0 युवा साहित्यकार ने देश से बाहर भी कमाया नाम
0 समाजसेवा और साहित्य में गुजर रहा जीवन
बिलासपुर । भाषा हमेशा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है लेकिन जिस भाषा में आपके मनोभाव और मनोविचार आसानी से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाएं वही भाषा आपके लिए प्रथम प्रिय हो जाती है। इसी विचार को लेकर आगे बढ़ते हुए शहर के युवा साहित्यकार ने देश के बाहर पड़ोसी देश नेपाल से भी एक अंतराष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया है ।
अपने जीवन में अधिवक्ता ,लेखक, कवि और सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका एक साथ निभाने वाले सुरेश सिंह बैस कहते हैं कि मातृभाषा और बोलचाल की भाषा होने के नाते हिंदी मुझे वैसी ही प्यारी है, जैसी मां होती है। मैंने साहित्य में पहला कदम तब रखा था जब मैं लाल बहादुर स्कूल में कक्षा ग्यारहवीं का छात्र था, वह क्षण जीवन भर के लिए प्रेरणादायी बन गया । हमारे प्रिंसिपल साहब ने छात्र संघ चुनाव हो जाने के बाद भी रिक्त रह गए साहित्यिक सचिव पद के लिए सभी छात्रों से एक कविता लिखकर लाने को कहा था, और कहा कि जिसकी कविता श्रेष्ठ होगी उसे साहित्यिक सचिव के पद पर नियुक्त किया जाएगा। मैंने भी उस समय लिखना पढ़ना शुरू ही किया था । सो तुरंत लिखी हुई कविता “आकाश का वह एक तारा” मैंने अपने प्रिंसिपल साहब के पास जमा करवा दी। इस कविता के लिए उन्होंने काफी प्रशंसा करते हुए मुझे साहित्यिक सचिव पद पर नियुक्त कर दिया ।
इसी तरह दूसरी घटना भी है , जब यंग चैंबर संस्था द्वारा लेख प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें मैंने सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया। मेरे लेख का आंकलन कर सुविख्यात साहित्यकार स्व. पालेश्वर शर्मा ने पुरस्कार देते हुए कहा था कि” बेटा तुमने बहुत अच्छा लिखा है ऐसे ही लिखते रहना”। उनके यह शब्द मुझे अंदर तक आनंदित और प्रेरित कर गए थे, फिर तो ऐसी प्रेरणा मिली और कि मैं फिर आज तक हिंदी साहित्य के कविता एवं लेखन में रमा हुआ हूँ।
सुरेश सिंह बैस ने बताया कि, अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि साहित्य क्या है…? जिस पर कुछ लोगों विचार है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज देश-विदेश में घट रही घटनाओं को लेकर ही एक अच्छा साहित्य लिखा जा सकता है। वहीं दूसरे मतावलंबी यह कहते हैं कि एक उत्कृष्ट साहित्य तो कल्पना और विचारों को ही शब्दों में पिरोने से एक साहित्य का सृजन हो सकता है। लेकिन इन दोनों से मेरा विचार बिल्कुल अलग है। मैं समझता हूं साहित्य तो आमजन जीवन में दुनिया में घट रही घटनाओं के साथ-साथ अपने विचारों और कल्पना दोनों का मेल करते हुए लिखे जाने को ही हम साहित्य कह सकते हैं। वर्ना विचारों कल्पनाओं की बातें तो केवल कपोल कल्पित और हल्की पड़ जाएगी, तो वहीं आमजन जीवन व समाज में घटती हुई घटनाओं को लिखा जाए तो वह साहित्य ना होकर केवल खबर या समाचार बनकर रह जाएगा। ईन्होंने अपने लेखन में प्रायः सामाजिक अंतर्द्वंद व जनभावना को अपने निजी अनुभव के माध्यम से उकेरने का प्रयास किया है । भगवान ने हम मनुष्यों को वाणी दी और वाणी के साथ भाषा का ज्ञान दिया। सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है, स्वाभाविक है हिंदी भी संस्कृत से निकली हुई परिष्कृत भाषा है। और जिस पर लिखने, पढ़ने से एक अलग ही आनंद और अनुभव मिलता है। जब जब लेखनी के माध्यम से अपनी बात अधिकाधिक लोगों तक सुगमता से पहुंचा पाते हैं, तो वह क्षण बहुत अधिक सुकून का होता है।
उपलब्धियां और पुरस्कार
पिता- स्व0 अमर सिंह बैस और माता- स्व0 दुर्गा देवी सिंह के पुत्र सुरेश अब तक साहित्यकार युवा परिषद अंबिकापुर, मध्यप्रदेश लेखक संघ, यंग चेम्बर , रोटरी क्लब ,उत्कृष्ट लेखन में एसीसीएल, उत्कृष्ट काव्य सृजन एवं हिंदी साहित्य में योगदान के लिए “रामधारी सिंह दिनकर साहित्य सेवा सम्मान 2024” से सम्मानित हो चुके हैं। “महाकवि निराला साहित्य सम्मान” , साहित्य व समाज सेवा के क्षेत्र में सनातन संस्कृति “अंतरराष्ट्रीय संस्था अथर्व इंडिया” ने भी सम्मानित किया है ।
“अंतरराष्ट्रीय नेपाल भारत मैत्री सम्मान
सुरेश सिंह बैस को बहुक्षेत्रीय फाउंडेशन लुम्बिनी, नेपाल द्वारा नेपालगन्ज में वैश्विक हिंदी अंतरराष्ट्रीय कवि गोष्ठी में “अंतरराष्ट्रीय नेपाल भारत मैत्री सम्मान” से सम्मानित किया गया है * उक्त कवि गोष्ठी व स्पर्धा में में देश – विदेश से सैकड़ों साहित्यकारों ने अपनी सहभागिता दी । अखिल वैश्विक क्षत्रिय महासभा ट्रस्ट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैस के बारे में शब्द प्रतिभा बहुक्षेत्रीय फाउंडेशन (लुंबिनी) नेपाल के अध्यक्ष आनंद गिरि मायालु ने कहा है कि इनके जैसे साहित्यकार ही समाज में परिवर्तन के वाहक बन जड़ों से जुड़कर व सनातन संस्कृति को प्रचारित करने में योगदान दे रहे हैं।
-कृतित्व व प्रकाशित पुस्तक
0 कविता संकलन “कवियों का संसार” प्रकाशित।
0 विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में विभिन्न लेख, कविताएं प्रकाशित।
0 लोक धर्म संस्कृति पर आधारित पुस्तक शीघ्र प्रकाशित।