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वृक्ष-जीव देव स्वरूप सर्वेक्षण – उद।ती सीतानदी टाइगर रिजर्व मे। वन्यजीवो। की पूजा करने वाले वन आश्रितो। का एक अनूठा सर्वेक्षण
छत्तीसगढ़ वन विभाग की पहल वन्यजीवों की पूजा करने वाले वन आश्रितों का अनूठा सर्वेक्षण
पुलस्त शर्मा मैनपुर – हमारे देश मे प्राचीन काल से ही प्रकृति की पूजा की जाती रही है वृक्ष, वन्यजीव, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु को देवताओ के रूप मे पूजा जाता है आदिवासी और अन्य पारंपरिक वन निवासी समुदायो के बीच वन्यजीव और वन संरक्षण के बारे मे जागरूकता पैदा करने के प्रयास मे छत्तीसगढ़ वन विभाग मध्य प्रदेश स्थित शोधकर्ता और अवैध शिकार विरोधी विशेषज्ञ की मदद से वृक्ष-जीव देव स्वरूप नामक एक सर्वेक्षण किया जा रहा है सर्वेक्षण के माध्यम से जानकारी एकत्रित कर रहा है कि कौन से समुदाय किस पौधे और जंगली जानवर की पूजा करते है उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व (यूएसटीआर) न केवल दूर्लभ और लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियो की एक बड़ी श्रृखला का घर है,
बल्कि विभिन्न पीवीटीजी ( प्रिमिटिव वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स) और अन्य वन निवासी समुदायो। का भी घर है, जिनका वनो और वन्यजीवो को सथायी तरीके से सुरक्षित करने और उनकी पूजा करने का एक लंबा इतिहास है
इसके अलावा यूएसटीआर महाराष्ट्र को ओड़िसा से जोड़ने लिए टाइगर कॉरिडोर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है
वनो और वन्यजीवो के लिए संभावित खतरे
इन समुदायो से बात करने पर यह देखा जा रहा है कि एक समय हुआ करता था जब शीर्ष मांसाहारी वन्यप्राणी (बाघ, तेंदुए) के साथ-साथ शाकाहारी वन्यप्राणी (जंगली भैसा, गौर, हिरण, सांभर, कोटरी आदि) बड़ी संख्या मे थेे, जो वर्तमान मे कम है ब्रिटिस काल और 1970 के दशक से पहले, यह क्षेत्र एक गेम रिजर्व था जिसमे शुल्क के भुगतान पर बाघ (25 रूपये), जंगली भैंसा (200 रूपये), तेंदुए (10 रूपये) सहित जंगली जानवरो के शिकार की अनुमती थी इसके अलावा, जब इसवन अभ्यारण्य को 1974 मे एक अभ्यारण्य और बाद मे 2009 मे। टाइगर रिजर्व के रूप मे। अधिसूचित किया गया. तब यहां बहुत घना जंगल हुआ करता था. रिज़र्व के अंदर सौ से अधिक गाँव स्थित होने के बावजूद, पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित होने के कारण मानव-पशु संघर्ष नगण्य था. लेकिन अवैध शिकार, अतिक्रमण और अवैध कटाई के कारण यह संतुलन बिगड़ गया है. इसके अलावा ओडिशा राज्य के साथ 125 किलोमीटर लंबी छिद्रपूर्ण सीमा ने इन समस्याओं को बढ़ा दिया. वन अपराधों के कारण भविष्य में मानव-पशु संघर्ष बढ़ सकता है, एवं मिट्टी के कटाव बढ़ने और भूजल स्तर के कम होने सम्बन्धी समस्या को जन्म दे सकती है, क्योंकि यूएसटीआर विभिन्न महत्वपूर्ण नदियों जैसे महानदी, सोंदूर, सीतानदी आदि का उद्गम स्थान भी है.
सर्वेक्षण मे मिली दिलचस्प जानकारी
सर्वेक्षण ग्राम जांगड़ा, कुरूभाटा, पायलीखंड, बम्हनीझोला, उदंती, कोयबा, जुगाड़, अमाड, बड़गांव, बंजारीबाहरा, नागेश, करलाझर, देवझरमली, मोतीपानी और साहेबिन कछार में किया गया है. सर्वेक्षण से बहुत दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं, जैसे भुजिया जनजाति की उप जनजाति नागेश “सर्प” को देव स्वरुप मानते है, नेताम समुदाय “कछुआ” को देव स्वरुप मानते है, लोहार- विश्वकर्मा समुदाय “नीलकंठ” (भारतीय रोलर) पक्षी को देव स्वरुप मानते हैं. गाढा-जगत “मोर” को देव स्वरुप मानते हैं. कमर-पहाड़िया “भालू” को देव स्वरुप मानते है, भुंजिया- सोरी “बाघ” की पूजा करते हैं, गोंड-ओटी “गोही- मॉनिटर लिज़ार्ड” को देव स्वरुप मानते है और मेहर-कश्यप “जंगली भैंसा” और “जंगली सूअर” को देव स्वरुप मानते है. केवल जानवरों की ही नहीं बल्कि पेड़-पौधों का भी अपना महत्व है. बरगद, कदंब, साजा, पीपल, आंवला, कुंभी, कसई, बेल, महुआ, वन तुलसी, पलाश, कुरवा (इंद्र जौ) जैसी वृक्ष प्रजातियों की भी पूजा की जाती है.
सर्वेक्षण का प्रभाव
सर्वेक्षण और संबंधित चर्चाए वन आश्रितों के बीच वन्यजीव और वन संरक्षण के प्रति व्यवहारिक परिवर्तन शुरू करने मे सहायक रही है अगले चरण मे इन गांवो मे पूजे जाने वाले वन्यप्राणियों और वृक्षे को चित्रित करने वाली दीवार पेंटिंग बनायी जायेगी पहले से ही चरवाहा सम्मेलन के संगठन ने अवैध लकड़ी की कटाई और अवैध शिकार के मामलों पर जानकारी प्राप्त करने और अपराधियों को पकडने मे सकारात्मक परिणाम देना शुरू कर दिया है जो अन्यथा पैदल गश्त करने वाले कर्मचारियों की कमी और वामपंथी उग्रवाद की उपस्थिति के कारण रिपोर्ट नही की जा सकती थी।