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भगवान का अवतार धर्म की स्थापना और दुष्कृतियों के नाश के लिए-विनय मिश्र

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भगवान का अवतार धर्म की स्थापना और दुष्कृतियों के नाश के लिए-विनय मिश्र

कालिया नाग का मर्दन करने वाले भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जीवन निस्तार के साधन को बाधित करना भी एक अपराध है तुमने अपने विष के प्रभाव से यमुना जल को विषाक्त बना दिया और जिसकी परिणीति यह हुई कि ईश्वर द्वारा प्रद्प्त इस संसाधन से जन मानस को वंचित रहना पड़ा और मेरा यही संकल्प है कि संसार में व्याप्त सभी प्रकार के उपद्रवों व दुष्कृतियोंं का शमन करने धरती पर अवतार लेकर धर्म की पुनर्स्थापना करूंगा उक्त उदगार श्रीमद्भागवत पुराण ज्ञान यज्ञ नवागांव के अवसर पर पंडित विनय मिश्र ने दिए कथा का विस्तार करते हुए पण्डित मिश्र ने कहा कि भगवान का एक नाम पितृ वत्सल कहा गया है उन्होंने राम और कृष्ण रूप में अवतार लेकर संसार के सम्मुख अपनी पितृ वत्सलता के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं मथुरा जा रहे भगवान के दर्शन करने आई गोपियां श्री कृष्ण से कहती हैं हमे अपने कर्तव्यों और संबंधों का बोध है केशव परंतु आपके के लिए हमारे द्वारा थोड़े ही क्षण के लिए किया गया ध्यान पूजन भजन ही सांसारिक जीवन में संघर्ष करने की शक्ति देती है कथा व्यास बतलाते हैं कि श्रीमद्भागवत पुराण में 31वें अध्याय को भगवत का प्राण कहा गया है जिसके भी मन में संताप हो शोक हो मन मलिन हो बोझिल हो वे गोपियों द्वारा की गई भगवान श्री कृष्ण की स्तुति का जरूर परायण करें इससे आपका चित्त तुरंत प्रेम से भर जाएगा आप स्वयं प्रकाशित हो जायेंगे आप एक नवीन ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाएंगे गोपी शब्द एक भाव है गो मतलब इंद्रियां और पी का आशय परमात्मा है यह परस्पर जीव और परमात्मा की कथा है भगवान द्वारा किए गए रासलीला को समझने के लिए भावनात्मक दृष्टि चाहिए वासनात्मक दृष्टि से ना आपको भगवान समझ में आने वाले हैं और न ही गोपियों के भाव भगवत की कथाएं भाव प्रधान हैं इसे निर्मल मन से ही पाया और गया जा सकता है

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