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सनसनीखेज रपट -निष्ठुर कोयला उद्योग ,बेखबर पर्यावरण विभाग खून के आंसू रोते किसान

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सनसनीखेज रपट -निष्ठुर कोयला उद्योग ,बेखबर पर्यावरण विभाग खून के आंसू रोते किसान

– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। घुटकू स्थित घानापार में आगामी 9 मार्च को पारस पावर कोल बेनिफेकशन की जनसुनवाई होगी। करीब तीन साल पहले भी जनसुनवाई हुई थी। लेकिन ग्रामीणों ने इसका विरोध किया था। इसके बाद एक बार फिर जनसुनवाई 9 मार्च को हो रही है। प्रशासन ने जनसुनवाई की तारीख का एलान कर दिया है। जानकारी के बाद घानापार घुटकू समेत आसपास के किसान एकजुट होकर वाशरी के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। ग्रामीणों के आक्रोश की अगुवाई कर रहे युवा नेता दिलीप अग्रवाल ने कहा कि आखिर सरकार और जिला प्रशासन चाहता क्या है? किसानों की सैकड़ों जमीन बंजर हो गयी है। उद्योगपति ने बलात तरीके से जमीन पर कब्जा कर सड़क बनवा लिया है। लेकिन पर्यावरण अधिकारी हर शिकायत पर पूंजीपति के साथ खड़े नजर आते है। 9 मार्च को जनसुनवाई‌ की तारीख आने के बाद स्थानीय लोगों ने विरोध में मुठ्ठी कस कर कमर सीधी कर ली है। ग्रामीणों की अगुवाई कर रहे अग्रवाल ने बताया कि क्या जनसुनवाई कर सरकार किसानों को मारना चाहती है। अथवा सरकार चाहती है कि क्षेत्र के लोग आंदोलन और तोड़फोड़ करें। क्यों पिछली जनसुनवाई को भी जनता ने अस्वीकर कर दिया था। बावजूद इसके वाशरी मालिक ने ना केवल वाशरी का विस्तार किया। बल्कि सुनवाई में जो भी वादा किया था उसे आज तक पूरा नहीं किया गया।

जनसुनवाई का करेंगे विरोध

ग्रामीण किसानों की अगुवाई कर रहे दिलीप अग्रवाल ने बताया कि जनसुनवाई का विरोध करेंगे। ग्रामीणों की सैकड़ों एकड़ जमीन बंजर हो गयी है। पिछली जनसुनवाई में पावर प्लान्ट के संचालक ने वादा किया था कि प्रभावित किसानों को मुआवजा देंगे। स्वास्थ्य केन्द्र खोलेंगे, हरियाली के लिए पौधरोपण करेंगे। साफ पानी और स्कूली शिक्षा का प्रबंध करेंगे। लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ नहीं हुआ। उल्टा पॉवर प्लांट के संचालक ने किसानों को खून के आंसू रोने को मजबूर कर दिया। हमने प्रस्तावित जनसुनवाई को लेकर अपना विरोध प्रशासन के सामने जाहिर कर दिया है। इसके बाद अब हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं बचती है।सड़क नहीं फिर भी प्लान्ट खोला गया। दिलीप अग्रवाल ने बताया कि घानापार स्थित प्लान्ट तक कोई सड़क नहीं है। हां पीएमजीएसवाय की सड़क है। हम जानते है कि पीएमजीएसवाय की सड़क सिर्फ ग्रामीणों के निस्तार के लिए है। मुख्य मार्ग को जोड़ने वाली सड़क है। उद्योग के नजरिए से इस सड़क पर भारी वाहनों का परिवहन नियमानुसार संभव नहीं है। बावजूद इसके यह सब हो रहा है।

पहले भी किया गया विरोध

ग्रामीणों ने जानकारी दी कि सड़क को लेकर पहले भी विरोध किया गया है। इसके बाद सड़क को ठीक ठाक किया गया। चूंकि यह सड़क निस्तारी के लिए है। इसलिए इस पर भारी वाहनों को नहीं चलने दिया जाएगा।

जनता ने निस्तारी के लिए दिया जमीन

बताया गया कि पीएमजीएसवाय की सड़क दरअसल निजी जमीन पर बनी है। घानापार वासियों के लिए दानवीरों ने अपनी जमीन पर खुद निस्तारी के लिए डब्लूबीएम सड़क बनवाया है। जबकि जमीन ना तो दान दी गयी है और ना ही बेची गयी है। उसी डब्लूबीएम पर पीएमजीएसवाय ने सड़क बना दिया है। बिना सोचे समझे एसी में बैठकर अधिकारियों ने निजी जमीन यानी जिस पर पीएमजीएसवाय की सड़क बनी है, उसी पर परिवहन के लिए एनओसी दिया गया। हम इसका विरोध करेंगे।

निकम्मा पर्यावरण विभाग

विरोध करने वाले ग्रामीणों की माने तो पर्यावरण विभाग निकम्मा है। बन्द कमरे में उद्योगपति जैसा चाहते हैं वैसा वह विभाग से करवा लेते हैं। जबकि नियमानुसार हर तीन महीने में प्लान्ट का निरीक्षण किया जाना चाहिए ।और कमियों को दूर करने निर्देश भी दिया जाना चाहिए। लेकिन जबसे शत
वर्तमान पर्यावरण अधिकारी की नियुक्ति हुई है। पर्यावारण विभाग पूरी तरह से निकम्मा हो गया है। कार्यालय में ही बैठकर सारा काम हो जाता है। सवाल पर पूछने पर आरओ सिर्फ अपनी लाचारी बताता है।

सैकड़ों एकड़ जमीन बंजर

पिछली जनसुनवाई में फैसला हुआ था कि पर्यावरण प्रबंधन पर ध्यान दिया जाएगा। लेकिन तीन सालो में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। प्लान्ट का हजारों गैलन पानी किसानों के खेत में अब तक आ चुका है। करीब तीन से चार फिट कोयला खेत में जम चुका है। फसल बुरी तरह से बर्बाद है। किसान अपनी पैदावार को बेच नहीं सकते हैं। प्लान्ट से निकलने वाला कोयला घर अन्दर तक घुस गया है। वनस्पतियां हरे रंग से काले रंग में बदल गयी है।

बेजाकब्जा कर बनाई सड़क

ग्रामीणों ने कहा कि प्लान्ट मालिक ने किसानों की निजी जमीन पर बिना मुआवजा या अनुमति से बेजा कब्जा कर सड़क बना ली है। प्रशासन के सामने एक नहीं दर्जनों बार नाक रगड़ चुके हैं। लेकिन अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है। पैसों के हाथों बिके अधिकारियों को जनसुनवाई में घुसने नहीं दिया जाएगा।

क्या कहते हैं आरओ

अव्यवस्था पर पर्यावरण अधिकारी देवव्रत मिश्रा अपने बातों में उलझ गए। उन्होने बताया कि हर तीन महीने में प्लान्ट का निरीक्षण होता है।

लेकिन तीन महीने में ही खेतो में चार फिट कोयला जमा हो गया क्या…? इस सवाल पर देवव्रत बगलें झांकने लगे। उन्होने बताया कि किसानों ने अभी तक ऐसी कोई शिकायत नहीं की। फिर क्या निरीक्षण किया….? इस सवाल पर आरओ ने बताया कि हमारी टीम गयी थी, खेतों में तीन से चार फिट कोयला पाया गया है। जनसुवाई के दौरान किसान अपनी बात रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्लान्ट में ना तो पानी का छिड़काव होता है। सड़के भी ठीक नहीं है। कोयला से धूल उड़ना पाया गया है। शायद किसानों को मुआवजा दिया गया है… फिर भी वस्तुस्थिति की जानकारी लेंगे।

रिपोर्ट में गलत जानकारी

ग्रामीणों ने बताया कि प्लान्ट संचालक ने ईआईए रिपोर्ट गलत बनाया। प्लान्ट के पास सड़क नहीं है। जो भी सड़क है, वह निर्धारित मानक से घटिया और चौड़ाई भी आधी है। इसके अलावा प्रभावित गांव में आधा दर्जन गांवों को रिपोर्ट में शामिल ही नही किया गया है। सच तो यह है पूंजीपति जो कहेंगे पर्यावरण विभाग और उसके अधिकारी वही बात तोता की तरह दोहराएंगे। कुल मिलाकर विभाग पूरी तरह से निकम्मा है। विभाग के कार्यों में चुस्ती दुरूस्ती लाने के लिए नए खनिज अधिकारी की नियुक्ति होनी चाहिए।

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