रायपुर। श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग संकाय ने 15 सितंबर 2025 को बड़े उत्साह के साथ इंजीनियर दिवस मनाया, जिसका विषय था “डीप टेक एंड इंजीनियरिंग एक्सीलेंस: ड्राइविंग इंडियाज़ टेकेड”।
इस अवसर पर छात्रों ने अतिथियों का भारतीय परिधान से स्वागत किया। मुख्य अतिथियों में श्री रावतपुरा सरकार ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के उपाध्यक्ष डॉ. जे. के. उपाध्याय, छत्तीसगढ़ सरकार के जल जीवन मिशन के मिशन निदेशक श्री जितेंद्र शुक्ला (आईएएस) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रायपुर के निदेशक (प्रभारी) प्रो. ए. बी. सोनी शामिल थे। सभी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पूजा और पुष्पांजलि अर्पित की गई।
इसके बाद, साईराम प्रेक्षागृह में स्वागत समारोह आयोजित किया गया, जिसे रंगोली, इंजीनियरिंग मॉडल और इंजीनियर दिवस से संबंधित पोस्टरों से खूबसूरती से सजाया गया ।
समारोह का शुभारंभ गणेश वंदना और उसके पश्चात राज्य गीत के साथ हुई।
यूनिवर्सिटी के कुलसचिव डॉ. सौरभ कुमार शर्मा ने पहला संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि आज के इंजीनियर कल के भारत के निर्माता हैं। उन्होंने सर एम. विश्वेश्वरैया के जीवन के प्रसंगों को याद करते हुए छात्रों को अनुशासन, समर्पण, दृढ़ संकल्प और समय की पाबंदी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया।
प्रो. आर. आर. एल. बिराली, कुलपति (प्रभारी) ने कहा कि एक इंजीनियर वह होता है जो समस्याओं को समाधान में बदलता है। जिस प्रकार भवन निर्माण में मिट्टी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, उसी प्रकार राष्ट्र निर्माण में इंजीनियरों की सर्वोच्च भूमिका होती है।
प्रो. ए. बी. सोनी (निदेशक (प्रभारी), एनआईटी रायपुर) ने अपने संबोधन में छात्रों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके कार्यों को सरल बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के संदेश – “बड़े सपने देखो, कड़ी मेहनत करो और केंद्रित रहो” पर प्रकाश डालते हुए सतत विकास और समाधानोन्मुखी कार्य पर ज़ोर दिया।
विशिष्ट अतिथि श्री जितेंद्र शुक्ला (आईएएस) ने इंजीनियरों को चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित किया। अपने अनुभव साझा करते हुए, उन्होंने इंजीनियरों से समाज में योगदान देने, भीड़ का अंधानुकरण करने से बचने और अपनी पहचान बनाने का आग्रह किया।
मुख्य अतिथि डॉ. जे. के. उपाध्याय, (एस.आर.जी.ओ.आई) के उपाध्यक्ष ने अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए कहा कि आत्म-अनुशासन से एक इंजीनियर किसी भी चमत्कार को संभव बना सकता है और उन्होंने वैश्विक स्तर पर भारतीय इंजीनियरों की उपलब्धियों का भी उल्लेख किया।
संबोधन सत्र के बाद, विद्युत अभियांत्रिकी विभागाध्यक्ष प्रो. मिथिलेश सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
तत्पश्चात इंजीनियरिंग मॉडल निर्माण, पोस्टर प्रस्तुतिकरण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए।
मॉडल प्रतियोगिता की अध्यक्षता सिविल अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर श्री परमेश्वर साहू ने की। मूल्यांकन प्रो. आर. आर. एल. बिराली, प्रो. मिथिलेश सिंह और डॉ. मृणाल साहू द्वारा किया गया।
विजेता:
सॉफ्टवेयर मॉडल श्रेणी में, सुश्री दिलीबोदी शर्मा (सन डार्क) ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
कार्यशील मॉडल श्रेणी में, हरिकेश वर्मा और लकी वर्मा (सोलर पंपिंग सिस्टम) ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
रंगोली प्रतियोगिता और पोस्टर प्रस्तुति की अध्यक्षता खनन अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री उत्तम विश्वकर्मा, धातुकर्म अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री टीकम चंद सोनी, फैशन डिज़ाइन विभाग की विभागाध्यक्ष सुश्री हेमलता साहू, विद्युत अभियांत्रिकी विभाग की सहायक प्राध्यापक सुश्री प्रीति ने की।
कंप्यूटर विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री वसंत साहू, सुश्री रीना साहू और सुश्री प्रियंका बंदे ने भी भाग लिया।
मूल्यांकन धातुकर्म अभियांत्रिकी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रज्ञा नंदन बंजारे द्वारा किया गया।
विजेता:
पोस्टर प्रस्तुति श्रेणी में, श्री करण मित्तल (पाँचवाँ सेमेस्टर बी.टेक सी.एस.ई.) ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
रंगोली निर्माण श्रेणी में, सुश्री अन्नपूर्णा, श्वेता और खुशी (पाँचवाँ सेमेस्टर बी.टेक सी.एस.ई.) ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
फ़ैशन डिज़ाइन विभाग ने आकर्षक वस्त्र वास्तुकला का प्रदर्शन किया, साथ ही इंजीनियर्स डे की थीम पर आधारित कई पोस्टर भी प्रदर्शित किए गए।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, छात्रों ने मधुर गीत, मनमोहक नृत्य और आकर्षक कविता पाठ प्रस्तुत किए, जिससे सभागार आनंद और उत्सव से भर गया।
कार्यक्रम की सफलता यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री तरुण सोनवानी के समर्पित प्रयासों और सभी संकाय सदस्यों एवं गैर-शिक्षण स्टाफ मेंबर्स की सक्रिय भागीदारी से संभव हुई।