रायपुर वॉच

तिरछी नजर 👀 : तबादलों के पीछे का राज… ✒️✒️

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चुनाव की तिथि जैसे- जैसे नजदीक आ रही है। कई अफसर अपनी चलाने की कोशिश में जुट गए हैं। आचार संहिता लागू होने के पहले सरकार को बाधित करने के लिए भी कुछ लोग सक्रिय हैे। चुनाव आयोग के दिशा निर्देश पर हाल में हुए थोक में तबादले से कुछ नया समीकरण का संदेश गया है। तबादला तो बरसों से जमे लोगों का करना था परंतु जिन लोगों से नाराजगी है उनको भी हटा दिया गया है। जिन लोगों की चल रही थी और आंखों के तारे थे उन्हे भी गुपचुप तरीके से दूसरे स्थान पर भेज दिया गया है।बताते हैं कि कुछ कलेक्टर कई महत्वपूर्ण योजनाओं में काम करा रहे थे उन्हें काम को रुकवाने की कोशिश की गयी। यह सब ईडी के डर में हो रहा है, या फिर चुनाव आयोग के निर्देश के आड़ में अपनी चलाने की कोशिश माना जा रहा है

निगम-मंडलों में संवैधानिक संकट

कांग्रेस हाईकमान के निर्देश पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने निगम मंडलों में अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की पुर्ननियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। कार्यकाल खत्म होने के बाद नई नियुक्ति नहीं करने से निगम मंडलों में संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। एक महीने के लिए नई नियुक्ति नहीं की जा सकती थी नई नियुक्ति की प्रक्रिया करना तकनीकी रुप से असंभव था। वर्तमान में काबिज निगम मंडल पदाधिकारियों को आगे एक्सटेंशन नहीं देने का निर्देश आ गया है। इससे निगम मंडल के अधिकारी व कर्मचारी परेशान हो रहे हैं। संचालक मंडल की बैठक नहीं हो रही है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि निवर्तमान अध्यक्षों की जगह अफसरों को अभी तक प्रभार की प्रक्रिया भी शुरू नहीं की गयी है। यह फाईल भी एक पखवाड़ा से शीर्ष स्तर पर अटकी हुई है। अलबत्ता, विकास सहित कई योजनाओं के काम अटके पड़े हैं।

सरोज का भय

भाजपा में राज्यसभा सदस्य सरोज पांडे का जलवा बरकरार है। इसका अंदाजा उस वक्त लगा, जब भिलाई और वैशाली नगर सीट के लिए दावेदारों के नाम पर चर्चा के लिए पर्यवेक्षक सांसद सुनील सोनी वहां पहुंचे।
बताते हैं कि सुनील सोनी भिलाई शहर जिला के पदाधिकारियों की बैठक ली और दावेदारों के नामों पर चर्चा की। बैठक में सरोज पांडे नहीं आई, तो सुनील सोनी ने फोन लगाकर उनसे संपर्क किया। सरोज ने उन्हें बताया कि उनके पास बैठक की कोई सूचना नहीं है। फिर क्या था सुनील सोनी ने रायपुर लौटने के बाद पार्टी संगठन को लिखकर दे दिया कि सीनियर नेताओं को बैठक की सूचना नहीं हो पाई है इसलिए नया पर्यवेक्षक भेजकर रायशुमारी की जाए। चर्चा है कि सरोज पांडे खुद वैशाली नगर सीट से चुनाव लड़ना चाहतीं हैं। ऐसे में सुनील सोनी उनकी गैरमौजूदगी में दावेदारों के नाम पर चर्चा का साहस नहीं जुटा पाए।

… तो सप्लायर बन गए

भाजपा में प्रत्याशियों की दूसरी अभी नहीं आई है लेकिन दो बड़े नेताओं ने अपनी टिकट पक्की मानकर महिला मतदाताओं को रिझाने के लिए 20-20 हजार साड़ी का आर्डर दे दिया है। यह आर्डर धमतरी के एक नेता के माध्यम से सूरत के मिल को दिया गया है। जिस नेता के माध्यम से साड़ी का आर्डर दिया गया है। वह खुद भी टिकट के दावेदार थे, लेकिन टिकट मिलने की संभावना क्षीण हो गई, तो वो सप्लायर की भूमिका में आ गए हैं।

बाबा का बवाल

सरगुजा संभाग में बाबा के बवाल ने कई विधायकों और दावेदारों की टिकट ख़तरे में डाल दी है। असल में बाबा निष्ठा परिवर्तन करने और दोहरी निष्ठा रखने वालों को दंड देने का मन बना चुके हैं। ऐसे नेता सुरक्षित पनाहगाह की तलाश में धक्के खा रहे हैं। मसलन, प्रेमसाय सिंह की टिकट कटना तय है। उससे पहले भूपेश बघेल ने उनका पुनर्वास कर दिया है। पंगा लेने वाले बृहस्पति सिंह की सीट पर बाबा ने महापौर अजय तिर्की को आगे कर दिया है। मंत्री अमरजीत भगत मुख्यमंत्री के भरोसे है। संसदीय सचिव चिंतामणि महाराज की चिंता बढ़ गई है। उन्हें किसी से भी ठोस आश्वासन नहीं मिल पाया है। अलबत्ता बाबा ख़ेमे से उनके भाई को टिकट ऑफर कर उनकी चिंता बढ़ा दी गई है। उपर से बाबा ने यह बयान देकर पार्टी को संदेश देने की कोशिश की है कि संभाग की चार-पाँच सीट ही जीत पायेंगे। लगता है बाबा डिप्टी बनने के बाद भी कोप भवन से बाहर नहीं आ पाये हैं।

बहुजन की भाजपा

छत्तीसगढ़ में सबसे कठिन दौर से गुजर रही भाजपा को अब डीएसफ़ोर और बसपा का नारा भाने लगा है- जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी। पार्टी आलाकमान अब बहुजन समाज को किनारे लगाने की हिमाक़त करना नहीं चाहता। पार्टी के अंदरखाने चल रही क़वायद पर यक़ीन करें तो इस दफे टिकटों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग का दबदबा देखने को मिलेगा। ब्राह्मण, जैन और अग्रवाल समाज को दो-दो सीट से संतुष्ट रहना पड़ेगा। यानि अनारक्षित सीटों पर भी अनुसूचित जाति और जनजाति के उम्मीदवार उतारे जाएँगे। इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा ओबीसी को मिलेगा। सत्ता के लिए सोशल इंजीनियरिंग करने वाले सवर्ण समाज के लोग ही हैं। देखें, कितना फ़ायदा मिलता है।

शाह से राजनीति

भाजपा के शक्तिशाली नेताओं में शुमार अमित शाह शनिवार को प्रदेश नेताओं के झगड़े का शिकार हो गये। नतीजतन उनके दो कार्यक्रमों में उम्मीद से कम भीड़ जुटी। राजधानी में आरोप-पत्र जारी करने वाले कार्यक्रम का जिम्मा ओपी चौधरी को सौंपा गया था। यह बात पंद्रह साल सत्ता और संगठन अपनी जेब में रखने वाले नेताओं को रास नहीं आई। अंततः चौधरी की टीम को हॉल भरने के लिए स्कूली बच्चों को बुलाना पड़ा। यही हाल सरायपाली में भी था। वहाँ से लौटने के बाद शाह दिल्ली जाने की बजाय पार्टी दफ़्तर पहुँचे और प्रदेश के नेताओं की जमकर क्लास ली।

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