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भारत में अवसंरचना विकास के लिए वित्तपोषण की आवश्यकता : नए बहुपक्षीय विकास बैंकों की भूमिका

  • प्रसन्ना वी सलियन और दिव्या सतीजा

तेजी से आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और विकास की गति को बनाए रखने के लिए अवसंरचना का वित्तपोषण अनिवार्य शर्त है। अवसंरचना में भारत द्वारा किये जाने वाले निवेश में निरंतर वृद्धि हो रही है, जो 2008 से 2012 के बीच 24 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2013 से 2019 के बीच 56.2 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इस अवधि के दौरान, अवसंरचना के वित्तपोषण का लगभग 70 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र से आया और शेष वित्तपोषण निजी क्षेत्र द्वारा किया गया – इस अनुपात को भारत में अवसंरचना वित्तपोषण की सर्वश्रेष्ट हिस्सेदारी नहीं कहा जा सकता है। भारत ने 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है और इस लक्ष्य को हासिल करने में अवसंरचना के विकास की भूमिका महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) के अनुसार, भारत के अवसंरचना क्षेत्रों में 2020 से 2025 के बीच कुल पूंजीगत व्यय लगभग 111 लाख करोड़ रुपये ( 1.5 ट्रिलियन डॉलर) अनुमानित है।
गंभीर चुनौतियां
हालाँकि, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें शामिल हैं – (क) बैंकों और अवसंरचना-एनबीएफसी के लिए आर्थिक संकट झेल रही परिसंपत्तियों की चुनौती, (ख) निजी क्षेत्र का सीमित पूंजी निवेश, (ग) सतत और जलवायु अनुकूल विकास प्रथाओं का कम उपयोग,
(घ) सीमित सामाजिक अवसंरचना और (च) कोविड-19 महामारी के कारण विदेशी मांग, औद्योगिक उत्पादन, निवेश और रोजगार में कमी।

संस्थागत वित्तपोषण की भूमिका
इन चुनौतियों को दूर करने के लिए सुधारों, संस्थागत वित्त और मजबूत संस्थागत तकनीकी सहायता के आपसी संयोजन की आवश्यकता है। केंद्रीय बजट 2021 में अवसंरचना क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है, जिनमें शामिल हैं – सार्वजनिक अवसंरचना परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण पर विशेष जोर देना, इनवाइट्स और आरईआईटीएस के माध्यम से विदेशी भागीदारी को बढ़ावा देना और पूंजीगत व्यय में 5.54 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि का प्रस्ताव करना, जो 2020-21 के बजट अनुमान से 34.5 प्रतिशत अधिक है। ये सभी एक साथ मिलकर निवेश के नए अवसर पैदा करेंगे, जिससे आर्थिक विकास को समर्थन देने वाले व्यापार और विकास को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी।
अवसंरचना के वित्तपोषण तथा इसमें तेजी लाने के लिए केंद्रीय बजट 2021 में विकास वित्तीय संस्थान (डीएफआई) की स्थापना संबंधी घोषणा एक सकारात्मक कदम है। हालांकि, अवसंरचना के वित्तपोषण की विशाल आवश्यकता को देखते हुए विविध दृष्टिकोण अपनाये जाने की जरूरत है। इसके लिए, बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) के साथ सहयोग एक प्रभावी तरीका हो सकता है। अवसंरचना जरूरतों को तकनीकी रूप से व्यवहार्य और वित्तीय रूप से सक्षम परियोजनाओं में बदलने में एमडीबी दक्ष होते हैं और संस्थागत पूंजी को बड़े पैमाने पर निवेश के लिए वित्तपोषण मंच उपलब्ध कराते हैं।
बहुपक्षीय विकास बैंक साझा वैश्विक वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होते हैं। ये बैंक (क) सतत विकास को प्रोत्साहन देकर (ख) सीमाओं और अर्थव्यवस्थाओं को आपस में जोड़कर और (ग) अवसंरचना निवेश में कमियों को दूर करके बड़े पैमाने पर प्रभाव डालते हैं। हालाँकि, एमडीबी समग्र अवसंरचना वित्तपोषण इकोसिस्टम का एक छोटा सा हिस्सा होते हैं, फिर भी वे निवेश के नए तरीकों व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने और अवसंरचना में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एमडीबी की बात करें तो एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) और न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) जैसे नई पीढ़ी के बैंक, मुख्य रूप से पारंपरिक सोवरेन ऋण, गैर- सोवरेन संचालन और तकनीकी सहायता समेत अवसंरचना निवेश पर ध्यान केंद्रित करते हैं। पिछले पांच वर्षों में इन बैंकों ने एक बड़ा अवसंरचना निवेश पोर्टफोलियो बनाया है। यह पोर्टफोलियो, एआईआईबी के लिए 22 बिलियन डॉलर और एनडीबी के लिए लगभग 25 बिलियन डॉलर का है। भारत में एआईआईबी द्वारा 5.4 अरब डॉलर और एनडीबी द्वारा 6.9 बिलियन डॉलर मूल्य की परियोजनाओं का वित्तपोषण किया जा रहा है। इसके अलावा, भारत में कई बड़ी परियोजनाएं जल्द ही शुरू होंगी। बड़े और मजबूत पूंजी-आधार के कारण, इन समानांतर संस्थानों की संभावित उधार क्षमता बहुत अधिक होती है। इन बैंकों की कार्य प्रणाली में एक छोटी कुशल प्रबंधन टीम और अत्यधिक कुशल कर्मचारियों के साथ एक “छोटी बैंकिंग संरचना” शामिल होती है। ये बैंक कम औपचारिक होते हैं, उदारवादी रुख अपनाते हैं और ग्राहक की मांगों का दक्षता के साथ जवाब देते हैं। विकास वित्तपोषण और प्रभावी शासन के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के क्रम में, इन बैंकों का तेज गति से विस्तार हुआ है, जिससे बाजार में इनकी एक विशिष्ट जगह बनी है।
भारत एआईआईबी में दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक है और एनडीबी में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अन्य ब्रिक्स सदस्यों की तरह बराबरी का शेयरधारक है। प्रमुख शेयरधारक होने के कारण, भारत, बैंकों की प्रमुख नीतियों, शासन संरचनाओं आदि के निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल है। इसने विकास और व्यवसाय, अन्य एमडीबी के साथ बैंकों की भागीदारी और इन युवा बैंकों की बाजार उपस्थिति में योगदान दिया है।
अवसंरचना विकास और लंबी अवधि की परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए दीर्घकालिक वित्त की विशाल संसाधन आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, भारत को एआईआईबी और एनडीबी जैसे एमडीबी के साथ अपनी भागीदारी का लाभ मिलेगा। इससे नवाचार और संरचनात्मक परिवर्तन को बढ़ावा देने और अवसंरचना के वित्तपोषण में मदद मिलेगी। परिणामस्वरूप, भारत और ये नए एमडीबी; दोनों ही जीत की स्थिति में होंगे। निष्कर्ष के तौर पर, हम कह सकते हैं कि ये एमडीबी सहयोग और भागीदारी को बढ़ावा देने में एक सक्रिय भूमिका निभाएंगे, जिससे भारत सहित अन्य सदस्य देशों में अवसंरचना वित्तपोषण में तेजी आयेगी।

डॉ प्रसन्ना वी सालियन, वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के उप सचिव हैं। लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं।
सुश्री दिव्या सतीजा आर्थिक मामलों के विभाग की पूर्व सलाहकार हैं। लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी विचार हैं।

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