संजय महिलांग/नवागढ़ : रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, रोगनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से कृषि प्रधान नवागढ़ तहसील में सुगंधित क़िस्म के चावल की खुशबू समाप्त हो गई है। अब खुशबूदार चावल केवल महीन चावल के रूप में परिवर्तित होकर रह गया है। जैविक खेती करके ही खुशबूदार चावल की प्रजातियों को दुबारा सुगंधित किया जा सकता है, मगर अधिक उत्पादन के फेर में किसान सुगंधित धान का उत्पादन लेना ही भूल गए हैं।
कृषि प्रधान जिले के नवागढ़ तहसील के किसान अब अधिक उत्पादन देने वाले स्वर्णा धान का उपयोग कर रहे हैं। खेतों से विष्णुभोग, दूबराज, श्यामजीरा, तुलसी मंजरी, जवाफूल, गुरमटिया, सफरी, बासमती, रानी काजर और लुचाई जैसी सुगंधित और देशी धान की फसलें गायब हो चुकी है। दो दशक पूर्व इन प्रजातियों के चावल की खुश्बू से पूरा जिला महकता था, लेकिन आज कही भी खुशबूदार चावल की सुगंध नहीं मिलती है। जानकारों का मानना है कि 90 के दशक में उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद भारत सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में निजी पूंजी निवेश और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को प्रवेश दिए जाने के बाद से हाइब्रिड धान के प्रजातियों की बाढ़ सी आ गई। अधिक उत्पादन के लालच में किसान इस कदर फंसे हुए हैं कि उन्हें हाइब्रिड बीज के प्रयोग से होने वाले खतरे बिल्कुल ही दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। किसान आज अधिक उत्पादन को देखते हुए बड़ी मात्रा में स्वर्णा, 1001, 1010 जैसे धान बीज का उपयोग कर रहे हैं।
खेतों मे हाइब्रिड धान की खेती हो रही है। वर्तमान में खेत जुताई कर रहे है।
नवागढ़ के युवा किसान किशोर राजपूत ने बताया कि चार पांच सालों से 56 प्रकार की सुगंधित और सामान्य धान के फसलों की नर्सरी तैयार किया जाता है। किसानों को मुफ्त में लगाने के लिए दिया जाता है लेकिन इसके बाद भी किसान सुगंधित धान की कम उत्पादन के चलते इसका पैदावार नहीं लेते हैं। इस साल भी दूबराज व अन्य प्रजातियों के नर्सरी तैयार किया जा रहा है।
किसानों को प्रेरित करने कृषि विभाग काे देना होगा ध्यान
विलुप्त हो रहे धानों की किस्म के तरफ कृषि विभाग द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है और न ही कृषि अमला जिले के किसानों को लुप्त हो रहे धान की प्रजातियों को खेतों में लगाने के लिए प्रेरित कर पा रहा है। किशोर राजपूत का कहना है कि विभाग द्वारा अगर किसानों को पुराने पद्धति से खेती करने और धानों की किस्म को लगाने की समझाइश दी जाए तो काफी हद तक विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके धान की प्रजातियों को बचाया जा सकता है।
सुगंधित धान बीज को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजने की जरूरत
किशोर राजपूत ने बताया कि हाईब्रीड धान टर्मिनेट होता है अर्थात किसान धान से धान नहीं उगा सकते। हर सीजन में किसान को बाजार से धान का बीज खरीदना पड़ता है। उन्होंने बताया कि हाईब्रीड और अधिक उत्पादन देने वाले धान के प्रचलन में आने से किसान अब सुगंधित धान का उत्पादन बंद कर चुके हैं। कुछ किसान ही अपने 10-12 एकड़ खेत में से एक दो एकड़ में ही सुगंधित धान की फसल लेते हैं। पहले के किसानों में धान के बीज को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेज कर रखने की परंपरा थी, जो आज के समय खत्म हो चुका है।

