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शिक्षा की इबारत लिखने में वामन राव लाखे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का योगदान महत्वपूर्ण

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रायपुर ।  छत्तीसगढ़ अंचल की धरती और राजधानी रायपुर में 1 सितंबर 1932 को स्थापित पंडित वामन राव लाखे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना को आज 90 वर्ष से अधिक पूर्ण होने जा रहे हैं इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम के दिनों से अब तक विद्यालय में पढ़कर निकलने वाले छात्रों ने स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान देने के साथ आज उच्चतर स्तर पर प्राप्त कर प्रदेश और देश का गौरव बढ़ाया है ऐसे में अब इस साला को संचालित करने वाली शिक्षण समिति का उद्देश्य तेजी से अपने सफलतम स्वरूप को प्राप्त करते दिखाई पड़ रहा है आजादी के दीवानों ने तो शिक्षा हासिल की परंतु साथ में गरीब पिछड़े और सर्वहारा वर्ग की बच्चों को शिक्षा देने में यह शिक्षण संस्थान अग्रणी कहा है ऐसे ही उद्देश्यों को चिरस्थाई बनाने के लिए शिक्षण समिति ने महंत लक्ष्मीनारायण दास महाविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की है और उद्देश्यों को पूरा किया जा रहा है अब आइए जानते हैं कि वर्ष 1932 में स्थापित इस शिक्षण समिति के महान उद्देश्यों को पूरा करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और कैसे सफलता हासिल की गई।
शाला भवन का स्वरूप लेने तक का सफर
इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ की धरती पर शिक्षा प्रचारक समिति का जन्म होता है। आजादी के पहले छत्तीसगढ़ अंचल की सबसे प्राचीनतम संस्थाओं में से एक शिक्षा प्रचारक समिति ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से एक विद्यालय की स्थापना का निर्णय किया तत्कालीन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं वरिष्ठ शिक्षाविदों की एक महान योगदान से कार्य शुरू होता है इसमें दिवंगत पं.रविशंकर शुक्ल, पं.वामन बली राव लाखे, पं. लक्ष्मीनारायण दास, पं. शंभू दयाल शुक्ला,  नंद कुमार दानी,  लक्ष्मण राव उदगीरकर ,  मानिक लाल चतुर्वेदी, बैरिस्टर एस.एन.बोस, एवं महंत वैष्णव दास आदि महान विभूतियों के योगदान में 1 सितम्बर 1932 को एक विद्यालय की स्थापना की। इस विद्यालय की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय भावनाओं को आगे बढ़ाना था एक एैसे दौर में जब पूरे देश में स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन चल रहे थे। उस दौर में युवाओं को शिक्षित करने के लिए विद्यालय की स्थापना की गई। स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन से जुड़कर युवा पढ़ाई करने लगे और आंदोलन में भाग लेने लगे।
इस बीच यह प्रश्न आया की विद्यालय के लिए एक उपयुक्त भवन की आवश्यता है। इस दरमियान यह पता लगा की गांधी चौक में चकबंदी का आफिस लगा करता है जहां पर अस्थाई तौर पर शिक्षा दी जा सकती है। बता दे कि इस अस्थाई भवन में चकबंदी के लिए पटवारी भवन में एकत्रित हुआ करते थे। इस भवन को लीज पर लिया गया और विद्यालय की शुरूवात हुई। तब यह भवन कवेलु छप्पर वाला चार इंच दीवार की पार्टीशन लकड़ी का एक ढ़ाचा था जो एक खुले बरामदे के रूप में था परन्तु बाऊंड्रीवॉल नहीं थी। एैसे दौर में एग्लों वर्ना कूलर मिडिल स्कूल की स्थापना हुई। शुरूआत में सातवीं कक्षा तक अध्ययन और अध्यापन की व्यवस्था की गई। संस्था के प्रथम अध्यक्ष बैरिस्टर एस.एन.बोस हुए। तत्तपश्चात् पं. वामनबली राव लाखे अध्यक्ष बनाएं गए। वर्ष 1948 में पं. वामन राव लाखे का स्वर्गवास हो गया। उनके उपरांत महंत लक्ष्मीनारायण दास को अध्यक्ष चुना गया। लेकिन कहीं ना कहीं नवनियुक्त अध्यक्ष महंत लक्ष्मीनारायण दास को यह प्रेरणा मिल रही थी। कि दिवंगत वामन राव लाखे जी की स्मृति को चिरस्थाई बनाएं रखने के लिए इस विद्यालय का नाम एग्लो वर्ना कूलर मिडिल स्कूल से बदलकर पं.वामन बली राव लाखे जी के नाम पर किए जाने का प्रस्ताव रखा गया । जिसे समिति ने स्वीकृति प्रदान कर दी। इस तरह 1959 में विद्यालय का नाम बदल दिया गया और हायर सेकेण्डरी स्कूल के स्वरूप में संचालित होने लगा । अब यह सवाल था कि विद्यालय के जीर्ण शीर्ण शाला भवन को किस तरह नया रूप दिया जाए तब समिति ने संकल्प लिया और 16 अगस्त 1990 को संकल्प पारित करते हुए विद्यालय के नये भवन का निर्माण आरंभ किया गया उस दौर के और अंचल के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं राजनेता नेमीचंद श्रीश्रीमाल समिति के वर्तमान अध्यक्ष गोविंद लाल वोरा सचिव अजय तिवारी उपाध्यक्ष ललित तिवारी वरिष्ठ सदस्य नारायण राव अंबिलकर, अशोक पारख, जी.एस.जब्बल, कृष्ण गोपाल दानी, के योगदान से विद्यालय के निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ।
व्यवसायिक दुकाने बना कर मिलने वाली राशि से नये विद्यालय भवन को तैयार
यह स्वरूप रखा गया भवन के निचले हिस्से में व्यवसायिक दुकाने बना कर मिलने वाली राशि से नये विद्यालय भवन को तैयार किया जाए। इसमें हर्ष का विषय रहा कि कई सामाजिक लोगो ने आर्थिक योगदान लेकर तैयार किया जाए। लेकिन सहयोग नहीं मिला एैसे में समिति के अपने संसाधन से और समिति के सदस्यों व पदाधिकारियों के योगदान और सूझबूझ से नया विद्यालय भवन तैयार हो गया। जिसमें सभागार के साथ 25 कक्षा और एक सेमी सरकूलर हॉल और कार्यालय प्रयोगशालाएं स्वरूप में तैयारी की गई। लेकिन कहा जाता है कि किसी भी संस्था के स्थाई संचालन के लिए स्थाई आय आवश्यक है। शुरूवात में 700 छात्र अध्ययनरत् थे। जिसमें अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग व निर्धन वर्ग के छा़त्रछात्राओं की संख्या अधिक थी इन उन्नयन व विकास में समिति का पूरा योगदान रहता रहा निरतंर बेहतर परीक्षा परिणाम से शाला का विकास होता चला गया और छात्र छात्राओं के सर्वागीण विकास से शाला की प्रसी़द्धी व कीर्ति फैलते चली गई वही शिक्षिकीय योगदान से चर्चा में आने लगा। शिक्षा के उत्रोत्तर विकास में शिक्षा प्रचारक समिति ने वर्ष 1996 में पूर्व अध्यक्ष महंत लक्ष्मीनारायण दास की स्मृति में महंत लक्ष्मीनारायण दास महाविद्यालय की स्थापना की । शुरूवाती वर्षो में मात्र 104 विद्यार्थियों की उपस्थिति के साथ महाविद्यालय में कला पत्रकारिता वाणिज्य बी.बी.ए., और पी.जी.डी.सी.ए. सहित नव अनवेशी कक्षाओं के साथ शिक्षा का संचार होने लगा वर्तमान में महाविद्यालय में तकरीबन 2200 छात्र छात्राएं विभिन्न पाठ्यक्रमों में और विद्यालय में 400 से अधिक छात्र छात्राएं अध्यापित है। साथ ही वामन राव लाखे उच्चतर विद्यालय की एक शाखा हीरापुर में एस.पी.एस. अंग्रेजी माध्यम स्कूल के साथ संचालित की जा रही है। छत्तीसगढ़ की गरीब विद्यार्थियों के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है। वामन राव लाखे स्कूल में महंत लक्ष्मीनारायण दास महाविद्यालय में व्यक्तित्व विकास के साथ कौशल उन्नयन की कक्षाएं संचालित की जाती है। यहां से पढ़कर निकलने वाले विद्यार्थी आज प्रदेश और देश में विभिन्न शासकीय और गैर शासकीय पदों पर सेवाएं दे रहे है। और महाविद्यालय और विद्यालय का नाम रोशन कर रहे है।
80 जी. का प्रमाण पत्र
समिति शिक्षा के प्रचार प्रसार को गति देने के लिए 80 जी. का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की कोशिश में है। साथ ही महंत लक्ष्मीनारायण दास महाविद्यालय का नया भवन आवश्यक सुविधाओं के साथ सेजबहार में निर्माणधीन है।
समिति के अध्यक्ष व सचिव
अध्यक्ष 1. शैलेन्द्र नाथ बोस 1932, वामन बली राव लाखे 1942, महंत लक्ष्मीनारायण दास 1948, श्री गोविंद लाल वोरा 1986, श्री नारायण राव अंबिलकर 1998 श्री मोती लाल त्रिपाठी 2000, श्री आर.पी.शर्मा 2004 श्री सी.एस.परमार 2008, श्री आर.पी.शर्मा 2014 अजय तिवारी 2017 से अब तक ।सचिव – जी.डी.गाडेकर 1932, भानु प्रताप सिंग 1947, शंभूदयााल शुक्ला 1950, के. रामाराव जी नायडू 1969, हरिप्रेम बघेल 1979, अजय तिवारी 1986, श्री अनिल तिवारी 2017 से अब तक

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