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पंडरिया जल संसाधन विभाग में हो रहा बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी नहीं दे रहे अधिकारी कानून की उड़ा रहे धज्जियां

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पंडरिया –जल संसाधन विभाग, उपसंभाग पंडरिया एक बार फिर विवादों और सुर्खियों में है। विभाग पर समय समय पर विभिन्न कार्यों में विभागीय अधिकारीयों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है l मगर इस बार यह विवाद सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी नहीं देने के कारण उत्पन्न हुआ है l भाजपा के पूर्व मंडल महामंत्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता पदमराज टंडन ने विभाग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में कराए गए कार्यों की जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगे जाने के बावजूद विभाग ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है। टंडन का आरोप है कि यह लापरवाही नहीं बल्कि जानबूझकर किए गए भ्रष्टाचार को छिपाने की कोशिश है।
जानकारी न देना कानून का उल्लंघन
18 मार्च 2025 को टंडन ने जल संसाधन उपसंभाग,पंडरिया के कार्यपालन अधिकारी को आवेदन प्रस्तुत कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में कराए गए समस्त पीसवर्क (निर्माण कार्य) एवं माप पुस्तिकाओं की छायाप्रति की मांग की थी। सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 6(1) के अंतर्गत दी गई इस सूचना को अधिकतम 30 दिनों के भीतर देना अनिवार्य है,परंतु निर्धारित समयसीमा बीत जाने के बावजूद भी उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला।
इसके बाद टंडन ने 30 अप्रैल 2025 को प्रथम अपील दाखिल की,जिसकी सुनवाई पहले 13 मई को तय थी लेकिन सुशासन तिहार शिविर के कारण तारीख बढ़ाकर 16 मई कर दी गई। निर्धारित तिथि पर सुनवाई तो हुई,लेकिन जनसूचना अधिकारी अनुपस्थित रहे। मोबाइल के माध्यम से यह बताया गया कि वे “बकेला व्यपवर्तन में कटऑफ कार्य” में व्यस्त हैं।
अपीलीय अधिकारी ने भी दिया था स्पष्ट निर्देश
सुनवाई के दौरान अपीलीय अधिकारी एवं कार्यपालन अभियंता जल संसाधन संभाग, कवर्धा एम.के.पराते ने आदेश पारित करते हुए जनसूचना अधिकारी को एक सप्ताह के भीतर मांगी गई जानकारी निशुल्क प्रदान करने का निर्देश दिया था। आदेश दिनांक 16 मई 2025 को जारी किया गया, लेकिन आज दिनांक 1 जून 2025 तक भी सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई है।
टंडन ने कहा, “यह न केवल सूचना के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है,बल्कि अपीलीय अधिकारी के आदेश की सीधी अवहेलना भी है। विभागीय अधिकारी कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं।”
सूचना के अधिकार का महत्व
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारतीय नागरिकों को सरकारी विभागों से पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने का अधिकार देता है। अधिनियम की धारा 6(1) के तहत कोई भी नागरिक किसी भी विभाग से जानकारी मांग सकता है,जबकि धारा 7(1) में स्पष्ट किया गया है कि यह जानकारी 30 दिनों के भीतर प्रदान की जानी चाहिए। यदि जानकारी नहीं दी जाती,तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक और दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है।
RTI अधिनियम भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक सशक्त औजार है,लेकिन जब अधिकारी ही इसकी अवहेलना करने लगें, तो यह लोकतंत्र की नींव पर प्रश्नचिन्ह बन जाता है।
भ्रस्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश
पदमराज टंडन ने दावा किया है कि जल संसाधन विभाग में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्यों में गड़बड़ियां हुई हैं। उन्होंने कहा कि यदि विभाग द्वारा माप पुस्तिका और पीसवर्क की जानकारी सामने लाई जाती है, तो अनेक अनियमितताएं उजागर हो सकती हैं। यही कारण है कि विभाग जानबूझकर सूचना देने से कतरा रहा है।उन्होंने कहा “मैं इस मामले को लेकर उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा एवं कलेक्टर कबीरधाम से मिलूंगा। यदि जल्द जानकारी नहीं दी जाती है,तो जनहित में आंदोलन की भी रूपरेखा तय करूंगा,”
पारदर्शिता की मांग और जन जागरूकता
यह प्रकरण एक बार फिर यह साबित करता है कि कई सरकारी विभागों में RTI का पालन केवल औपचारिकता बनकर रह गया है। जब विभागीय अधिकारी आदेशों का पालन नहीं करते,तो आम नागरिकों का कानून और प्रशासन में विश्वास डगमगाने लगता है। पदमराज टंडन जैसे जागरूक नागरिकों की पहल से ही व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं और जवाबदेही तय होती है। RTI सिर्फ एक कानूनी अधिकार नहीं बल्कि नागरिकों का लोकतांत्रिक अस्त्र है,जिसे हर व्यक्ति को जानना और उपयोग करना चाहिए।

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