भोरमदेव मंदिर में दर्शनार्थियों पर्यटकों की भारी भीड़
– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा बिलासपुर से 135 कि.मी. दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। इस मंदिर के दर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ। और हम सब पहुंच गए भोरमदेव भगवान के मंदिर । हमने देखा कि यहां पहले से ही पर्यटकों की काफी भीड़ लगी हुई है सभी दर्शन करने और आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखने में मग्न थे। यहां हमने भगवान शिव के दर्शन किए एवं विशाल तालाब में बोटिंग का भी आनंद लिया। परिसर में चारों तरफ स्थित मैकल पर्वतों से घिरा हुआ यह मंदिर परिसर बड़ा ही मनभावन व आकर्षक लगता है। चारों तरफ हरी-भरी वादियां और मंदिर परिसर के पीछे विशाल तालाब जिसमें कई तरह की पक्षियों का झुंड तैरते हुए दिखता है जो बहुत ही चित्ताकर्षक लगता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहाँ मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है।मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है। मंदिर के चारो ओर मैकल पर्वतसमूह है जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है।
इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है जिसके कारण लोग इस मंदिर को ‘छत्तीसगढ का खजुराहो’ भी कहते हैं। यह मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे एवं वे भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव, शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पडा। भोरमदेव मंदिर के समीप ही करीब एक किलोमीटर दूर मड़वा महल नामक शिव जी को समर्पित एक और मंदिर है। जिसके गर्भगृह के साथ उसके विशाल मंडप की विशेषता के कारण इस मंदिर का नाम मडवा मंदिर या मड़वा महल रखा गया है। यह मंदिर भी नागर शैली में बहुत ही आकर्षक है निश्चय ही आप लोगों को यहां आने पर शांति और सुकून प्राप्त होगा। इसलिए जल्द से जल्द यहां आने की योजना तैयार करें, और झटपट पहुंच जाए भोरमदेव मंदिर।