बिलासपुर। बिलासपुर हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि पत्नी अलग कमरे में सोती है और शारीरिक संबंध भी नहीं बनाती, तो इसे पति के साथ मानसिक क्रूरता माना जा सकता है। कोर्ट ने इस आधार पर फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को सही ठहराया है।
बता दें कि बेमेतरा निवासी युवक की शादी अप्रैल 2021 में दुर्ग में हुई थी। शादी के बाद पत्नी ने अपने पति के चरित्र पर शक जताया और इसे लेकर घर में विवाद बढ़ गया। पत्नी ने कहा कि वह पति के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाएगी क्योंकि उसे शक था कि पति का किसी दूसरी महिला से संबंध है। पति और उनके परिवार वालों ने समझाने की कोशिश की, लेकिन विवाद बढ़ता गया। पत्नी ने पति के साथ रहने से मना कर दिया और अंततः दोनों अलग-अलग कमरों में रहने लगे। परिवार वालों ने कई बार सुलह की कोशिश की, लेकिन स्थिति नहीं सुधरी। जनवरी 2022 में दोनों ने बेमेतरा में रहने की सहमति दी, फिर भी पत्नी अलग कमरे में सोती रही।
फैमिली कोर्ट और हाईकोर्ट का फैसला-
पति ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका दायर की, जिसके बाद फैमिली कोर्ट ने तलाक की डिक्री को मंजूर किया। पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसमें उसने आरोप लगाया कि फैमिली कोर्ट ने तथ्यों को सही से नहीं सुना और बिना कारण के तलाक की अनुमति दी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया और पत्नी की अपील को खारिज कर दिया। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में सोना और शारीरिक संबंधों से इंकार करना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।
पत्नी का बयान और कोर्ट की टिप्पणी-
पत्नी ने कोर्ट में दावा किया कि शादी की रात शारीरिक संबंध बने थे, लेकिन वह इसे साबित नहीं कर पाई। उसने कहा कि पति की आरोपों की वजह से उनकी वैवाहिक जिंदगी प्रभावित हुई। पति ने कहा कि पत्नी ने बेवजह और बिना सबूत के आरोप लगाए, जिससे वह मानसिक रूप से परेशान हो गया। हाईकोर्ट की टिप्पणी में कहा गया कि एक स्वस्थ और सामान्य वैवाहिक जीवन के लिए शारीरिक और मानसिक संबंध महत्वपूर्ण होते हैं। अगर इनकी अनुपस्थिति हो, तो इसे मानसिक क्रूरता माना जा सकता है, जो तलाक की एक वैध वजह बनती है।