
आला नेताओं की खींचतान, गुंडाराज और भ्रष्टाचार ने कांग्रेस की लुटिया डुबोई
– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गये हैं। जो नतीजे आये हैं, वो सबको चौकाने वाले हैं। हार और जीत के खेल में किसी न किस को तो शिकस्त मिलनी ही थी। साल 2018 में जिस जनता ने सत्ता के सिहांसन में कांग्रेस को बैठाया था। उसी जनता ने सत्ता के सिंहासन से कांग्रेस को बेदखल कर दिया है। नतीजों में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया है। इधर बिलासपुर संभाग की बात करें तब भी कहीं-कहीं यह चौंकाने वाले परिणाम के साथ सामने आया है।

बिलासपुर नगर विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी शैलेश पांडे का एक तरफा हार जाना भी लोगों को अचंभित कर गया। हालांकि यह कोई असाधारण बात नहीं है। शायद शैलेश पांडे कहीं-कहीं जनता के मूड का आंकलन करने में मात खा गए। वही कार्यकर्ताओं की कमी पार्टी के मुखिया व नेता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का असहयोग भी उनके चुनाव जीतने में बाधक रहा। वहीं दूसरी और भाजपा प्रत्याशी अमर अग्रवाल की सधी हुई चाल, विधिवत चुनाव की तैयारी के लिए उन्होंने कार्यक्रम तय किए हुए थे। और पूरी योजना के साथ उन्होंने अपना चुनाव प्रचार बहुत पूर्व से ही चालू कर दिया था। साथ ही चुनाव प्रचार में कार्यकर्ताओं की फौज और पूरी ताकत झोंक देने की वजह से उनको चुनाव जीतने में आसानी हुई। कमोबेश शैलेश पांडे जैसा ही कांग्रेस के साथ पूरे राज्य में हुआ।भूपेश बघेल की पूरी की पूरी कैबिनेट साफ हो गई है।आपको बता दें कि कल तक कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को लग रहा था। प्रदेश में कांग्रेस भारी भरकम सीटों के साथ फिर से जीत हासिल कर रही है। तो अचानक ऐसा क्या हुआ जो रातों-रात कांग्रेस अपनी जीती हुई बाजी हार गई। हालांकि अब इस पर कांग्रेस मंथन तो अवश्य करेगी। जिसे जनता पांच साल सुधारने का दोबारा मौका भी नहीं देने वाली है।साल 2018 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस का कद लगातार बढ़ता जा रहा था। जो किसी से छिपा नहीं है। इस दौरान देश-दुनिया और प्रदेश ने कोरोना महामारी को भी देखा। ऐसे में छत्तीसगढ़ में कुछ व्यक्ति को फलने-फूलने का मौका खुलकर दिया जा रहा था। तो वहीं दूसरी ओर पार्टी के आम कार्यकर्ता को कोई भी तजव्वो नहीं दी जा रही थी।आम कार्यकर्ताओं की पूछ परख भी नहीं हो रही थी । आम कार्यकर्ता अंदर ही अंदर अपने आला नेताओं और मंत्रियों से काफी नाराज चल रहा था । आलम यह था कि खुलेआम सार्वजनिक जगहों में बकरे काटे जा रहे थे।अवैध शराब और कोयले मे पचीस रूपये प्रति टन वसूली का खेल-खेला जा रहा था। जिससे हजारों करोड़ों रुपये कमाया गया। विकास के नाम पर सड़कों को खोदा जा रहा था। जो आज तक गड्ढों में तब्दील है। छत्तीसगढ़ में पुरे पांच साल में एक भी विकास कार्य नहीं किया गया। हां यह जरूर है कि बघेल सरकार ने विकास कार्य के ढोल ढपाड़े खूब पीटे।और योजनाएं भी तो खूब बनाई थी लेकिन सारी योजनाएं केवल सतही हीं थी। वजूद में बहुत कम कार्यक्रमों को ईमानदारी से लागू करते देखा गया । पार्टी के अंदर आपसी खींचतान और सत्ता के बंदर बांट ने भी जनता के मनो मस्तिष्क में दुष्प्रभाव डाला। सिर्फ भ्रष्टाचार के खेल को प्रदेश की जनता देख रही थी, सह रही थी, बर्दाश्त कर थी। वाजिब समय का इंतजार कर रही थी। जो समय आने पर वोट डालकर दिखा दिया। केवल चौंतीस सीटों पर सिमट कर रह गई कांग्रेस, प्रदेश भाजपा मनाने लगी है।
इसी कांग्रेस के मंत्रीमंडल को पत्रकारों के सवाल सुनाई नहीं देते थे। उन दिनों को भी कांग्रेस को याद करना होगा। याद करना होगा कांग्रेस भवन में पत्रकारों के साथ किस तरह से चेहरे देखकर व्यवहार किये जाते रहे हैं। पत्रकारों के ऊपर अपराध दर्ज करवा कर किस तरह जेल भेजा गया है ।यह सब जनता देख रही थी। प्रदेश की जनता ने भरोसा किया था। उन भरोसों को तार-तार करने का काम अगर किसी ने किया है। तो भूपेश बघेल की सरकार ने किया है। पीएससी भर्ती का मामला किसी से छिपा नहीं है। महादेव सट्टा से बचने का रास्ता मत ढूढ़िये। जनता ने मुहर लगाकर जता दिया है। अब चाहे कोर्ट का फैसला जो भी आये। ईडी आगे भी अपनी कार्यवाही करती रहेगी पर जनता के दरबार में अगर गुनहगार कोई है। तो इकलौते भूपेश बघेल का अपराधियों और भ्रष्टाचार के प्रति प्रेम, आत्ममुग्धता और अतिआत्मविश्वास है। इसके सिवाय और कोई नहीं है। इसलिए जनता ने अपना फैसला सुना दिया। जिसका खामियाजा कांग्रेस के प्रत्येक प्रत्याशी को भी प्रभावित कर गया और वह चुनाव जीतने से वंचित रह गए।kA
