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लोकतंत्र निलम्बित किया गया, आपात काल के नाम पर: विजय शर्मा

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  • कांग्रिस क्षद्म-लोकतंत्र के ज़रिए सामंती व्यवस्था क़ायम करना चाहती है

बेमेतरा। भाजपा प्रदेश नेतृत्व के आह्वान पर आपातकाल की बरसी पर भाजपा जिला कार्यालय में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रभारी के रूप में प्रदेश मंत्री विजय शर्मा ने कार्यकर्ताओ को सम्बोधित किया। श्री शर्मा ने कहा कि इतिहास से लेकर वर्तमान तक फैली हुई घटनाएँ चीख चीख कर बताती हैं की कांग्रिस का लोकतंत्र पर विश्वास नहीं है। छत्तीसगढ़ की कोंग्रेस की भूपेश बघेल की सरकार की क़वायदें उस दंश की झलकियाँ दिखाती हैं जिन्हें देश ने 25 जून 1975 को देखा था। किसी के ट्वीट को रीट्वीट करने पर एफ.आई.आर., जब युवाओं ने पीएससी में सुधार की बात कही तो छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार लोक सेवा आयोग ने छात्रों को नोटिस दिया, राष्ट्रीय पत्रकारों द्वारा टीवी में बोलने पर छत्तीसगढ़ में एफ.आई.आर., अपने व्यक्तिगत विचार रखने पर एफ.आई.आर., किसान अपनी समस्याओं का समाधान लोकतांत्रिक उपकरणों के माध्यम से माँगे तो एफ.आई.आर., शिक्षक सोशल मीडिया में नियुक्ति की माँग करें तो टेलेफ़ोनिक धमकी, छोटे-बड़े ठेकेदार धमकाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि आज प्रदेश में काम की स्वतंत्रता नहीं रही, रेत माफ़िया के ख़िलाफ़ शिकायत करने वालों को बेहोश होते तक पीटा जा रहा, सरकारी राजस्व विभाग भू-माफ़ियों की धुन पर नाच रहे हैं, सामूहिक हत्याओं और बलात्कार की जाँच प्रभावित की जा रही है, छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है और सरकार के संरक्षण में सामंती व्यवस्थाएँ लागू की जा रही हैं। सरकार तक आपनी आवाज़ पहुँचने की स्वतंत्रता बाबा साहब के संविधान ने हमें दी है और कांग्रिस की नीति लोकतंत्र की इस धारा को बाधित करने की ही होती है।

प्रभारी ने कहा पश्चिम बंगाल में कांग्रिस और कॉम्युनिस्ट पार्टी के खुले समर्थन से बनी ममता बेनर्जी की सरकार के बनते ही भाजपा कार्यकर्ताओं पर आक्रमण आम बात है, महाराष्ट्र में फ़िल्मी नाइका का घर तोड़ा जाना या पालघर में निर्दोष साधुओं की हत्या ऐसी अनेक घटनाओं का जड़ कांग्रिस की सामंती विचारधारा के मूल से ही प्रेरित हैं।

आज 25 जून है और आज मैं सम्मान वापसी गैंग से पूछना चाहता हूँ कि जिस भाजपा में बूथ से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कार्यकर्ता अपनी मेहनत से पहुँचता है, जिसकी सरकारें राज्यों और केंद्र में जन-भावना और राष्ट्रउत्थान को सर्वोपरी मानतीं हैं और जिसके प्रधानमंत्री स्वयं को प्रधान सेवक कहते हैं उसकी कार्यशैली पर प्रश्न तो उठाया आपने परंतु आपातकाल लागू करने वाले दल के सम्बंध में, टुकड़े-टुकड़े गैंग के सम्बंध में एक शब्द भी क्यूँ नहीं बोलते हैं।

उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी के चुनाव को 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने और 24 जून को सप्रीम कोर्ट ने अमान्य कर दिया तो उन्होंने संविधान के प्रावधान का ग़लत उपयोग करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के द्वारा देश पर 25 जून 1975 को आपातकाल लगवाया। तुरंत ही जनसंघ के नेता अटलबिहारी बाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी तथा अन्य विरोधी दलों के नेता जार्ज फ़र्नांडिस, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान आदि हज़ारों हज़ार नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसा कोई अधिकार जानता या पत्रकारिता के पास क़ानूनन नहीं रह गया था। सम्पादकों ने सम्पादकीय कालम ख़ाली छोड़ कर विरोध दर्ज करवाया था। 3801 अख़बार बंद किए गए, 327 पत्रकारों को जेल में डाला गया, 290 अख़बारों के सरकारी विज्ञापन बंद किये गये, रायटर्स आदि समाचार एजेन्सी के बिजली और टेलेफ़ोन के कनेक्शन काटे गये, 29 विदेशी समाचार एजेन्सी और समाचार पत्रों का भारत में प्रवेश रोका गया था और तो और विदेशी समाचार पत्रों के सम्पादकों को देश से निकाला गया था|

देश में लोकतंत्र निलम्बित हो चुका था और जनता यदि आक्रामक ना होती तो लोकतंत्र देश से निष्कासित भी हो जाता। “पंथनिरपेक्षता” और “समाजवाद” शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में चुपके से घुसाया गया। लोकनायक जयप्रकाश जी ने इसे स्वतंत्र भारतीय इतिहास का सबसे काला समय कहा है।

जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश जोशी ने कहा कि गांधी और सुभाष के संघर्षों से मिली आज़ादी कांग्रिस ने लील लिया था और देश को पुनः लोकतंत्र के रास्ते पर लाने अटल बिहारी बाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी और नानाजी देशमुख जैसे नेताओं ने अथक परिश्रम किया है। इस अवसर पर पूर्व मंत्री डीडी बघेल, पूर्व संसदीय सचिव लाभचंद बाफना, पूर्व विधायक अवधेश चंदेल, पूर्व जिलाध्यक्ष राजेंद्र शर्मा, प्रदेश मंत्री संध्या परगिनहा, जिला महामंत्री विकास धर दीवान एवं नरेंद्र वर्मा उपस्थित रहे।

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