रतनपुर

लखनी देवी मंदिर की विशेषता है धनलक्ष्मी और जवारा

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लखनी देवी मंदिर की विशेषता है धनलक्ष्मी और जवारा

रतनपुर से वासित अली की रिपोर्ट

रतनपुर पहाड़ी पर स्थित लखनी देवी मंदिर जहां पर जवारा बोया जाता है इस जावरा की विशेषता भी प्राकृतिक रूप से देखा जाता है कि जितना अच्छा जावरा होता है उतनी अच्छी फसल इस क्षेत्र में होने का अनुमान लगाया जाता है इस बार 825 जवारा और 125 ज्योति कलश के साथ लखनी देवी मंदिर जगमगा रहा है जिसे देखने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लग रही है इस मंदिर का कुछ पुराना इतिहास भी है

राजा रत्नदेव के मंत्री ने बनवाया था रतनपुर में लखनी देवी मंदिर,
छत्तीसगढ़ में एक मात्र लक्ष्मी का प्राचीन मंदिर इकबीरा पहाड़ी रतनपुर कोटा मार्ग पर स्थित है। धन वैभव, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी का यह प्राचीन मंदिर हजारों-लाखों भक्तों के आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर में पवित्र भाव से देवी की आराधना करने से दुख, दरिद्रय, रोग, शोक व त्रितापों का शमन होता है और जीवन में अनुकूलता प्राप्त होती है।

छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी कहे जाने वाले रतनपुर में सैकड़ों की संख्या में मंदिर विद्यमान हैं और इन सभी मंदिरों का अपना-अपना महत्व है। इन्हीं में से एक है देवी महालक्ष्मी का मंदिर। यह मंदिर लखनी देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। लखनी देवी शब्द लक्ष्मी का ही अपभ्रंश है, जो साधारण बोलचाल की भाषा में रूढ़ हो गया है, जिस पर्वत पर यह मंदिर स्थित है इसके भी कई नाम है। इसे इकबीरा पर्वत वाराह पर्वत, श्री पर्वत व लक्ष्मीधाम पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के प्रमुख मंत्री गंगाधर ने साल 1179 में कराया था। उस समय इस मंदिर में जिस देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी उसे इकबीरा देवी तथा स्तंभिनी देवी कहा जाता था। प्राचीन किवंदती के अनुसार राजा रत्नदेव तृतीय के साल 1178 में राज्यारोहण करते ही सारी प्रजा दुर्भिक्ष, अकाल व महामारी से संत्रस्त हो उठी थी और राजकोष खाली हो चुका था। ऐसी विकट स्थिति में राजा के विद्वान मंत्री पंडित गंगाधर ने लक्ष्मी देवी मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर के बनते ही अकाल व महामारी राज्य से खत्म हो गई और सुख, समृद्धि, खुशहाली फिर से लौट आई। इस मंदिर की आकृति शास्त्रों में वर्णित पुष्पक विमान की तरह और इसके अंदर श्रीयंत्र उत्कीर्ण है।

लखनी देवी मंदिर में चैत्र नवरात्र में ज्योति कलश स्थापना के साथ ही जवारा बोने का विशेष महत्व है

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