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शिक्षकों को कोर्ट जाने से रोकने के लिए – तानाशाही फरमान जारी किया जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने

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शिक्षकों को कोर्ट जाने से रोकने के लिए –
तानाशाही फरमान जारी किया जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने

– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में तानाशाही भरा फरमान जारी कर दिया है। और फरमान में सभी प्राचार्य एवं खंड शिक्षा अधिकारियों को कड़ाई से कहा गया है कि जो भी शिक्षक न्यायिक प्रकरण के लिए कोर्ट जा रहे हैं ,उन्हें कोर्ट जाने से रोका जाए । ज्ञातव्य हो रायपुर में मंत्रियों की बैठक में न्यायिक प्रकरणों को लेकर चर्चा हुई। विधि मंत्री ने बताया कि बिलासपुर समेत प्रदेश में शिक्षकों के सर्वाधिक मामले हाईकोर्ट में लम्बित है। प्रकरणों का निराकरण जल्द से जल्द किया जाना जरूरी है। जबकि न्यायिक मामलों के निराकरण को लेकर टीम भी काम कर ही है। बावजूद इसके शिक्षा विभाग में न्यायिक प्रकरणों की संख्या दिनो दिन बढती ही जा रही है। मामला सामने आने के बाद शिक्षा विभाग संचालनालय ने विभागीय विधिक टीम पर दबाव बनाया है। इसके बाद जिला शिक्षा विभाग अधिकारियों ने ऊल जुलुल आदेश जारी करना शुरू कर दिया है।शासन के आदेश पर जिला शिक्षा विभाग ने न्यायिक प्रकरणों को सुलझाने का नया रास्ता निकाला है। विभाग ने जिले के सभी प्राचार्य और खण्ड शिक्षा अधिकारियों को धकमी भरा पत्र लिखा है। कार्यालय से जारी गैर संविधानिक तुगलकी फरमान में कहा गया है कि हाईकोर्ट जाने वाले शिक्षकों को प्रकरण वापस करने को लेकर दबाव बनाया जाए। जानकारी के बाद शिक्षकों में गहरा आक्रोश है।

ठोस प्रयास नही हुआ

विदित हो कि हाईकोर्ट में शिक्षकों ने प्रोमोशन, स्थानांतरण समेत दर्जनों मामला दायर किया है। मामले की सुनवाई महीनों और सालों से चल रही है। निश्चित रूप से सुनवाई की गति बहुत धीमी है। बताया जा रहा है कि इसकी मुख्य वजह विभाग की विधिक टीम है। टीम की तरफ से मामले के निराकण को लेकर कोई ठोस प्रयास अब तक नहीं किया गया है। क्योंकि इसमें टीम के सदस्य भी शामिल हैं।
नया फार्मुला के तहत सभी प्राचार्यों और खण्ड शिक्षा अधिकारियों को कहा गया है कि संस्था में कार्यरत ऐसे सभी शिक्षक जिन्होने हाईकोर्ट में प्रकरण दायर किया है। उन पर दबाव डालकर प्रकरण वापस कराया जाए। साथ ही समझौता शपथ पत्र भी लिया जाए। ताकि 9 अप्रैल को होने वाले लोक अदालत में ज्यादा से ज्यादा प्रकरणो को पेश किया जा सके। बाताया जा रहा है कि शिक्षकों के बीच किसी प्रकार की नाराजगी नहीं है।

छोटे कर्मचारियों का शोषण

जिला शिक्षा विभाग से जारी तुगलकी फरमान की जानकारी के बाद शिक्षकों में गहरा आक्रोश है। नाम नहीं छापने की शर्त पर आधा दर्जन शिक्षकों ने बताया कि सवाल अहम् है कि हमें कोर्ट जाने के लिए मजबूर किसने किया। अधिकारियों ने नियम विरूद्ध कदम उठाया..। इसके बाद ही हमने अधिकारो की सुरक्षा के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हम किसी भी सूरत में प्रकरण वापस नहीं लेंगे। जाहिर सी बात है कि हम शपथ पत्र भी नहीं देंगे.. और ना ही समझौता करेंगे।

षणयंत्र रचने वाले ने फिर रचा षड़यंत्र

शिक्षकों ने कहा कि कार्यालय में विधिक टीम है। उसका काम सिर्फ षड़यंत्र रचना है। टीम ने ही हमें कोर्ट जाने के लिए मजबूर किया है। यदि टीम ने ईमानदारी से काम किया होता तो आज हमें कोर्ट से न्याय मिल गया होता। दरअसल टीम ही विवाद की जड़ है। टीम में 6 व्याख्याता, एक प्रिपिंपल और दो बाबू स्तर के कर्मचारी शामिल हैं। सभी लोग स्वार्थ के खूंटे से बंधे हैं।

किस मुंह से जारी किया आदेश

एक शिक्षक ने बताया कि जिला शिक्षा कार्यालय से जिस अधिकारी ने गैर संवैधानिक आदेश जारी किया है। वह खुद ही पिछले चार साल से स्टे लेकर डीईओ कार्यालय मे अंगद की पांव की तरह जमा है। अधिकारी को ही सबसे पहले कोर्ट से अपना प्रकरण वापस लेना होगा। इसी तरह एक अधिकारी और भी है जिसके खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप है। सजा भी मिली है। स्थानांतरण भी हुआ है। वह भी अंगद की पाव की तरह जमा है। उन्हें भी कोर्ट से प्रकरण वापस लेना होगा। सवाल उठता है कि आखिर अधिकारी ने किस मुंह से आदेश जारी किया है। क्या यह फरमान उनके लिए भी है।

हम..प्रकरण वापस नहीं लेंगे

शिक्षकों ने कहा.. हम किसी भी सूरत में अपना प्रकरण वापस नही लेंगे। यदि दबाव बनाया गया तो हम तुगलकी फरमान के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। हमें शपथ पत्र के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। हमें यदि विभाग न्याय देता है तो पत्र वापस ले सकते हैं। बहरहाल हम गैरसंवैधानिक आदेश नहीं मानने जा रहे हैं। सबसे पहले पत्र जारी करने वाले अधिकारी को स्टे प्रक्रिया को वापस लेना होगा।

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