कमलेश लव्हात्रे ब्यूरो चीफ जिला बिलासपुर
बिलासपुर / शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय में भूगोल विभाग द्वारा 3 मार्च 2023 को “21 वीं सदी में सुदूर संवेदन तकनीक का भौगोलिक अध्ययन पर प्रभाव” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. डा बश गोपाल सिंह कुलपति, पं. सुन्दर लाल शर्मा मुक्त विवि बिलासपुर थे। अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एस. आर. कमलेश ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में वरुण मेहर क्षेत्रीय प्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बिलासपुर की गरिमामयी उपस्थिति रही। मुख्य वक्ता, प्रो. डॉ. ए. आर. सिद्धिकी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय उप थे। संयोजक डॉ. डी. डी. कश्यप ने आयोजन की उपादेयता, रूपरेखा, विषय प्रवर्तन प्रस्तुत किया।
मुख्य अतिथि डॉ. सिंह ने कहा कि अधाधुध सभ्यता की दौड़ मानवता के लिए खतरा साबित हो रही है, सुदूर संवेदन तकनीक मानवता को खतरों से बचा सकती है। रिमोट सेंसिंग तकनीक बहुत शक्तिशाली है. यह सैन्य शक्ति को मजबूत करती है. इससे बाढ़ सूखा एवं अन्य आपदाओं की पूर्व सूचना प्राप्त हो सकती है. इसलिए इसका उपयोग देश और समाज के हित में करना होगा और इसे गलत हाथों में जाने से बचाना होगा। विज्ञान का मार्मिक विवेक एवं संवेदनाओं के आधार पर अध्ययन किया जाना चाहिए। सुदूर संवेदन तकनीक के माध्यम से सूचनाओं की बाढ़ हो सकती है। मानव सभ्यता के विकास में विज्ञान एवं तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए, विनाश के लिए नहीं। तटीय क्षेत्रों में रहने वालों की बाढ़ की जानकारी, कृषक भाईयों को वर्षा की जानकारी भूमि स्खलन जैसे आपदाओं की सटीक जानकारी मिले जिससे विनास से बचा जा सके। इसका उपयोग वनों की कटाई, उपजाऊ भूमि के क्षरण, वातावरण में प्रदूषण, मरुस्थलीकरण, बड़े जल निकायों के प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, बाढ़ और बर्फ के पिघलने से होने वाले नुकसान का अध्ययन करता है।
डॉ. एस. आर कमलेश, प्राचार्य, शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिलासपुर ने कहा कि मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि रिमोट सेसिंग जैसे ज्वलंत एवं महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया है। सुदूर संवेदन तकनीक एक सूचना संग्रहण की तकनीक है। सुदूर संवेदन तकनीक से कम समय में बड़े क्षेत्र की सूचना संग्रह की जा सकती है, जो अन्य किसी माध्यम से संभव नहीं है। आज पूरा विश्व तकनीकि कांति के दौर से गुजर रहा है, सभी क्षेत्रों में आश्चर्यजनक बदलाव के साथ विकास के नये आयाम परिलक्षित हो रहे हैं, इनमें रिमोट सेसिंग की सबसे बड़ी भूमिका है। मौसम विज्ञान, धरातलीय मानचित्रण, संसाधन एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण, वन सर्वेक्षण एवं प्रबंधन, मिट्टी, कृषि, भू-भौतिकी, जल विज्ञान सैनिक कार्यों इत्यादि में रिमोट सेंसिंग का उपयोग किया जा रहा है। भारत ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति की है। 1975 में भारत प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया, तब से आज तक भारतीय संचार उपग्रह प्रणाली के माध्यम से रिमोट सेंसिंग का कार्य क्षेत्र बढ़ गया है। अंतरिक्ष अध्ययन, मौसम विज्ञान, भू-भौतिक अध्ययन के क्षेत्र में विकसित देशों से पीछे नहीं है। आज मौसम का सही पूर्वानुमान करने में भारत कई देशों से आगे है।
विशिष्ट अतिथि वरुण मेहर ने कहा कि हम प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करते हैं प्रकृति भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करती है. इसलिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते समय हमें एथिक्स का ध्यान रखना चाहिए।
मुख्य वक्ता प्रो.डा. ए. आर. सिद्दिकी इलाहाबाद विश्वविद्यालय, उप्र ने डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि राष्ट्र की शक्ति प्रौद्योगिकी में छिपी होती है और यदि विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग समाज के लिए होता है तभी उसकी सार्थकता है। उन्होंने कहा कि भूगोल में सिर्फ मानचित्र न बनाएं बल्कि संभावनाओं का मानचित्र बनाए जो संवेदनशीलता को बढ़ाती हो उन्होंने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान की बात की। उन्होंने कहा कि मानव सेंस के बिना रिमोट सेंस का कोई औचित्य नहीं। उन्होंने जलवायु वर्गीकरण, सोशल मीडिया, स्किल मैपिंग आदि पर भी विस्तार से जानकारी दी। विषय विशेषज्ञ डॉ. पुष्पराज सिंह प्रो. गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर ने रिमोट सें सिंगतकनीक के मूलभूत सिद्धांत के अनुप्रयोग विषय पर सारगर्भित ऑनलाइन व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हम नीड़ी नहीं ग्रीड़ी हैं। रिमोट सेंसिंग के माध्यम से मॉनिटरिंग, सर्वे, रिमोट सेंसिंग के प्रशिक्षण की जरूरत इसमें शोध के सम्भावित विभिन्न आयाम, जल, जंगल बचाओ, जैव विविधता आदि के क्षेत्र में इस तकनीक के उपयोग
के संबंध में भी उन्होंने जानकारी दी।
डॉ. प्रशांत कविश्वर वैज्ञानिक छ.ग. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद रायपुर ने रिमोट सेंसिंग और उसके अनुप्रयोगों के विषय मे बहुत सार्थक और उपयोगी व्याख्यान दिया। उन्होंने जीवों और जंगल के विविध वनस्पतियों, जल और अधिवास के संबंध में बताया और गढ़, तालाब आदि के मैपिंग, पराली जलाने, कृषि उत्पादन के अनुमान, उपग्रहों के कार्य आदि के संबंध में प्रयोगात्मक व्याख्यान दिया। आमन्त्रित विषय विशेषज्ञ डॉ. तृषा से (रायपुर) ने जियो स्पेशल टेक्नोलॉजी के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
आमन्त्रित विषय विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार पाठक ( छ. ग. विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद् रायपुर) ने कहा कि रिमोट सेंसिंग हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है, इस क्षेत्र में अनुसंधान की बहुत संभावनाएं हैं। शोधार्थियों को इस संबंध में आगे आना चाहिए। समापन सत्र में मुख्य अतिथि बिलासपुर संभाग उच्च शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय अपर संचालक डॉ ज्योति रानी सिंह, विशिष्ट अतिथि शास जे पी वर्मा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एस. एल. निराला शास महाविद्यालय सीपत के प्राचार्य डॉ आर एस खेर की गरिमामय उपस्थिति रही।
डॉ. एस. आर कमलेश, प्राचार्य, शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिलासपुर ने कहा कि मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि रिमोट सेंसिंग जैसे ज्वलंत एवं महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया है। सुदूर संवेदन तकनीक एक सूचना संग्रहण की तकनीक है। सुदूर संवेदन तकनीक से कम समय में बड़े क्षेत्र की सूचना संग्रह की जा सकती है, जो अन्य किसी माध्यम से संभव नहीं है। आज पूरा विश्य तकनीकि कांति के दौर से गुजर रहा है. सभी क्षेत्रों में आश्चर्यजनक बदलाव के साथ विकास के नये आयाम परिलक्षित हो रहे हैं, इनमें रिमोट सेसिंग की सबसे बड़ी भूमिका है। मौसम विज्ञान, धरातलीय मानचित्रण, संसाधन एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण, वन सर्वेक्षण एवं प्रबंधन, मिट्टी, कृषि, भू-भौतिकी, जल विज्ञान सैनिक कार्यों इत्यादि में रिमोट सेंसिंग का उपयोग किया जा रहा है। भारत ने विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति की है। 1975 में भारत प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया तब से आज तक भारतीय संचार उपग्रह प्रणाली के माध्यम से रिमोट सेंसिंग का कार्य क्षेत्र बढ़ गया है। अंतरिक्ष अध्ययन, मौसम विज्ञान, भू-भौतिक अध्ययन के क्षेत्र में विकसित देशों से पीछे नहीं है। आज मौसम का सही पूर्वानुमान करने में भारत कई देशों से आगे है।
विशिष्ट अतिथि वरूण मेहर ने कहा कि हम प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करते हैं प्रकृति भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करती है, इसलिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते समय हमें एथिक्स का
ध्यान रखना चाहिए।
मुख्य वक्ता प्रो.डा. ए. आर. सिद्दिकी इलाहाबाद विश्वविद्यालय, उप्र ने डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि राष्ट्र की शक्ति प्रौद्योगिकी में छिपी होती है और यदि विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग समाज के लिए होता है तभी उसकी सार्थकता है। उन्होंने कहा कि भूगोल में सिर्फ मानचित्र न बनाएं बल्कि संभावनाओं का मानचित्र बनाएं जो संवेदनशीलता को बढ़ाती हो। उन्होंने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान की बात की। उन्होंने कहा कि मानव सेंस के बिना रिमोट सेंस का कोई औचित्य नहीं। उन्होंने जलवायु वर्गीकरण, सोशल मीडिया, स्किल मैपिंग आदि पर भी विस्तार से जानकारी दी।
विषय विशेषज्ञ डॉ. पुष्पराज सिंह प्रो. गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर ने रिमोट सेंसिंग तकनीक के मूलभूत सिद्धांत के अनुप्रयोग विषय पर सारगर्भित ऑनलाइन व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि हम नीड़ी नहीं ग्रीडी हैं। रिमोट सेंसिंग के माध्यम से मॉनिटरिंग, सर्वे, रिमोट सेंसिंग के प्रशिक्षण की जरूरत इसमें शोध के सम्भावित विभिन्न आयाम, जल, जंगल बचाओ, जैव विविधता आदि के क्षेत्र में इस तकनीक के उपयोग के संबंध में भी उन्होंने जानकारी दी।
डॉ. प्रशांत कविश्वर वैज्ञानिक छ.ग. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद रायपुर ने रिमोट सेंसिंग और उसके अनुप्रयोगों के विषय मे बहुत सार्थक और उपयोगी व्याख्यान दिया। उन्होंने जीवों और जंगल के विविध वनस्पतियों, जल और अधिवास के संबंध में बताया और गढ़, तालाब आदि के मैपिंग, पराली जलाने, कृषि उत्पादन के अनुमान, उपग्रहों के कार्य आदि के संबंध में प्रयोगात्मक व्याख्यान दिया। आमन्त्रित विषय विशेषज्ञ डॉ. तृषा डे (रायपुर) ने जियो स्पेशल टेक्नोलॉजी के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
आमन्त्रित विषय विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार पाठक ( छ. ग. विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद रायपुर) ने कहा कि रिमोट सेंसिंग हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है, इस क्षेत्र में अनुसंधान की बहुत संभावनाएं हैं। शोधार्थियों को इस संबंध में आगे आना चाहिए।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि बिलासपुर समाग उच्च शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय अपर संचालक डॉ ज्योति रानी सिंह, विशिष्ट अतिथि शास जे पी वर्मा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एस. एल. निराला, शास महाविद्यालय सीपत के प्राचार्य डॉ. आर. एस. खेर की गरिमामय उपस्थिति रही। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. एस. आर. कमलेश ने की डा. ज्योति रानी सिंह ने कहा कि मनुष्य प्रारंभ से ही जिज्ञासु है, वह बहुत कुछ खोजने में लगा रहता है और इस दिशा में रीमोट सेंसिंग तकनीक बहुत उपयोगी है। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। डॉ. आर. एस. खेर ने कहा कि रिमोट सेंसिंग बहुउपयोगी विषय है इसका ज्ञान सबको होना चाहिए। उन्होंने बताया कि मानव अंगों के सेंस की एक सीमा है, उससे परे की सूचनात्मक तरंगों को रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से जाना जा सकता है । डॉ. एस. एल. निराला ने कहा कि हम जिस विषय में हैं उसमें बेहतर काम करें जिससे देश व समाज को लाभ हो डॉ कमलेश ने कहा कि रिमोट सेंसिंग को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए, इससे रोजगार के अवसर मिलेंगे और लोगों की जागरूकता भी बढ़ेगी। उन्होंने कार्यक्रम की सफलता हेतु बधाई दी। इस कार्यशाला में डॉ. संगीता शुक्ला की शोध छात्रा माधुरी सिंह की किताब “भू आकृति विकास एवं जल प्रबंधन” का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डा. कावेरी दाभड़कर ने किया तथा आभार प्रदेशन डॉ. गीता सिंह ने किया। संगीत विभाग की छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना, राजगीत और स्वागत गीत प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम के आयोजन और संचालन में डॉ. सुशीला एक्का, डॉ. संगीता शुक्ला एवं समस्त कर्मचारियों और छात्राओं का विशेष योगदान रहा। इस आयोजन में देश व प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से शिक्षाविद, प्राध्यापक शोधार्थी एवं विद्यार्थीगण बड़ी संख्या में उपस्थित रहे.l