क्राइम वॉच

एनकाउंटर में मारे गए अंशु दीक्षित की कहानी: बहन से छेड़खानी का एंगल, फिर अपराध की दुनिया में कदम…

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चित्रकूट : उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जेल में हुई फायरिंग में तीन बदमाश मारे गए हैं. इनमें से एक अंशु दीक्षित है. अंशु दीक्षित ने ही दूसरे गुट के दो बदमाशों एक मुकीम काला और मेराज पर फायरिंग करके हत्या कर दी थी, फिर अंशु की पुलिस से भी मुठभेड़ हो गई, जिसमें पुलिस ने अंशु को मार गिराया. अंशु कैसे गुंडा बना और कैसे उसका रुतबा बढ़ता गया ये कहानी अपने आप में दिलचस्प है.

04 दिसंबर 2014 की सर्द रात को गोरखपुर की स्पेशल टास्क फोर्स ने एक मुठभेड़ में पंद्रह हजार के इनामी खतरनाक शार्प शूटर अंशु दीक्षित को गिरफ्तार कर लिया था. अंशु के पास से एक 09 एमएम पिस्टल, कट्टा, कारतूस, मोबाइल व फर्जी पहचान पत्र बरामद हुए थे. अंशु पर भोपाल रेंज के डीआइजी ने 10 हजार व डीआइजी जीआरपी लखनऊ ने पांच हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा था. पुलिस की गिरफ्त में आये अंशु ने कई बड़ी वारदातों को अंजाम दे चुका था.

अंशु की घेराबंदी करने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स के एडिशनल एसपी एस आनंद और तत्कालीन एडिशनल एसपी डॉ अरविंद चतुर्वेदी ने जबरदस्त प्लानिंग की इस काम को अंजाम देने के लिए डिप्टी एसपी विकास त्रिपाठी को लगाया गया था. यूपी एसटीएफ के उपाधीक्षक विकास त्रिपाठी के नेतृत्व में टीम को इस शार्प शूटर के गोरखनाथ थाना क्षेत्र में होने की सूचना मिली थी. सूचना पर एसटीएफ की टीम सक्रिय हुई थी और कुछ देर बाद ही इनका आमना- सामना हो गया. पुलिस को देखते ही अंशु फायर कर भागने लगा था, लेकिन पुलिस की टीम ने उसे दबोच लिया.

अंशु का आपराधिक सफर सीतापुर जिले के मानकपुर से शुरू हुआ. कुड़रा बनी निवासी अंशु दीक्षित लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के बाद अपराधियों के संपर्क में आया. कई वारदातों को अंजाम देकर उसने अपना खौफ कायम किया. एसटीएफ की मानें तो अंशु ने सुधाकर पांडेय, जय सिंह, संतोष सिंह व विक्रांत मिश्र के साथ मिलकर कई हत्याएं की हैं.

फौजी व सीएमओ हत्याकांड में भी नाम
2008 में वह गोपालगंज (बिहार) के भोरे में अवैध असलहों के साथ पकड़ा गया था. 17 अक्टूबर 2013 को पेशी से लौटते समय वह सीतापुर रेलवे स्टेशन पर सिपाहियों को जहरीला पदार्थ खिलाकर फायर करते हुए फरार हो गया था. पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद 27 सितंबर 2014 को अंशु की भोपाल में मौजूदगी की सूचना पर एसटीएफ लखनऊ के दारोगा संदीप मिश्र उसे गिरफ्तार करने गये थे.

संदीप मिश्र ने भोपाल क्राइम ब्रांच की टीम के साथ उसे पकड़ने के लिए घेराबंदी की, तो शार्प शूटर फायरिंग कर भाग निकला था. इस गोलीबारी में दारोगा संदीप मिश्र को दो तथा क्राइम ब्रांच भोपाल के सिपाही राघवेंद्र को एक गोली लगी थी. पेशेवर शूटर का लखनऊ में गोरखपुर के तत्कालीन सभासद फौजी व सीएमओ हत्याकांड में भी नाम आया था.

अपराध की दुनिया के सफर में शामिल होने की कहानी
पुलिस कस्टडी के दौरान अंशु ने अपने अपराध की दुनिया के सफर में शामिल होने की एक कहानी भी पुलिस को सुनाई थी. उस कहानी के मुताबिक उसने पुलिस वालों को बताया कि एक राजनैतिक पार्टी के नेता का बेटा उसकी बहन से छेड़छाड़ करता था. ऐसी हरकत से मना करने पर उस नेता के बेटे ने गुंडई की. सरेआम पिटाई करने के बाद अंशु पर गोली दाग दी.

नेता के बेटे के द्वारा किए गए हमले में अंशु के पैर में गोली लगी. जब वो शिकायत लेकर थाने गया तो एसओ ने कार्रवाई करने से मना कर दिया. इस दौरान उसके पूरे परिवार का उत्पीड़न किया गया. इस उत्पीड़न की वजह से उसकी भाभी को काफी तकलीफ उठानी पड़ी, इस दौरान भाभी का गर्भपात ही गया. उसके बाद से अंशु ने ठान लिया कि वह अब बदला लेकर ही रहेगा. अंशु को फैजाबाद के एक नेता का वरदहस्त मिला, इसलिए वह आराम से अपने काम को अंजाम देता गया.

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