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कृषि कानूनों के विरोध के साथ साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का शक्ति परीक्षण भी हो गया

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  • सचिन पायलट को भी आना पड़ा। निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी जुटाया
  • राज्यपाल कलराज मिश्र के विरुद्ध फिर दिखाई तल्खी

राजस्थान : तीन जनवरी को शहीद स्मारक पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में पूरी कांग्रेस सरकार उपस्थित रही। केन्द्र सरकार के कृषि कानूनों के विरोध तथा दिल्ली में हो रहे किसानो के धरने के समर्थन में कांग्रेस की ओर से एक दिवसीय धरने का आयोजन किया गया था। आमतौर पर ऐसे प्रदर्शनों एवं धरनों में पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता उपस्थित रहते हैं, लेकिन 3 जनवरी के धरने में ज्यादा फोकस कांग्रेस के विधायकों एवं अशोक गहलोत की सरकार को समर्थन देने वाले 13 निर्दलीय विधायकों की मौजूदगी पर रहा। कांग्रेस भले ही इसे कृषि कानूनों के विरोध में धरना कहे, लेकिन यह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का शक्तिपरीक्षण भी रहा। माना जा रहा है कि इस धरने में 120 से भी ज्यादा विधायक मौजूद थे। 200 विधायकों में से 120 की उपस्थिति बताती है कि प्रदेश में गहलोत सरकार को कोई खतरा नहीं है और अब कांग्रेस के विधायकों में भी गुटबाजी नहीं है। गत वर्ष कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ दिल्ली में एक माह तक डेरा जमाने वाले सचिन पायलट भी तीन जनवरी को सीएम गहलोत के साथ नजर आए। यह शक्ति परीक्षण इसलिए भी मायने रखता है कि गत माह ही सीएम गहलोत ने कहा था कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश फिर से हो रही है। यानि गहलोत ने सरकार गिराने की साजिशों पर भी पानी फेर दिया है। कांग्रेस के इस धरने से साफ हो गया है कि राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में अशोक गहलोत ही सबसे बड़े नेता है और उनके नेतृत्व को चुनौती नहीं दी जा सकती। धरने की एक खास बात यह रही कि गत वर्ष जो विधायक दिल्ली गए थे, उनमें से अधिकांश आज गहलोत के प्रति वफादारी दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे। यह दिखाने की कोशिश की जाती रही कि वे मुख्यमंत्री के साथ ही हैं। दिल्ली से लौटने के बाद नेताओं ने भले ही कितने भी दावे किए हैं, लेकिन राजस्थान में सरकार और संगठन में कोई बदलाव नहीं हुआ। 6 माह बाद भी गोविंद सिंह डोटासरा अकेले ही प्रदेश कांग्रेस को चला रहे हैं तथा सरकार में एक भी नए मंत्री को शामिल नहीं किया गया है। जिन्हें हटाया गया था वो आज भी सड़क पर ही हैं। राजनीतिक नियुक्यिां भी गहलोत अपने नज़रिए से कर रहे हैं। निर्दलीय विधायकों की उपस्थिति भी बताती है कि गहलोत के नेतृत्व को कोई चुनौती नहीं है।
राज्यपाल पर फिर तल्खी:
जुलाई अगस्त में विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए सीएम गहलोत के नेतृत्व में राजभवन में धरना दिया गया। उस समय राज्यपाल कलराज मिश्र और सीएम गहलोत के बीच तल्खी देखी गई। ऐसी ही तल्खी तीन जनवरी को सरकार के धरने में भी देखी गई। सीएम गहलेत सहित कांग्रेस के नेताओं ने राज्यपाल की कार्यशैली की आलोचना की। सभी का कहना रहा कि कृषि कानूनों को लेकर विधानसभा में जो संशोधन किए उनके प्रस्तावों को राज्यपाल ने अभी तक भी राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा है।

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