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राधा अष्टमी पर करें महालक्ष्मी व्रत, इसके बिना अधूरी है श्रीकृष्ण की पूजा

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रायपुरः भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण की बाल सहचरी, जगजननी भगवती शक्ति राधाजी का जन्म हुआ। शास्त्रों में श्री राधा कृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवं प्राणों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित हैं। अतः राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गयी है।

राधा अष्टमी के दिन से सोलह दिन का महालक्ष्मी व्रत शुरू किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत राधाअष्टमी से शुरू होकर आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक चलता है। यह व्रत पति-पत्नि अपने परिवार की सुख-शान्ति, समृद्धि, खुशहाली, संतान सुख और उन्नति की कामना से करते हैं। सभी सुखों को देने वाली राधा रानी का व्रत श्री महालक्ष्मी जी के रुप में भी किया जाता है।

राधा अष्टमी व्रत विधि
अन्य व्रतों की भांति इस दिन प्रात: उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर श्री राधा जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस पूजन हेतु मध्याह्न का समय उपयुक्त माना गया है। इस दिन पूजन स्थल में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, तोरणादि व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों एवं फलों से श्री राधा जी की स्तुति करनी चाहिए।

पूजन स्थल में पांच रंगों से मंडप सजाएं, उनके भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं, उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख करके स्थापित करें।

बंधु बांधवों सहित अपनी सामर्थ्यानुसार पूजा की सामग्री लेकर भक्तिभाव से भगवान की स्तुति गाएं। दिन में हरिचर्चा में समय बिताएं तथा रात्रि को नाम संकीर्तन करें। एक समय फलाहार करें। मंदिर में दीपदान करें।

श्री राधा षडाक्षर मंत्र- श्री राधायै स्वाहा। इस मंत्र के जाप से समस्त प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी प्रचलित मान्यताओं, धर्मग्रंथों और ज्योतिष शास्त्र के आधार पर ज्योतिषाचार्य अंजु सिंह परिहार का निजी आकलन है। आप उनसे मोबाइल नंबर 9285303900 पर संपर्क कर सकते हैं। सलाह पर अमल करने से पहले उनकी राय जरूर लें।

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