बिलासपुर

बिलासपुर को आजाद करने के दावे के साथ आजाद मंच ने किया नगर में प्रस्तावित फ्लाई ओवर का विरोध मंच का विरोध क्या न्याय संगत है?

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बिलासपुर को आजाद करने के दावे के साथ आजाद मंच ने किया नगर में प्रस्तावित फ्लाई ओवर का विरोध
मंच का विरोध क्या न्याय संगत है?

बिलासपुर । सुरेश सिंह बैस-नगर का यह दुर्भाग्य है कि इसे अव्वल तो कुछ मिलता नहीं और अगर बड़ी मुश्किल से कुछ मिल जाए तो अचानक कुछ लोग उसकी सराहना करने की बजाय विरोध करने पर उतर आते हैं। ऐसे ही एक संस्था के लोग नगर को मिलने वाली सौगात फ्लाईओवर के विरोध में आंदोलन करने की बात कह रहे है।
शहर में बढ़ते ट्रैफिक और सड़कों पर वाहनों के अतिरिक्त दबाव को देखते हुए शासन ने 70 करोड़ की लागत से लिंक रोड पर 1900 मी लंबा फ्लाईओवर बनाने का निर्णय लिया है। 7 मीटर चौड़े टू लेन फ्लाईओवर के बन जाने से सीएमडी चौक से लोग सीधे राजेंद्र नगर चौक तक पहुंच सकेंगे। इससे लिंक रोड में, खास कर अग्रसेन चौक और सत्यम चौक में बेवजह लगने वाली भीड़ और यातायात दबाव को कम किया जा सकेगा। सभी बड़े महानगरों में ऐसी ही व्यवस्था है। यहां तक की राजधानी रायपुर में भी ऐसे ही कई फ्लाईओवर मौजूद है। बिलासपुर को आज तक केवल एक ही फ्लाई ओवर महाराणा प्रताप चौक से रायपुर रोड में मिला है। बड़े प्रयासों से एक और फ्लाई ओवर को मंजूरी मिली नहीं की कुछ लोग इसके विरोध में उतर आए। इसके पीछे चंद लोगों के निजी स्वार्थ को वजह बताया जा रहा है।
पुरानी कहावत है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। सच्चाई यही है कि विकास की भी कीमत चुकानी पड़ती है। आजाद मंच नाम की एक अचानक प्रगट हुई संस्था के विक्रम तिवारी ने बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि इस फ्लाई ओवर के बन जाने से कुछ व्यापारियों को नुकसान होगा। घरों की कीमत गिर जाएगी। लेकिन यह तो बड़ी ही बचकानी दलील है। शहर विकास और पूरे शहर की आवश्यकता को प्राथमिकता देने की बजाय कुछ लोगों के मकान दुकान की कीमत गिर जाएगी। यह दलील देकर विकास को रोकना कहां तक सही है। ऐसे लोग योजना में कमीशन खोरी होने की आशंका जाहिर कर खुद को जस्टिफाई भी कर रहे हैं।
लेकिन ऐसे बेवजह के विरोध से उनके ही उद्देश्य पर भी सवालिया निशान लगने लगे हैं। इस बात की भी पूरी आशंका है कि यह विरोध राजनीतिक मंशा से की जा रही है। । आने वाले दिनों में चुनाव भी है, इसलिए इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह विरोध पूरी तरह से चुनावी विरोध है। एक तरफ यह लोग कह रहे हैं कि बिलासपुर को विकास के लिए परियोजनाएं नहीं मिलती, और दूसरी ओर खुद ही विकास के बाधक बन रहे हैं। अपनी बात रखते हुए आजाद मंच ने नगर विधायक पर भी निशाने लगाए । आजाद मंच ने सीएमडी चौक से लेकर सत्यम चौक तक इस मुद्दे को लेकर नुक्कड़ सभा के माध्यम से विरोध करने का निर्णय लिया है। पर एक सामान्य नागरिक को लगता नहीं कि उनके इस अजीबोगरीब आंदोलन को शायद ही जन समर्थन मिलेगा। सामान्य तौर पर जब भी कोई फ्लाईओवर या ओवर ब्रिज बनता है तो उसके नीचे की सड़क से आवाजाही अपेक्षाकृत कम हो जाती है, जिस कारण से व्यापार व्यवसाय पर फर्क पड़ता है । लेकिन लिंक रोड के साथ ऐसा नहीं होगा। जिन लोगों को तारबाहर चौक से सीधे राजेंद्र नगर चौक, कलेक्ट्रेट आदि जाना होगा वे बिना ट्रैफिक में फंसे सीधे जा पाएंगे। लेकिन जिन लोगों को लिंक रोड, सत्यम चौक श्रीकांत वर्मा मार्ग जाना होगा, जाहिर है उनके लिए नीचे की सड़क बंद नहीं कर दी जाएगी। इसलिए यह दलित सही नहीं लग रही है कि इससे कुछ लोगों को नुकसान होगा । अभी हाल ही में सीएमडी चौक के पास ही एक जमीन ₹22,000 स्क्वायर फीट में बेची गई है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर इतनी भारी भरकम कीमत किस वजह से मिली ? इसीलिए की शहर का तेजी से विकास हुआ है। इस क्षेत्र में संसाधन उपलब्ध कराए हैं। फ्लाईओवर भी उन्हीं में से एक है। केवल कुछ लोगों को अपनी जमीन की कीमत 22 और 23 हजार रुपए प्रति स्क्वायर फीट ना मिले, इस कारण से पूरे शहर को फ्लाईओवर जैसी सौगात से वंचित करना न जाने किसके हित में है ? आजाद मंच ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए बिलासपुर को आजाद करने की बात कही है। देश में और भी कई विघटनकारी समूह है जो कभी कश्मीर को आजाद करने तो कभी खालिस्तान को आज़ाद करने जैसी देश विरोधी गतिविधियों चलाते हैं। आज पहली बिलासपुर को आजाद कराने के लिए कोई संस्था सक्रिय है, इसकी जानकारी शहर को हुई। 1947 में आजाद हो चुके बिलासपुर को कुछ लोग आजाद करने निकल पड़े हैं। एक तरफ संस्था के लोग बिलासपुर की तुलना रायपुर से करते हैं, लेकिन उनसे सवाल करना चाहिए कि अगर रायपुर में भी इसी तरह विकास विरोधी सक्रिय होते तो फिर क्या रायपुर में यह बदलाव संभव हो पाता ? हर विकास की राह में रोड़ा बनने वाले लोगों से ही दरअसल इस शहर को आजादी चाहिए, अन्यथा यह शहर ऐसा ही उपेक्षित और पिछड़ा रह जाएगा। फिलहाल तो आजाद मंच की मंशा पर ही सवाल उठने लगे हैं।

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