बिलासपुर

दि बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया आयोजन में लखन सुबोध ने “देश में फासीवाद की बढ़ती ताकतों के खिलाफ आम्बेडकरवादियों की भूमिका” विषय पर महती प्रबोधन दिया

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दि बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया आयोजन में लखन सुबोध ने “देश में फासीवाद की बढ़ती ताकतों के खिलाफ आम्बेडकरवादियों की भूमिका” विषय पर महती प्रबोधन दिया

कमलेश लवहात्रे ब्यूरो चीफ

बिलासपुर। गुरुघासीदास संस्कृतिक भवन न्यू राजेंद्र नगर के सभागार में BSI द्वारा *बौद्ध सम्मेलन और सम्मान समारोह* का आयोजन संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय *भीमराव यशवंत राव आम्बेडकर* जी (BSI के राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष व राष्ट्रीय अध्यक्ष-समता सैनिक दल एवं बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर के द्वितीय पौत्र) रहे।
इस समारोह में *गुरुघासीदास सेवादार संघ (GSS)* प्रमुख श्री *लखन सुबोध* जी को *”देश में फांसीवाद की बढ़ती ताकतों के खिलाफ आम्बेडकरवादियों की भूमिका”* विषय पर बोलने विशेष अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था।
श्री सुबोध ने कहा कि, स्वतंत्रता आंदोलन के समय कथित *नवजागरण काल से ही फासीवादी ताकतें* अपने मिशन (मनुवादी फासिस्ट राष्ट्र) पर काम करते आ रहे हैं। लेकिन आज उनका मिशन खतरनाक सीमा पर आ गया है। और इसके जिम्मेदार हम सभी वे लोग हैं, जो अपने आम्बेडकरी मिशन को भूलकर, *फासिस्टों द्वारा विशेष रणनीति के तहत लोगों/समुदायों में तोड़फोड़ एवं बांटने की दमन नीति* के शिकार हुए हैं।
नव फासिज्म (मनुवादी फासिस्ट) को तभी हरा सकते हैं, जब मूल फासिज्म को हराने के *इतिहास सूत्र-साझा संघर्ष* को जानेंगे और मानेंगे।
उस समय साम्राज्यवादी देश ब्रिटेन- अमेरिका और साम्यवादी देश सोवियत संघ (अब के रूस) एक दूसरे के विपरीत गुण की शक्तियों ने, *मित्र बनकर फासिज्म से लड़ा।*
क्योंकि फासिज्म के बुनियादी मिशन न सिर्फ देशों को गुलाम बनाना है बल्कि *नस्ल,लिंग,धर्म,राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव* करने का राष्ट्र बनाना है।
मित्र देशों ने इस खतरे को समझा और तभी साझा संघर्ष कर फासिस्ट-नाजीवाद को *परास्त किया* जा सका।
रावण को राम ने नहीं, विभीषण ने मारा। इसके गुणार्थ को समझते हुए, छत्तीसगढ़ में फासिज्म के खतरे को जानना होगा।
SC/ST/धार्मिक अल्पसंख्यकों की बहुमत वाले, छत्तीसगढ़ राज्य में, जब तक वे इन समुदायों में *फासिस्ट फौज का विभीषण* पैदा नहीं करेंगे, वे सफल नहीं हो सकते।
इसलिए वे सबसे पहले फासिस्ट तंत्र को हरा सकने में समर्थ विचार-मिशन *आम्बेडकरी संविधान पर हमला* बोलने के लिए सतनामियों-आदिवासियों में विभीषण बना रहे हैं।
आम लोगों में यह झूठ प्रचारित करने में लगे हैं कि, *सतनाम मिशन व बौद्ध- आम्बेडकरी मिशन दोनों अलग-अलग हैं और दुश्मन है।* जबकि अनेकों ऐतिहासिक प्रमाण है कि, आम्बेडकर साहब और समस्त मनुवादी फसिस्टों के विरोधियों के प्रेरक महात्मा ज्योतिबा फुले और गुरुघासीदास जी एक ही इतिहास अवधि में (1848-49 ई में) एक ने *”सत्यशोधक समाज”* और एक ने *”सतनाम आंदोलन-धर्म”* का मुहिम चलाया।
इस इतिहास को भी जाने कि, जिस दौर में आम्बेडकर साहब और छत्तीसगढ़ में उनके प्रतिनिधि *नकुल ढिढ़ी साहब*, दलितों-प्रताड़ितों के लिए आंदोलनरत थे, उस समय कौन लोग? सतनामियों का *हिंदूकरण- जनेऊवरण* कर *फासिस्टों की टोली के गुलाम चाकर* बना रहे थे। और इन्ही फासिस्टों के दासों के वंशज आज भी *आम्बेडकर साहब को खतरा मानकर* उनके किताबों चित्रों को फेंकने की कुचेष्टा कर रहे हैं।
वामपंथियों ने भी अपनी संपूर्ण शक्ति सिर्फ *रोटी/अर्थवाद के एकांगी पक्ष* में लगाया। उन्होनें *जाति,धर्म,सामाजिक न्याय* के प्रश्न पर संकीर्ण रूख अपनाया। यह संकीर्णता वामपंथियों के लिए आत्मघाती साबित हुआ।
आज जरूरत है, *रोटी और सम्मान* के सवाल को मिलाकर मुकम्मल हथियार से *फासिवाद पर निर्णायक* प्रहार किया जाय।
अगर अब भी ऐसा नही किया गया तो, मनुवादी फासिज्म (कथित हिंदू राष्ट्र) के प्रहार से सभी वामपंथी विचार-संगठन,आम्बेडकरी मिशन से लेकर उदार हिन्दू विचार,गैर हिन्दू धर्म आस्था-विश्वास नष्ट हो जायेगा और एकतंत्रीय तानाशाही राज-धर्म जूल्मी ब्यवस्था कायम होगा।
*गिरौदपुरी मेला में बौद्ध- आम्बेडकरी साहित्य-फोटो को फेंकना-नष्ट करना* और इसके खिलाफ GSS के विरोध के साथ व्यापक तौर पर आम्बेडकरवादियों का साथ नहीं देना, ऐसी ही हमारी कमजोरियों से फासिज्म का खतरा बढ़ रहा है।
आज जरूरत है,सभी समुदाय-वर्ग धर्म (फासिस्ट जमात के उपक्रमो को छोड़कर) को *साझा संघर्ष* का बिगुल बजाना होगा। GSS इसके लिए संघर्षरत था, है और रहेगा।
कार्यक्रम में और भी वक्ताओं ने अपने विचार रखें। बड़ी महती संख्या में आए लोगों ने वक्ताओं को सुना-समझा-समर्थन दिया।

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