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कई औषधीय गुणों से युक्त देसी धान की 200 विलुप्त किस्मों को सहेज रहे किशोर राजपूत

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कुछ किस्मों को निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं

संजय महिलांग

रायपुर छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ राज्य को धान का कटोरा कहा जाता हैं, हरित क्रांति के बाद धान की ज्यादा पैदावारी की होड़ में एक ओर किसान अब उन्नत और हाइब्रिड किस्म को अपना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर एक किसान ऐसा भी हैं जो धान के देसी किस्मों को सहेजने की अनूठी मिसाल पेश की है। ये बेमेतरा जिले के नगर पंचायत नवागढ़ के हैं, जिन्होंने धान की 200 देसी किस्मों को स्थानीय तरीके से सहेजा है। इसमें जवाफूल,कुबरी ममहानी, समुद्र चीनी,जैसे सुगंधित और स्वादिष्ट किस्म तो मल्टीविटामिन, कैंसर, डायबिटीज, समेत कई अन्य बीमारियों में गठुवान,लयचा, ब्लैक राइस, रेड राइस, ग्रीन राइस शामिल हैं।

युवा किसान किशोर कुमार राजपूत ने बताया कि पहले वे अपने परिवार के साथ देसी धान की खेती करते थे। लेकिन कुछ किस्मों का ही बीज उनके पास उपलब्ध था, धीरे धीरे संग्रह शुरू किया और आज 200 किस्मों के बीज संरक्षित कर रहे हैं।

राजपूत देसी धान की सभी किस्मों को श्री विधी से खेती में लगाते हैं इस विधी से खेती कर वे आज इस क्षेत्र के एक उन्नत किसान के रूप में उभर कर सामने आए हैं।

श्री राजपूत ने बताया कि अब उन्हें धान बीज के लिए भी इधर उधर भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उनके घर में ही उन्हें पर्याप्त बीज प्राप्त हो जा रहा है और इसी से वे अपने 2 एकड़ के खेत में देसी किस्म के धान का उत्पादन कर रहे हैं।उन्होंने बताया कि इस वर्ष उन्हें श्री विधी से खेती करने पर एक एकड़ में 25 क्विंटल धान का अतिरिक्त फायदा हुआ है।

देसी बीजों का भंडारण घर में ही करते हैं

अधिकांश किसान धान की फसल लेने के लिए दुकानों से हाईब्रीड बीज खाद लेकर खेती किसानी करते हैं। लेकिन हाईब्रीड बीज से उन्हें खेती में फायदा कम हो रहा हैं। यदि देसी धान बीज और श्री विधी से खेती को अपनाया जाए तो उन्हें फायदा होना शुरू हो जाएगा और इन्हीं फसलों से वे अगली फसल के लिए कई किस्मों के देशी धान के बीजों का संग्रहण कर अपने घरों में ही रख सकते हैं। युवा किसान देवी प्रसाद वर्मा ने बताया कि श्री राजपूत कई जरूरतमंदों को भी धान बीज नि:शुल्क में उपलब्ध करा देते हैं। वे अपने घर पर ही सभी देसी धान के किस्मों को संरक्षित रखते हैं।

देसी धान लगाने क्षेत्र के किसानों को करते हैं प्रोत्साहित

किशोर कुमार राजपूत ने बताया कि जब से वे श्री विधी के माध्यम से खेती करना प्रारंभ किए हैं,तब से उन्हें धान की फसलों से फायदा भी हो रहा है। इसके साथ ही उनके खेती की पद्धति को देखने के लिए आसपास के कई किसान उनके खेतों में पहुंचते हैं और उनसे खेती के तरीकों के बारे में उनसे जानकारी लेते हैं।श्री राजपूत ने यह भी बताया कि समय समय पर इंदिरा गांधीकृषि विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष डाक्टर दीपक शर्मा , कृषि वैज्ञानिक डाक्टर सत्यपाल सिंह और अखिलेश दत्त दुबे कृषि वैज्ञानिक भी उनके खेतों का अवलोकन करने के लिए स्वयं ही पहुंचते हैं।  राजपूत आसपास के क्षेत्रों के किसानों को भी देसी किस्म के धान की पैदावार लेने की सलाह देते हैं। इसके साथ ही वे कई किसानों को देसी किस्म के धान को लगाने के लिए नि:शुल्क बीज भी उपलब्ध कराते हैं।

गौ वंश आधारित जैविक खाद का करते हैं उपयोग

किशोर कुमार राजपूत ने बताया कि देसी बीज संरक्षण संवर्धन करने वाले अपने खेतों में किसी भी प्रकार का रासायनिक कीटनाशक या खाद का उपयोग नहीं करते है। गोमुत्र, गोबर, पेड़ की पत्तियों को मिश्रित कर जैविक खाद स्वयं से अपने घर में ही तैयार करते हैं। राजपूत ने बताया कि रासायनिक खाद की जगह गोबर खाद का उपयोग किया जाता है। इससे फसल में माहो कीट व अन्य बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है

देशी बीज संरक्षण संवर्धन पर मिला है सम्मान

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में आयोजित देशी बीज प्रदर्शनी में जैव विविधता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए कुलपति डाक्टर एस एस सेंगर और छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष राकेश चतुर्वेदी द्वारा सम्मानित किया गया है।
वर्सन

देसी बीजों के संरक्षण और संवर्धन में किशोर राजपूत अच्छा काम कर रहे हैं, आस पास के किसान भी देशी बीजों का उपयोग कर उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

डाक्टर सत्यपाल सिंह
कृषि वैज्ञानिक अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर

फोटो संलग्न
देशी बीजों का अवलोकन करते हुए कुलपति डॉ एस एस सेंगर, डाक्टर दीपक शर्मा, और अन्य वैज्ञानिक गण

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