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हाई कोर्ट का आदेश, छत्तीसगढ़ में अब अपने आश्रय क्षेत्र में महिला दर्ज करा सकेगी दहेज प्रताडऩा केस

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  • पुलिस जीरो में केस दर्ज करने के बजाए सीधे जुर्म दर्ज कर जांच शुरू करें

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने दहेज प्रताडऩा के मामले में एफआईआर के स्थानांतरण की याचिका पर महत्वपूर्ण आदेश दिया। अब जीरो में एफआईआर नहीं होगा साथ ही महिला जिस थाने में एफआईआर दर्ज कराती है उस थाने के अधिकारी को जांच करने का अधिकार है। यह आदेश राज्य के सभी जिलों में लागू होगा। कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि वे सभी एसपी कार्यालय में आदेश की कॉपी भेजें और पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित करें, जिससे वे शून्य के बजाय सीधे एफआईआर करें। सुनवाई जस्टिस संजय के अग्रवाल की बेंच में हुई। रायगढ़ की प्रीति शर्मा ने अपने अधिवक्ता हरि अग्रवाल के माध्यम से याचिका दायर की थी। उनकी शादी 2016 में रायगढ़ में ही हुई। शादी के बाद ससुराल के लोग प्रताडि़त करने लगे साथ ही ससुराल से निकाल दिए। इसके बाद से वह अपने माता-पिता के घर रह रही हैं। उन्होंने सिटी कोतवाली रायगढ़ में 498 के तहत एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस जांच करने के बजाय शून्य में एफआईआर दर्ज कर अन्य कार्रवाई के लिए सक्ती थाना भेज दिया। अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को थाने व कोर्ट में बयान व सुनवाई के दौरान वहीं जाना पड़ेगा जहां उसका ससुराल है। वह और उत्पीडि़त होगी। सक्ती थाने से एफआईआर को रायगढ़ थाने में स्थानांतरण की मांग की। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के 2019 में रुपाली देवी के मामले में पारित सिद्धांत भी प्रस्तुत की। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि महिला जब घर से बाहर निकाल दी जाती है और वह जहां आश्रय लेती है वहां 498(ए) दर्ज कराती है तो उस क्षेत्र के कोर्ट को क्षेत्राधिकार होता है। कानूनविद अजय अयाची के अनुसार इस कानून पर सवाल उठते रहे हैं।2003 में दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस जेडी कपूर ने कहा था कि ऐसी प्रवृत्ति पैदा हो रही है कि लड़की न सिर्फ पति बल्कि उसके रिश्तेदारों को भी मामले में लपेट लेती है। इस वजह से शादी की बुनियाद हिल रही है और समाज के लिए यह सही नहीं है।

सीधे गिरफ्तारी का प्रावधान

2017 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने फैसले में धारा-498 ए में सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। जिले में परिवार कल्याण समिति बनाने और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट के के तीन जजों की कोर्ट ने सिविल सोसायटी की कमेटी बनाने की गाइडलाइन को हटा दिया है। इससे गिरफ्तारी तय करने का अधिकार पुलिस को वापस मिल गई।

हाईकोर्ट ने कहा- मानसिक प्रताडऩा साथ चलती है

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला के साथ शारीरिक हिंसा भले ही कहीं हुई हो, लेकिन मानसिक उत्पीडऩ उसके साथ-साथ चलती रहती है। इसलिए जहां भी महिला एफआईआर दर्ज कराए वहां की पुलिस ही मामले की जांच करे। पीडि़ता जिस थाना क्षेत्र में निवास करती है उसी थाने की पुलिस मामले की विवेचना करेगी।

जानिए क्या है जीरो में एफआईआर

जब कोई महिला उसके विरुद्ध हुए संज्ञेय अपराध के बारे में घटनास्थल से बाहर के पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करवाए उसे जीरो में एफआईआर कहते हैं। चूंकि यह मुकदमा घटना वाले स्थान पर दर्ज नहीं होता, इसलिए तत्काल इसका नंबर नहीं दिया जाता। जीरो में केस दर्ज होने पर पुलिस जांच शुरू कर देती है और इससे खासकर महिलाओं के रेप व प्रताडऩा के केस में मुलाहिजा तत्काल होने से सबूत नष्ट होने का डर नहीं रहता।

दोनों पक्षों के समझौते के लिए हाईकोर्ट

केस के दौरान यदि दोनों पक्ष समझौता करना चाहे तो दोनों पक्ष कानून के मुताबिक वो हाईकोर्ट जा सकते हैं। अगर पति पक्ष कोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करता है तो केस की उसी दिन सुनवाई की जा सकती है।तीन से पांच साल की सजा, मौत पर आजीवन कारावास : इस मामले में दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद का प्रावधान है। इसी तरह दहेज के लिए उत्पीडऩ करने पर तीन साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। यदि लड़की की विवाह के 7 साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है तो धारा 304-बी के तहत 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास हो सकती है।

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