छत्तीसगढ़ी संस्कृति और बिहार संस्कृत को एक बताना छत्तीसगढ़ी संस्कृति का अपमान है एवं राज्य आंदोलनकारियो की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है।
रायपुर 24 मार्च। भिलाई में आयोजित बिहार स्थापना दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय द्वारा यह कहा गया कि बिहार और छत्तीसगढ़ की संस्कृति आपस में गहराई से जुड़ी है इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन एवं छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिलाने वाले पुरोधा एवं लोकतंत्र सेनानी जागेश्वर प्रसाद ने कहा कि यह असत्य और भ्रामक है। साथ ही साथ मुख्यमंत्री जी का यह कथन पूर्ण रूप से राजनैतिक है एवं बिहारियों का वोट साधने का हथकंडा है।
उन्होंने यह भी कहा है कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति और बिहारी संस्कृति को एक बताना छत्तीसगढ़ी संस्कृति का अपमान है एवं राज्य आंदोलनकारियो की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है ।क्योंकि जिस प्रकार से बिहार राज्य की स्थापना दिवस को विशेष महत्व देना आर्थिक लाभ पहुंचाना मुख्यमंत्री एवं उसकी सरकार की राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि का एजेंडा लगता है दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि मुख्यमंत्री महोदय एवं उसकी सरकार “छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस” के अवसर पर ऐसी संवेदनशीलता एवं उदारता नहीं दिखाते और तो और छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माता माननीय पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी को याद नहीं करते। ना ही राज्य निर्माण के जीवन भर संघर्ष करने वाले छत्तीसगढ़ के माटी पुत्रों का सम्मान करना तो दूर उन लोगों को छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण दिवस एवं छत्तीसगढ़ी भाषा दिवस के आयोजनों में निमंत्रण भी नहीं देते।
राज्य निर्माण हुए 25 वर्ष हो गए छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिले 18 वर्ष हो गए एवं छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन हुए भी वर्षों बीत गए लेकिन राज्य आंदोलनकारियों को मान सम्मान मिला ना ही अभी तक 3 करोड़ छत्तीसगढ़ियों की मातृभाषा एवं संवैधानिक राजभाषा में प्राथमिक स्कूल तक छत्तीसगढ़ी भाषा के माध्यम से पढ़ाई लागू नहीं हुई है। फिर हमारे आदिवासीयों एवं छत्तीसगढ़ियों के तथाकथित हितैषी कहलाने वाले मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी छत्तीसगढ़ियों का संवैधानिक अधिकार को दिलाने के बदले बिहारीयों के प्रति अचानक प्रेम कैसे उमड़ पाड़ा?
क्या मुख्यमंत्री जी की यह मनसा तो नहीं की छत्तीसगढ़ियों को उनकी मातृभाषा व राजभाषा से वंचित कर गूंगा, बेरोजगार एवं शरणार्थी बनाने का षड्यंत्र तो नहीं रच रहे हैं इससे केवल मेरी ही भावना नहीं वरन करोड़ों करोड़ छत्तीसगढ़ियों की भावना को ठेस पहुंच रही है छत्तीसगढ़ियों की अतिथि सम्मान, सामाजिक समरसता, भोलापन की भावना को राष्ट्रीयता के नाम पर सूली पर क्यों चढ़ा रहे हैं?
समोचा छत्तीसगढ़ी समाज बाहर से आए हर प्रदेश के लोगों एवं उनकी भाषा संस्कृति का हमेशा से सम्मान करते आए हैं उनको आश्रय दिए हैं रोजगार देने में छत्तीसगढ़ी समाज के लोग कभी पीछे नहीं रहे हैं बाहर से आए लोगों को इतना मान सम्मान दिया है अपने छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य सचिव एवं मुख्यमंत्री भी बनाया है लेकिन यह लोग छत्तीसगढ़ राज्य एवं छत्तीसगढ़ी भाषा की विकास एवं सम्मान देने में कभी भी हाथ नहीं बटाया बल्कि उल्टे राज्य आंदोलनकारियों को पृथकतावादी एवं राष्ट्रद्रोही कहने से नहीं थकते थे। उसी प्रकार विधानसभा में विधायकों द्वारा सर्वसम्मति से राजभाषा तो दबाव में बना तो दिए लेकिन उसकी चलन पर अभी तक रोक लगाना छत्तीसगढ़ी भाषा संस्कृति विरोधी होने की प्रवृत्ति को उजागर करता है छत्तीसगढ़ में चाहे कांग्रेस की सरकार रही भाजपा की उन लोगों ने छत्तीसगढ़ राज्य में उड़िया भाषा बांग्ला भाषा एवं तेलुगू सहित अन्य भाषाओं को पढ़ा भी रहे हैं और आगे बढ़ा भी रहे हैं लेकिन छत्तीसगढ़ी भाषा की पढ़ाई स्वतंत्र रूप से क्यों नहीं लागू कर रहे हैं? इसकी जवाब छत्तीसगढ़ की जनता आप से मांग रही है ।