रायपुर वॉच

THE INSIDE STORY:तिरछी नजर👀 : वसूली एजेंट बन गए पुलिस अफसर !!

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THE INSIDE STORY:तिरछी नजर👀 : वसूली एजेंट बन गए पुलिस अफसर !!

डीजीपी अशोक जुनेजा ने पहली बार सभी एसपी की मैराथन बैठक लेकर जोरदार खिंचाई की। इस दौरान दो इसमें किस्से भी सुनाएगए।

रायपुर|एक वरिष्ठ पुलिस अफसर ने कहा कि एक व्यक्ति को धोखाधड़ी के आरोप में हवाई जहाज से लेकर रायपुर लाया गया जबकि इसकेखिलाफ न अपराध दर्ज है न ही कोई नोटिस दी गई है। पुलिस की लिखा पढ़ी में भी इस घटना का कोई उल्लेख नहीं है। क्या हमवसूली एजेंट की तरह काम कर रहे हैं ? और पूछा कि फ्लाईट की टिकिट किसने कटवाई।

सीनियर अफसर ने कहा कि किसी और की वसूली का माध्यम पुलिस नहीं बने। दूसरा एक और किस्सा मीटिंग में सुनाया गया कि एकअदना पुलिस का सिपाही दुबई जाकर करोड़ों रुपयों का लेनदेन करता है इसकी जानकारी पुलिस को थी या नहीं? अगर थी तो भीगंभीर अपराध है और नहीं थी तो एसपी बनने लायक नहीं है। कंट्रोल रूम है पर काम नहीं कर रहे हैं। आधे के फोन खराब हैं। सूचना तंत्रकमजोर होने पर मैदानी इलाके के एसपी को फटकार ज्यादा लगाई गयी।

दो माह पहले थानों के सामने होल्डिंग हटाने का विधिवत आदेश पुलिस मुख्यालय से निकला जिसका पालन प्रदेश के कोई थानेदार नेनहीं किए। ऐसे में कानून व्यवस्था प्रदेश की खराब होना लाजिमी है। पहले तो कई जगह से दिशा– निर्देश मिलते थे अब सरकार ने खुलीछूट दे दी है लेकिन अफसरों की आदत बिगड़ चुकी है।

राईस मिलर्स ने घटाया रेट

प्रदेश में धान खरीदी भारी जद्दोजहद के बाद शुरु हो गयी है। कई विकल्पों पर अफसरों ने चर्चा की लेकिन मोदी की गारंटी को लागूकरना है इसलिए अफसर कामयाब नहीं हो पाए।

पिछली सरकार में राईस मिलरों ने कांग्रेस कोषाध्यक्ष के माध्यम से मिलिंग की दर बढ़ाकर 40 रूपए टन से बढ़ाकर 110 सौ रुपये करदिया था इससे राईस मिलर लबालब हो गए और अवैध वसूली जमकर हुई।

विष्णु देव साय सरकार ने इस नियम में फेरबदल कर दिया है। अब 60 रुपये प्रति टन कर दिया गया है। रेट घटने का असर किसको– किसको पड़ता है देखना है। इस तरह की अवैध वसूली के चक्कर में कुछ अफसर जेल में है और जांच चल रही है। वर्तमान सरकार मेंभी कुछ लोगों ने इस दिशा में कोशिश की थी। इसको रोकने कुछ हद तक कामयाबी मिली है ।

अपैक्स–जिला सहकारी बैंक में नियुक्ति शीघ्र

प्रदेश में धान आधारित राजनीति होने की संभावना देखते हुए भाजपा किसानों पर फोकस कर रही है। निगम मंडलों में नियुक्ति कीसुगबुगाहट फिर होने लगी है। पंचायत चुनाव और नगरीय निकाय चुनाव के पहले इस पर फैसला लेने का दबाव है लेकिन राज्य सरकारअपैक्स बैंक के अध्यक्ष और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्षों की नियुक्ति करने का प्रयास जरुर कर रही है। जिलों से नाम आ गए हैं।प्रदेश स्तर पर कई किसान नेता सहित कई को एडजेस्ट करने की तैयारी है।

कांग्रेस–भाजपा की जीत, अपने–अपने दावे

पहले रायपुर शहर और बाद में रायपुर दक्षिण सीट से जब तक बृजमोहन अग्रवाल चुनाव लड़ते रहे तब तक वहां लड़ाई वहां एकतरफाही रही। तब जीत–हार से ज्यादा वहां सिर्फ लीड को लेकर कयास लगते थे। लेकिन यह पहला चुनाव है जब बृजमोहन के गढ़ पर उनकेकरीबी और पसंदीदा सुनील सोनी मैदान में उतरे। कांग्रेस ने उनके मुकाबले किसी बड़े चेहरे के बजाय युवा प्रत्याशी आकाश शर्मा कोमैदान में उतारा।
इस सीट पर पहली बार दोनों ओर के सारे दिग्गज नेता चुनाव प्रचार के लिए उतरे, लेकिन माहौल ऐसा रहा कि मतदान का आंकड़ा दसफीसदी नीचे आ गया। दक्षिण के जिन क्षेत्रों चंगोराभाठा, कुशालपुर, मठपुरैना, लाखे नगर, भांठागांव, बैरन बाजार से भारी बढ़त लेकरअपने प्रतिद्वंदी को करारी शिकस्त देते रहे वहां भी इस बार मतदान का प्रतिशत भारी गिर गया, बल्कि कांग्रेस को जिन क्षेत्रों सुन्दर नगर, ब्राह्मण पारा, सुन्दर नगर, मठपारा, नया पारा, छोटा पारा में भाजपा के मुकाबले अच्छी बढ़त की उम्मीद थी, वहां भी मतदाताओं नेउत्साह नहीं दिखाया।

मतदान का आंकड़ा भी ऐसा आया 50.50 फीसदी। उसने दोनों को जीत का आधा –आधा भरोसा करने का मौका दे दिया। मतदान केकम आंकड़े के बावजूद दोनों ओर के नेता और कार्यकर्ता अपनी–अपनी जीत के दावे करते घूम रहे हैं। अगले 4 साल इस सीट परप्रतिनिधित्व का मौका किसे मिलेगा इसका फैसला तो 23 नवम्बर को ही होगा तब तक सबकों खुश होने का हक तो है ही।
प्रत्याशी का दर्द

चुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए प्रत्याशी हरसंभव प्रयास करते हैं। रायपुर दक्षिण में एक प्रत्याशी की तरफ से दो दिन तकपापड़ पानी का दौर चला। मगर जिन्होंने पापड़ पानी का‌ लुफ्त उठाया, उनमें से आधे लोग वोट डालने ही नहीं गए।

एक प्रत्याशी के करीबियों ने मातर पूजा के दिन उन्हें सोंटा मरवाने के लिए तैयार कर लिया। भीड़भाड़ भी अच्छी खासी थी।जिसे सोंटामारने की जिम्मेदारी दी गई थी वो नशे में था। फिर क्या था नशे में प्रत्याशी के हाथ में इतने जोर जोर से सोंटा लगाए कि प्रत्याशी केहाथ में सूजन आ गया। पूरे चुनाव भर दर्द सहना पड़ा।
मंत्री स्थापना का मजा

मंत्री स्थापना का अपना अलग ही मजा है। कुछ तो ट्वेंटी–ट्वेंटी के अंदाज में बैटिंग करने लगे हैं। ऐसे ही एक ओपनर बैट्समैन कोशिकायतों के बाद मंत्रीजी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।

दिलचस्प बात ये है कि मंत्री स्थापना से बाहर होने के बाद भी पूर्व हो चुके ओएसडी की हैसियत में कमी नहीं आई है।

पूर्व ओएसडी को एक बिल्डर ने अपना पार्टनर बना लिया है। यानी छह महीने में उन्होंने वो सबकुछ हासिल कर लिया, जिसके लिए लोगजिदंगीभर मेहनत करते हैं। ऐसे ही एक मंत्री के यहां अघोषित काम देख रहे रिटायर्ड स्कूल अफसर तो शानदार पब्लिक स्कूल चल रहे हैं।

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