संजय महिलांग/ नवागढ़ : समृद्धि स्वदेशी बीज बैंक नवागढ़ जिला बेमेतरा के संस्थापक अध्यक्ष किशोर राजपूत ने किसान भाइयों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अब विदेशी कंपनीयो की जेनेटिक हाई ब्रीड बीज खरीदना और लगाना बंद कर अपनी देशी बीज बनाना एवं लगाना शुरू करना होगा तभी सही मायने में बीज के मामलों में किसान आत्मनिर्भर बन सकता है।
6 जनरेशन बाद बीज सातवे जनरेशन में अपना जेनेटिक कैरक्टर बदल देते है l किसी भी बीज को जिसे 6 या अधिक वर्षों से लगातार बोया जा रहा है उसे परंपरागत बीज के नाम से जाना जाता है। समझने वाली बात यह है कि इन बीजों को किसान अपने पास संरक्षित कर रखे और इन्हें बार बार बोए।
ध्यान दें, मानव को ईश्वर ने बीज बनाने क्षमता नहीं दी है, मानव को भगवान ने बीज पहचानने, परखने, संवर्धित करने और संरक्षित करने की पूरी समझ और कला दी है। इस तरह से मनुष्य एक श्रेष्ठतम बीज की खोज कर सकता है। अंततः हम सभी बीज ही हैं। जैसे खुद को जाना वैसे ही बीज को जानें, प्रकृति निरंतर इस कार्य मे लगी है जो श्रेष्ठ होगा वही बचेगा, यह चुनाव शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक एवम सामाजिक विकास निर्धारित करती है कि किसका विकास कितना हुआ। प्रकृति में इसी विकासक्रम में ही सम्पूर्ण जीवजगत चल रहा है।
कीट, रोग, प्राकृतिक घटनाएं, प्राकृतिक आपदा एवम अन्य सभी किस्म की बाधा ईश्वर रचित परीक्षा की कसौटी है जिसमे वह स्वयं द्वारा निर्मित जीवों के वंशों को निरंतर सुधार प्रक्रिया में डालता है और परखता है जो कमजोर हैं उनकी छटनी करता है और जो मजबूत हैं उन्हें आगे बढ़ाता है कुछ लोग इसे ही कर्मफल का सिद्धांत कहें तो यह कतई गलत नहीं। अर्थात उसका कार्य है जगत बनाना, बीज बनाना, अनुकूल परिवेश बनाना जिसमे वह सबका भरण पोषण की व्यवस्था करता है, फिर उपदेश करता है कि इस विश्व स्वरूप पाठशाला में कैसे जिया जाए यहाँ के संविधान को वेद के माध्यम से ऋषियों के वाणी से और महात्माओं, वैज्ञानिकों, युग दृष्टवों के माध्यम से समय समय पर प्रकट करता रहता है।
ईश्वर एक दक्ष कृषक ही है जो एक समय पर अनेकों किस्म के बीज बोता है और सभी फसलों का भरण पोषण करता है सभी का ख्याल रखता है अंत में कुछ अच्छे बीजों को आगे की खेती के लिए सुरक्षित रख लेता है ताकि उसे तो बार बार सृष्टि रचानी है बार बार ऋषि, तपस्वी, योगी, महापुरुष, पंडित, वीर योद्धा, राजनेता, अभिनेता, कलाकार, कौशलवान आत्माओं की आवश्यकता पड़ेगी ही तो इसलिए वो इन्हें अवश्य ही सहेज के रखता होगा, बाकी बचों को अपना आहार बनाता होगा ठीक वैसे ही जैसे बाकी के फसलों को हम अपना आहार बनाते हैं। *इस तरह ईश्वर भी हमारे जैसा ही होगा ऐसा पूर्ण विश्वास उसके जगत रचना को देख कर और उसके जगत संचालन को देख कर विश्वास होता है।