किरीट ठक्कर/ गरियाबंद / राजिम। केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये कथित कृषि सुधार कानून के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के संदर्भ में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अखिल भारतीय एवं छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के नेतृत्व में राज्यव्यापी बंद के आह्वान पर राजिम में स्थानीय व्यापारियों ने 12 बजे तक अपना प्रतिष्ठान बंद रखकर किसानों के आंदोलन का समर्थन किया । केन्द्र सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषि कानून ( 1) कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार ( संवर्धन और सुविधा। (2) मूल्य आश्वासन एवं कृषि समझौता (3) आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) कानून 2020 का विरोध देश के किसान अध्यादेश लाये जाने के समय से ही कर रहे हैं। यह विरोध लोकसभा एवं राज्यसभा द्वारा पारित होने तथा राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के बाद और भी तीखा हो गया है जो दिल्ली बार्डर में 26 नवम्बर से तथा देश के अलग अलग राज्यों में किसानों के विरोध प्रदर्शन से दिखाई देता है। केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा किसानों के इस विरोध को महज विपक्षी पार्टियों द्वारा किसानों को गुमराह करने व इस कानून को लेकर किसान भ्रमित है कहकर किसानों के आंदोलन को हल्के में लिया गया है जबकि आज यह बात स्प्ष्ट रूप में सामने आ रही है कि भाजपा गठबंधन एनडीए में शामिल मंत्री और विधायक गठबंधन से अलग होकर किसान आंदोलन के समर्थन में आ रहे हैं। साथ ही देश के ख्यातिप्राप्त बुद्धिजीवी, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी आदि अपने पुरस्कार वापस करते हुए अन्नदाता किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।
8 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ सहित देश के अलग राज्यों में किसानों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक संगठनों तथा राजनीतिक दलों द्वारा भारत बंद को दिए गए समर्थन से भारत बंद को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सफल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के घटक संगठन अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सदस्यों ने समस्त नागरिकों, व्यापारिक प्रतिष्ठान के संचालकों, मेहनतकशों व प्रगतिशील ताकतों का हार्दिक आभार व्यक्त किया है।
अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष मदन लाल साहू, राज्य सचिव तेजराम विद्रोही, सदस्यगण रेखुराम साहू, सोमन यादव, ललित कुमार, नन्दू ध्रुव, उत्तम कुमार, जहुर राम, पवनकुमार, मोहन लाल, मनोज कुमार, खेमुराम बघेल, पदुमलाल, डोमन कुमार आदि ने कहा कि
सरकार और आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों के बीच पांचवें दौर की बैठक अब तक बेनतीजा रही है। किसानों की मांग है कि उक्त तीनों कानून को रदद् किया जाए क्योंकि यह कानून कॉरपोरेट घरानों को ज्यादा फायदा पहुंचाने वाली तथा कृषि, किसान और आम उपभोक्ताओं की खाद्य सुरक्षा को समाप्त करने देने वाला कानून है। जबकि सरकार उस कानून में कुछ संशोधन कर आंदोलन को समाप्त कर देना चाहती है। तेजराम विद्रोही ने कहा कि मोदी सरकार की गैर जिम्मेदारीपूर्ण निर्णयों जैसे नोटबन्दी, जी एस टी, बिना तैयारी के लॉक डाउन आदि से जनता अच्छी तरह वाकिफ हैं जो निर्णय आज देश की अर्थव्यवस्था एवं जीवन व रोजगार से जुड़ी हुई सभी पक्षों को दुष्प्रभावित किया है। केन्द्र सरकार के पक्षधर अपने लाये कानून को किसान हितैषी तथा किसानों को भ्रमित बता रहे हैं उनसे मेरा एक ही सवाल है कि एन डी ए गठबंधन में शामिल अकाली दल के मंत्री हरसिमरत कौर कृषि कानून पर असहमति जताते हुए गठबंधन से अलग हो जाते हैं तो उन्हें किसने भ्रमित किया। आज जो कोशिश किसानों को समझाने के नाम पर हो रही है वही चर्चा विधेयक पर बहस के समय लोकसभा व राज्य सभा में हुआ होता तो आज किसान सड़कों पर नहीं होते। कोरोना काल मे किसानों को आंदोलन के लिए मजबूर करने का दोषी केन्द्र की मोदी सरकार है जो पांचवे दौर की बैठक के बाद भी समाधान निकाल पाने अक्षम रहा।