंपा गया है ।ऐसे में किस तरह हजारो मवेशियों के लिए दाना पानी इंतजाम किया जा सकता है। इस बीच गौठान पर 8000 से अधिक मवेशियों के लिए चारा का व्यवस्था नहीं होना सैकड़ों चरवाह यह जिंदगी को खतरे में डालने के समान माना जाता है ।
मवेशियों का पेट भरने लॉक डाउन के गाइडलाइन को दरकिनार
