बिलासपुर अपोलो ने फिर किया चमत्कार
शिशु का किया जटिल सफल ऑपरेशन
सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया (सीडीएच) जैसी बीमारी का अपोलो हॉस्पिटल की टीम ने सफल ऑपरेशन किया। बताया गया कि जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया जब होती है डायाफ्राम में एक छेद होता है। जो पेट से छाती को अलग करने वाली मांसपेशियों की पतली परत होती है। जब गर्भ में भ्रूण के विकास के दौरान यह अंतर बनता है, तो आंत्र, पेट या यकृत भी छाती गुहा में जा सकता है। छाती में इन पेट के अंगों की उपस्थिति फेफड़ों के लिए जगह को सीमित करती है। और इसके परिणामस्वरूप श्वसन संबंधी जटिलताएं हो सकती हैं। क्योंकि सीडीएच फेफड़ों को एक संकुचित अवस्था में बढ़ने के लिए मजबूर करता है। उक्त जानकारी देते हुए डॉक्टर सुशील कुमार एवम डॉक्टर अनुराग ने बताया कि एक बढ़ते भ्रूण में, दस सप्ताह के गर्भ से डायाफ्राम पूरी तरह से बन जाता है। हालांकि सीडीएच के मामलों में, डायाफ्राम के गठन की प्रक्रिया बाधित होती है। एक बार फ्राम में एक छेद मौजूद होने पर, पेट की सामग्री छाती में जा सकती है। इसे हर्नियेशन कहते हैं। पेशेंट बेबी ऑफ़ फिरदौस (उम्र एक दिन) के केस में बच्चे की आतें छाती में जा रही थी।
निम्नलिखित लक्षणों से जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया का संकेत मिलता है:नीली रंग की त्वचा,तेजी से साँस लेने,
हृदय की धड़कन में तेजी, डायाफ्राम मांसपेशियों के कम आंदोलन।
जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया का पता लगाने के लिए जांच
छाती एक्स-रे: छाती गुहा में दोषपूर्ण पेट अंग देखने के लिए
अल्ट्रासाउंड: जन्मजात डायाफ्रामेटिक हर्निया का पता लगाने के लिए डॉ. सुशील कुमार ने बताया की इस बीमारी से मृत्युदर 30% से 60% और कुछ केसेस में 89% तक भी हो सकती है। बेबी ऑफ़ फिरदौस मैं जन्म के साथ ही सांसों की असामान्य तेज गति एवम धड़कन ये दो लक्षण मुख्य रूप से थे। सभी जरूरी जांच करने के उपरांत सर्जरी का निर्णय लिया गया एवम उसे सफलता पूर्वक अंजाम दिया गया। अब बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हैं और भविष्य में भी उसे इस प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी। बच्चे के पिता फिरोज प्रेसवार्ता के दौरान अत्यंत भावुक हो गए और उन्होंने चिकित्सको का विशेष आभार व्यक्त किया।
अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉ. अनिल गुप्ता ने बच्चे के परिजनों को बधाई दी एवम पूरी अपोलो बिलासपुर टीम को इस सफलता के लिए बधाई दी।