फाल्गुन पूर्णिमा की रात हर साल होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है। इस बार 13 मार्च की रात को होलिका दहन किया जाएगा, लेकिन इस दिन भद्रा का साया भी रहेगा, जिससे शुभ मुहूर्त को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
होलिका दहन का सही मुहूर्त
होलिका दहन हमेशा फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर किया जाता है, लेकिन भद्रा काल में इसे वर्जित माना जाता है। इस बार पूर्णिमा तिथि 13 मार्च की सुबह 10:36 से 14 मार्च की दोपहर 12:23 तक रहेगी। वहीं, भद्रा काल 13 मार्च की रात 11:26 तक रहेगा। ऐसे में भद्रा के समाप्त होने के बाद ही, यानी 13 मार्च की रात 11:27 बजे के बाद होलिका दहन किया जाना उचित रहेगा।
होलिका दहन से पहले की तैयारी
पूजा की थाली में जल, रोली, हल्दी, काले तिल, नारियल, उपले और कलावा रखें।
होलिका दहन स्थल पर जाकर भूमि को प्रणाम करें और जल अर्पित करें।
वहां दीपक जलाकर, गोबर के उपले, हल्दी और तिल अर्पित करें।
होलिका की तीन परिक्रमा कर कलावा बांधें और सूखा नारियल चढ़ाएं।
घर के सभी सदस्यों को हल्दी या रोली का तिलक लगाएं।
कैसे करें होलिका दहन?
होलिका दहन के लिए किसी वृक्ष की शाखा को जमीन में गाड़कर उसके चारों ओर लकड़ियां और उपले रखे जाते हैं। शुभ मुहूर्त में अग्नि प्रज्वलित कर उसमें गेहूं की बालियां, उपले और उबटन डालने की परंपरा है। यह प्रक्रिया रोग, नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों के नाश का प्रतीक मानी जाती है।
होलिका दहन के लाभ
हिंदू मान्यता के अनुसार, होलिका दहन से नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन की गई पूजा से—
- आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
- रोग और शारीरिक कष्टों में राहत मिलती है।
- शत्रु बाधा से मुक्ति पाई जा सकती है।
- घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
होलिका दहन की राख को घर लाकर तिलक लगाने की भी परंपरा है, जिसे शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। इस बार भद्रा का ध्यान रखते हुए सही समय पर होलिका दहन करें और इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त करें।