प्रांतीय वॉच

गौ वंश आधारित खेती से ग्रामीण विकास सम्भव: किशोर राजपूत

Share this

संजय महिलांग/नवागढ़ : आज खेतों में रसायनों का अनियंत्रित उपयोग मानव जगत के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य हेतु हानिकारक है। कृषि वैज्ञानिकगण अनुसंधानों के तथ्य यह बताते हैं कि रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग से मानव स्वास्थ्य पर त्वरित एवं दूरगामी परिणाम होते हैं। जो मनुष्य इन रसायनों के सीधे संपर्क में आते हैं, उनमें त्वरित परिणाम देखने को मिलते हैं जैसे बेहोशी, चक्कर, थकान, सिरदर्द, चमड़ी में खुजली, ऑंखों के आगे अंधेरा छाना, उल्टी आना, श्वास लेने में परेशानी इत्यादि। ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक लोगों के द्वारा कीटनाशक पीकर आत्महत्या की कई घटनाएं रिर्पोटेड हैं। कृषि रसायनों में दूरगामी परिणामों में मनुष्यों में नपुंसकता, गर्भपात, कैंसर, शारीरिक एवं मानसिक विकलांगता इत्यादि देखे गये हैं।

हमारे देश में हरितक्रांति काल में पंजाब प्रांत में अधिक उत्पादन के उद्देश्य से कीटनाशकों एवं उर्वरकों का बहुतायात में उपयोग किया जाने लगा। इसके दुष्परिणाम भी यहीं सामने आये। जमीनों की उर्वरता कम होने लगा। अनेक कृषक कर्ज के जाल में उलझ गये। बालों का सफेद होना, लैंगिक असंतुलन, प्रजनन प्रणाली में विकृति एवं कैंसर जैसी बीमारियों का एक प्रमुख धारणा खेती में कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग को माना गया। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना के एक शोध कार्य में अधिकांश खाद्य पदार्थ कीटनाशकों से संदुषित पास गए।

जान हापकिं ग्स यूनिवर्सिटी वाल्टीमोर (मेरीलैंड), अमेरिका के द जरनल ऑफ अल्टरनेटिव एण्ड कंपलीमेंट्री मेडिसिन (2001) में प्रकाशित एक अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार जैविक विधि से उत्पादन अनाज, सब्जी फलों की पोषण गुणवत्ता, रासायनिक विधि से उत्पादित अनाज सब्जी, फलों की तुलना में काफी अधिक होती है। हमारे बुजुर्ग भी अक्सर यही कहा करते हैंकि अन्न, सब्जी, फलों में पुराना स्वाद नहीं रह गया।

किशोर राजपुत ने बताया कि हरित क्रांति से पूर्व कृषि परंपरागत तरीकों पर आधारित थी। इस प्रणाली में खेती, बागवानी एवं पशुपालन एक दूसरे के पुरक थे, जिसके अंतर्गत एक प्रणाली का अवशेष अन्य प्रणाली के पोषक के रूप में उपयोग होता था। तात्पर्य यह है कि खेती बागवानी शहरो, गांवों, खलिहानों के सड़ने वाले अवशेष को जैविक खाद के रूप में परिवर्तित कर फसलोत्पादन के रूप में होता था तथा खेतों एवं बागवानी से प्राप्त उत्पादन प्राणी मात्र के उदर पोषण के साथ उद्योगों के उपयोग में आता था। यह थी हमारी संपूर्ण व्यवस्था, स्वस्थ खाद व्यवस्था जिससे ही स्वस्थ था हमारा शरीर और मन, जिससे ही स्वस्थ थे हमारे विचार था।

आज के समय में शुध्द आहार ही स्वस्थ शरीर का आधार बन गया है। हमारे चिकित्सक बंधुओं के द्वारा जैविक आहार के विषय में लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि वे रोगियों को ऐसे आहार की अनुशंसा कर सकें।

किशोर राजपुत ने कहा कि आज पुनः अवश्यकता है हम सबके अन्नदाता को सहारा देने की, शिक्षण देने की, परंपरागत ग्रामीण स्वस्थ खाद व्यवस्था लागू करने की। अन्न एवं अन्नदाता के महत्व को समझाने की। स्वस्थ अन्न के उपयोगकर्ता जब तैयार हो जाएंगे तो स्वस्थ अन्न उगाने वाले स्वतः ही तैयार हो जायेंगे। चाहे वह छोटा कृषक हो या बड़ा कृषक, अधिकांश बाजारोंन्मुखी खेती करते हैं। अच्छी गुणवत्ता वाला अन्न का दाम यदि अच्छा मिलने लगे तो हम कामयाब हो सकेगे जैविक अन्न उगाने में। मांग तैयार कर ही दाम मिल सकेंगे। दाम मिलेंगे तो लोग अपनायेंगे।

Share this

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *