रायपुर वॉच

तिरछी नजर 👀 : चैंबर में सबकी सहमति…..…. ✒️✒️

Share this

तिरछी नजर :- करीब 4 दशक बाद व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन चैंबर ऑफ कॉमर्स में निर्विरोध निर्वाचन होने जा रहा है। महासचिव और कोषाध्यक्ष पद के लिए तो सिंगल नाम थे। मगर अध्यक्ष पद के लिए जय व्यापार पैनल और एकता पैनल के संयुक्त प्रत्याशी सतीश थौरानी के खिलाफ जीवन बजाज ने नामांकन दाखिल कर दिया था। इससे अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की नौबत आ गई थी। मगर बाद में जीवन बजाज भी पीछे हट गए और उन्होंने थौरानी के समर्थन का ऐलान कर निर्विरोध निर्वाचन का रास्ता साफ कर दिया।
बताते हैं कि थौरानी का निर्विरोध निर्वाचन आसान नहीं था। बजाज ने अपने एक सहयोगी के मार्फत फार्म भरकर शहर से बाहर चले गए थे। इसके बाद कुछ लोगों ने संदेशा भिजवाया कि उन्हें लड़ाई भारी पड़ सकती है। कारोबार को लेकर भी सफाई देनी पड़ सकती है। चर्चा है कि बजाज का क्रेडा में काफी कुछ काम चलता रहा है। भूपेश सरकार में उन्होंने काफी काम किए थे। और जब बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। बजाज जी को बात समझ में आ गई। उन्होंने दरबार में बैठकर थौरानी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। वैसे भी दोनों एक समाज के हैं और आपस में रिश्ते भी ठीक-ठाक रहे हैं। ऐसे में लड़ाई का कोई मतलब नहीं था।

भारतमाला, अफसर भी आएंगे घेरे में…

भारतमाला परियोजना की पड़ताल चल रही है। इन सबके बीच एक चर्चा यह है कि एक आईएएस अफसर ने ट्रस्ट की जमीन खरीदी है। अफसर होशियार हैं। उन्होंने जमीन खुद न खरीदकर अपने करीबी कारोबारी के नाम पर खरीदी है। जिस अंदाज में अफसर ने जमीन खरीदी है उसने जानकारों के होश उड़ा दिए हैं। वैसे तो अफसर को पहले लूपलाईन में डाला गया था लेकिन वो जल्द ही मुख्य धारा में आ गए।
वैसे बहुत सारे ताकतवर लोग देर-सबेर जांच के घेरे में आ जाते हैं। भारतमाला की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी इसमें कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आ सकती है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने जिस रफ्तार से सीजीएमएससी घोटाले पर कार्रवाई की है उससे उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में भारतमाला में भी कुछ इसी तरह की कड़ी कार्रवाई हो सकती है। ऐसे में अफसर का क्या होगा, यह देखना है।

श्रम कानूनों में बदलाव

हाल ही में श्रम कानूनों में जिस तरह संशोधन हुए हैं, उससे उद्योगपति राहत महसूस कर रहे हैं। केंद्र सरकार के निर्देशों पर कई राज्यों में इस तरह के बदलाव हो रहे हैं। उद्योगों में छटनी के अधिकार को लेकर भी संशोधन हुआ है। आने वाले दिनों में श्रम न्यायालय धीरे-धीरे कमजोर हो जाएंगे। खास बात यह है कि मजदूरों के लिए मुखर रहने वाले कम्युनिस्ट पार्टियां भी इसको लेकर एक तरह से खामोश दिख रही है। बदलाव तो कांग्रेस के समय से ही धीरे-धीरे शुरु हो गया था। अब श्रम संगठनों पर नजरें टिकी हुई हैं।

परिवर्तन तो होगा..

भाजपा संगठन के क्षेत्रीय महामंत्री अजय जामवाल ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव जीतने वाले पदाधिकारियों को यह कहा कि हम चुनाव जीतने के साथ ही व्यवस्था में परिवर्तन के लिए आए हैं। अगर पुरानी सरकार की व्यवस्था अभी भी चलती रही तो हमारे आने का अर्थ नहीं होगा। सत्ता आती है और जाती है। सत्ता के साथ समाज में परिवर्तन और पारदर्शिता लाना आवश्यक है। अब देखना यह है कि अजय जामवाल के संबोधन का कितना असर राजनीतिक दल के नेताओं पर पड़ेगा। अजय जामवाल जी ने जिन चीजों का संकेत दिया है उसमें सबसे बड़ी भूमिका मंत्रियों और अफसरों की रहेगी। भाजपा का नारा है हम ने बनाया है, और हम ही संवारेंगे। विधानसभा सत्र खत्म हो गया अब सजने-संवरने और बदलने का दौर चलेगा। इसमें कौन-कौन क्या-क्या रोल निभा रहे हैं। इस पर नजर सत्ता और संगठन की लगी हुई है।


———-
विधायकी का सपना

जिला पंचायत चुनाव और जनपद चुनाव में अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों की सक्रियता और पैसा खर्च करने की होड़ से भाजपा और कांग्रेस के विधायकों के कान खड़े हो गए हैं। नगरीय निकाय चुनाव के दौरान शहरों में पैसा खर्च करने की चर्चा ज्यादा रहती है। इस बार पंचायत चुनाव में पदाधिकारियों ने जिस तरह से दिल खोलकर खर्चा किए हैं, उससे अन्य जनप्रतिनिधि चौकन्ने हो गए हैं। दरअसल, विधायक की टिकट पाने वाले ज्यादातर नेता पंचायतीराज का अनुभव प्राप्त करने वाले होते हैं। विधायक बनने के पहले पंचायत और नगरीय निकाय महत्वपूर्ण सीढ़ी रहती है। इस सीढ़ी से विधायक के रास्ते आसान होने की संभावना रहती है। इसलिए भी बड़े मार्जिन से जीतने वाले और भारी खर्च करने वाले जनप्रतिनिधि अभी से सपने देखने लगे हैं।

Share this

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *