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सुगन्धित एवं बायोफोर्टिफाइड धान उत्पादन एवं प्रसंस्करण पर प्रशिक्षण सम्पन्न

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जैव विविधता बनाए रखने के लिए जैविक और प्राकृतिक खेती को अपनायें

आफ़ताब आलम
बलरामपुर / आदिवासी उप-योजनान्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र बलरामपुर द्वारा शंकरगढ़ विकासखण्ड के ग्राम पंचायत उमको एवं घुघरी कला में सुगन्धित एवं बायोफोर्टिफाइड धान उत्पादन एवं प्रसंस्करण पर विस्तृत प्रषिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में शस्य वैज्ञानिक  पी.आर. पैकरा के द्वारा जिले में उगाये जाने वाले स्थानीय एवं सुगन्धित किस्म विषेषकर जीराफुल धान के उत्पादन एवं प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक एवं जैविक खेती करने का सुझाव दिया गया।
प्रशिक्षण में शस्य वैज्ञानिक  पी.आर. पैकरा ने बताया कि आधुनिक कृषि में असंतुलित उर्वरक के उपयोग से सुगंधित किस्म के चावल की खुषबू धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है, साथ ही साथ कृषक स्थानीय किस्म को छोड़कर संकर धान (हाइब्रीड) को प्राथमिकता दे रहे हैं। पुरानी किस्म और जैव विविधता बनाए रखने के लिए जैविक और प्राकृतिक खेती अपनाना होगा तभी गुणवत्तायुक्त उत्पाद भी प्राप्त होगा। आने वाला समय प्राकृतिक खेती का है, यदि हमें अपने समाज को रोग मुक्त रखना है तो प्राकृतिक खेती अपनाना होगा। प्राकृतिक खेती कम लागत और मात्र एक भारतीय देशी गाय के साथ की जा सकती हैं। प्राकृतिक खेती में देषी गाय का महत्वपूर्ण स्थान है किसान एक गाय के साथ 30 एकड़ श्ूमि पर प्राकृतिक खेती आसानी से कर सकते है। प्राकृतिक खेती के तहत तैयार किये जाने वाले उत्पादों में बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत आदि को तैयार करने में देषी गाय के गोबर और गौमूत्र की आवष्यकता पड़ती है। इसी प्रकार दषपर्णी अर्क, नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्नियास्त्र आदि को तैयार करने में देषी गाय का गोबर, गौमूत्र, गुड़, बेसन के अलावा घर में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के अनाज और दानों की आवष्यकता होती है। प्राकृतिक खेती में किसानों की फसलों पर आने वाली लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है साथ ही प्राकृतिक खेती के माध्यम से पैदा होने वाले कृषि उत्पाद रोग और बीमारियों से बच सकते हैं। वर्तमान में कैंसर जैसी प्राणघातक बीमारी इन कीटनाषकों और रासायनिक खेती की वजह से ही हो रही है। इसलिए समय की मांग हैं, कि किसान प्राकृतिक खेती अपनाए। सभी कृषकों को सुगन्धित एवं बायो फोर्टिफाइड धान की खेती करने हेतु आदान सामग्री की जानकारी एवं प्रसंस्करण कर ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग चैनल के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई, जिससे कृषकों के उत्पाद का मूल्य संवर्धन हो सके। कृषक मुख्यतः जीराफूल धान स्थानीय मार्केट में 25-30 रुपये प्रति किलो की दर से बेच दिया करते हैं किंतु अब मिलिंग करने के पश्चात पैकेजिंग एवं ब्रांडिंग के पश्चात 100-120 रुपये प्रति किलो की दर से विक्रय कर सकेंगे।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान  रविशंकर राम, ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, सरपंच, महिला स्व-सहायता समूह के सदस्य एवं ग्रामीण उपस्थित थे।

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