वित्त ओपी चौधरी ने कई रातें जागकर अपने हाथों से लिखकर बजट बनाया। इस बजट से प्रदेश को विकास की गति देने के लिये बजट का नाम गति रखा। अब विधानसभा के भीतर ही बजट की राशि से गति मिलेगी या दुर्गति इस पर बहस तेज हो गई है और हर विधायक गति की अलग-अलग परिभाषा बताकर नई उड़ान भर रहे है। गति का एक मतलब सरपट दौड़ते हुए संतुलित काम का संकल्प है। दूसरी तरफ विरोधी बजट को गति को प्राप्त होना (ऊपर जाना) या फिर गति से भटक जाना और दुर्गति होकर सत्ता से उतर जाना करार दे रहे हैं। बजट की राशि का दुरुपयोग के कारण बड़े-बड़े घोटाले हो रहे है। कई काम अधूरे पड़े हैं। कई कामों की बजट राशि चार गुना हो गई है। काम को गति देने बजट प्रावधान की अपनी अलग-अलग कहानी विभाग में दौड़ती रहती है।
—————
वरिष्ठ विधायक परिवार से परेशान
पंचायत चुनाव के दौरान कई परिवारों के बीच आपसी झगड़े बढ़ गये है उसमें से एक भाजपा के वरिष्ठ विधायक अपने परिवार के सदस्यों से भारी परेशान है। बड़े परिवार के बुजुर्ग विधायक ने एक बहु को बड़ा पद दिला दिया तो दूसरे बहू और बेटा ने मोर्चा खोल दिया है। पॉवरफुल माने जाने वाले विधायक अपने ही परिवार में बेहद असहाय है। परिवार के सदस्यों के आपसी झगड़े के चलते ठिहा (जगह) बदल-बदलकर रुकना पड़ता है। समाज के सदस्य भी विधायक के कामकाज से बेहद खफा है। समय आने पर मोर्चा खोलने की तैयारी चल रही है।
—————
अनुभवी को तवज्जों के संकेत
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में मिली शानदार सफलता के बाद भाजपा सरकार और संगठन के शीर्ष नेतत्व भी सतर्क हो गये है। जनता से मिली अपार स्नेह के बाद जागी उम्मीद की भरपाई के लिये उप मुख्यमंत्री अरूण साव और विजय शर्मा को बुलाकर सरकार को सफलतापूर्ण चलाने में महती भूमिका निभाने को कहा गया है। दोनों मंत्रियों को आम जनता के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए काम करने कहा गया है। सरकार में कुछ और वरिष्ठ विधायकों की सहभागिता बढ़ सकती है। नये और पुराने में उलझी पार्टी नेतत्व कुछ पुराने विधायकों जिम्मेदारी दे सकती है। सरकार में कामकाज का अनुभव रखने वाले विधायकों मंत्री मंडल और निगम मंडल के साथ-साथ संगठन में भी जिम्मेदारी के संकेत मिल रहे है। सरकार के कामकाज को पटरी में लाने के लिये एक बार फिर अनुभवी को तवज्जों देने पर विचार किया जा रहा है।
—
पूर्व मंत्री को झटका..
पंचायत चुनाव में भाजपा के पूर्व मंत्री को अपनी पसंद का जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने के कोशिशों पर झटका लगा है। पूर्व मंत्री ने कांग्रेस के साथ सांठगांठ कर लिया था। पार्टी संगठन को पूर्व मंत्री की नीयत का अंदाजा पहले ही हो गया। इसके बाद पार्टी के रणनीतिकारों ने पूर्व मंत्री की पसंद को नजर अंदाज कर प्रत्याशी घोषित किए, और भाजपा के अधिकृत समर्थित प्रत्याशी अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे।
बाद में पूर्व मंत्री संगठन के आगे सरेंडर हुए,और फिर उपाध्यक्ष पद पर अपनी बहु को अधिकृत प्रत्याशी बनवाने और चुनाव जीतवाने में कामयाब रहे। हालांकि पार्टी के नेताओं ने उन्हें खूब सुनाया, और हरेक जिला पंचायत सदस्य को खर्चा-पानी देना पड़ा सो अलग।
इस बार जनपद से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष,उपाध्यक्ष के चुनाव में भी पैसे का बोलबाला रहा। वजह यह है कि कांग्रेस और भाजपा से अलग कई प्रत्याशी जीत कर आए थे, जो कि बिना खर्चा पानी के वोट देने के लिए तैयार नहीं थे। रायपुर के पड़ोस के जनपद हरेक सदस्य को पांच-पांच लाख रुपये मिले हैं। एक दो जगहों पर तो गाड़ी गिफ्ट करने की खबर भी आ रही है। चाहे कुछ भी हो भाजपा को ऐसी सफलता पंचायत चुनाव में पहले कभी नहीं मिली।
—
कांग्रेस नेताओं ने ली राहत की सांस..
सुकमा और कोंटा के राजीव भवनों के निर्माण को लेकर जांच के घेरे में आए कांग्रेस नेताओं ने राहत की सांस ली है। ईडी ने पीसीसी में दबिश दी थी और प्रदेश के प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह (गेंदू) को तलब किया था। मलकीत सिंह (गेंदू )ईडी दफ्तर में दो बार बयान देने जा चुके हैं।
बताते हैं कि ईडी को जांच में कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला है जिससे कांग्रेस नेताओं की मुश्किलें खड़ी हों । यह भी साफ हुआ है कि निर्माण के लिए सारी राशि पीसीसी के खाते से गई है। यही नहीं ,पार्टी ने खर्चो का सेंट्रल आडिट भी हुआ था। जिसमें यह भी उल्लेखित है कि निर्माण कार्य जारी है। यानि शराब घोटाले का पैसा राजीव भवन बनने की शिकायतों की जांच के मामले में ईडी के हाथ खाली हैं। इन सबको लेकर कांग्रेस नेता निश्ंिचत हो चुके हैं। अब आगे क्या होता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
—