अमरावती: भारत में गधों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है, कुछ राज्यों में तो गधे विलुप्त होने की कगार पर हैं। गधों की संख्या को देखते हुए सरकार ने इसे विलुप्त होने वाले जानवरों की लिस्ट में रखा है। गधों की संख्या में हो रही तेजी से हो रही गिरावट का सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग गधे को मांस खाने के लिए लगातार मार रहे हैं। हालांकि भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआई के मुताबिक, गधे ‘फूड एनीमल’ के तौर पर रजिस्टर्ड नहीं हैं। इन्हें मारना अवैध है। ऐसा ही हाल आंध्र प्रदेश का भी है, जहां गधों की संख्या में भारी गिरावट आई है। गधों की हत्या और तस्करी को रोक पाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है। बताया जा रहा है कि तस्कर एक गधे के लिए 20 से 25 हजार रुपए का भुगतान करने को तैयार हैं और इसका मांस 600 रुपए किलो बिक रहा है। तस्कर भारी मात्रा में नहरों और नदियों में गधे का अवशेष फेंक रहे हैं, जो लोगों की बीमारी का कारण बन रहा है। भारत में गधों के मांस का उपयोग कई लोग खाने के लिए करते हैं। आंध्र प्रदेश में गधों के मांस को लेकर कई धारणाएं हैं। यहां के लोगों को लगता है कि गधे का मांस कई समस्याओं को दूर कर सकता है। वे मानते हैं कि गधे का मांस खाने से सांस की समस्या दूर हो सकती है। उन्हें यह विश्वास भी है कि गधे का मांस खाने से यौन क्षमता भी बढ़ती है। इन धारणाओं की वजह से लोग गधे के मांस का इस्तेमाल भोजन के तौर पर कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी समेत कई जिलों में गधों को मारा जा रहा है। इनमें कृष्णा, प्रकाशम और गुंटूर समेत कई दूसरे इलाके शामिल हैं। यहां उनके मांस की खपत बहुत तेजी से बढ़ी है।
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