मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय
संगोष्ठी, तृतीय लिंग विमर्शः कल, आज और कल का समापन
तृतीय लिंग व्यक्तियों को भी मिला अभिव्यक्ति का अवसर
रायपुर। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केशरी लाल वर्मा ने कहा है कि तृतीय लिंग विमर्श को बहुत कम विचार का मुद्दा बनाया गया है, लेकिन अभी समय के साथ परिवर्तन हो रहा है और इस विषय पर सोचा जाने लगा है। समाज को चाहिए कि वह तृतीय लिंग व्यक्ति की भावनाओं को समझे और उनके साथ सामान्य व्यवहार करे न कि स्पेसिफिक मानकर अलग व्यवहार करें। समस्या तब आती है जब हम इन्हें अपना नहीं समझते।
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केशरी लाल वर्मा ने यह बातें मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग द्वारा ’तृतीय लिंग विमर्श: कल, आज और कल’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में कहीं। उन्होंने मैट्स परिवार और आयोजन समिति को बधाई देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने ज्वलंत समस्या को समाज के सामने इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से रखा है। समय के साथ अब परिवर्तन हो रहा है और परिवर्तन इस रूप में भी हो रहा है कि संविधान के प्रावधान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय समानता का अधिकार प्रदान कर रहे हैं। मुख्य विषय यह है कि समाज उस रूप में ले। यह सामाजिक मुद्दा है और जब हम विचार करते हैं तो हमारे पास दो पक्ष सामने आते हैं, हम तो दृष्टा है लेकिन वे भोक्ता हैं, दोनों के सोचने की और समझने की अलग-अलग दृष्टि है, वो भोग रहा, महसूस कर रहा है, उपेक्षा का शिकार है। हम तृतीय लिंग व्यक्तियों की भावनाओं को समझें और उनसे सामान्य व्यवहार करें।
इस अवसर पर मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो.डॉ. के.पी. यादव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रीत पुस्तक ’मूर्त से अमूर्त तक प्रो. के.पी. यादव’ नामक का विमोचन भी किया गया । समापन समारोह के सत्र की अध्यक्षता करते हुए पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक डाॅ. एन कुजूर ने कहा कि तब भी हम विमर्श शब्द से स्पष्ट है कि हम पिछड़े और वंचित वर्ग की बात कर रहे हैं जिन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना आवश्यक है। सृष्टिकर्ता ने कोई कमी नहीं की, कमी इनके प्रति हमारी सोच की है। तृतीय लिंग व्यक्ति किसी भी दृष्टि से कम नहीं हैं, वे आज बस्तर फाइटर के रूप में कार्य कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ राज्य ऐसा पहला राज्य है जिसने इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाया है। डाॅ. कुजूर ने शोधार्थियों के शोध पत्रों की समीक्षा करते हुए अपने अनेक विचार रखे और इस संगोष्ठी के आयोजन को तृतीय लिंग समुदाय के विकास की दिशा में सराहनीय प्रयास बताया। इसके पूर्व तृतीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष एवं साहित्यकार, चिंतक डाॅ. शेख शहाबुद्दीन नियाम मोहम्मद शेख ने कहा कि वर्तमान समय मे तृतीय लिंग व्यक्ति समाज में अपनी अस्मिता की मुक्ति के लिए संघर्षरत है। इनकी लड़ाई मानवता की सोच पर आधारित है। तृतीय लिंग समुदाय का संघर्ष उनके अपने समुदाय के हित में है। वे मनुष्य के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।
समापन समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित काॅटन विश्वविद्यालय, गोवाहाटी, असम के हिन्दी विभाग की प्राध्यापक डा. नूरजहाँ रहमातुल्लाह ने कहा कि उभयिलंग समुदाय को भी समाज में नारी और पुरुष की तरह समान अधिकार मिलना चाहिए। प्रकृति हमारे साथ भेदभाव नहीं करती तो हम प्रकृति के खिलाफ जाकर क्यों प्रकृति को ही दुख देते हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार डॉ. जया जादवानी ने कहा कि हमारा समाज अनेक स्तरों पर बंटा हुआ है, ट्रांसजेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है और हमने कभी इनके भीतर झांकने की कोशिश नहीं की, इन्हें जानने की कोशिश नहीं की जिसकी जरूरत काफी समय से थी और आज भी है। इस संगोष्ठी का आयोजन करना इनके सम्मान के लिए एक छोटा सा प्रयास है। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित कल्याण महाविद्यालय, भिलाई के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक तथा साहित्यकार डाॅ. सुधीर शर्मा ने कहा कि साहित्य की समरसता और समन्यवाद ने तृतीय लिंग समुदाय का सम्मान बढ़ाया है। कथा साहित्य में उनकी समस्याओं को जीवंत ढंग से प्रस्तुत करने में महिला कथाकारों की बड़ी भूमिका है। एक स्त्री ही इस समुदाय के दर्द को अनुभव कर सकती है। सेमीनार में प्रस्तुत शोध पत्र इस विषय को वैश्विक चिंतन के धरातल पर प्रस्तुत करते हैं। इसके पूर्व हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी ने अपनी स्वरचित कविता ’जय हो मोर धरती मैया’ का पाठ कर सभी में ऊर्जा का संचार किया। समारोह में छत्तीसगढ़ तृतीय लिंग कल्याण बोर्ड की सदस्य रवीना बरिहा एवं विद्या राजपूत के कार्यों की सराहना की गई एवं उनके योगदान को महत्वपूर्ण बताया गया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य अध्ययनशाला के सहायक प्राध्यापक डाॅ. डिसेंट साहू ने कहा कि मीडिया की यह जवाबदारी बनती है कि तृतीय लिंग समुदाय की समस्याओं को प्रमुखता से स्थान दे। आज भी इस समुदाय को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने और समानता के अधिकार दिलाने के लिए प्रयासों में कमी है।
समापन सत्र में प्रसिद्ध भारत एवं अमेरिका के साहित्यकार, कवि एवं चिंतक डाॅ. प्रेम भारद्वाज, प्रसिद्ध कथाकार डाॅ. लता अग्रवाल, विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ.शेख शहाबुद्दीन नियाम मोहम्मद शेख, मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलपित प्रो. डाॅ. के.पी. यादव, डीन एकेडमिक डाॅ. ज्योति जनस्वामी, देश के प्रथम उभयलिंगी ज्योतिषी भैरवी अमरानी, ट्रांस मेन पॉपी देवनाथ सहित देश के विभिन्न राज्यों के शोधार्थी, विद्यार्थी एवं गणमान्य नागरिक और गरिमा गृह में निवासरत तृतीय लिंग समुदाय के सदस्य काफी संसख्या में उपस्थित थे। समारोह में सभी अतिथियों, सत्र अध्यक्ष एवं श्रेष्ठ शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले शोधार्थियों का सम्मान भी किया गया। समारोह का संचालन सहायक प्राध्यापक डा. सुनीता तिवारी एवं आभार प्रदर्शन सह प्राध्यापक डाॅ. कमलेश गोगिया ने किया। यह जानकारी मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग की विभागध्यक्ष डाॅ. रेशमा अंसारी ने दी।
तृतीय लिंग व्यक्तियों ने साझा किया अपना दर्द
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में तृतीय लिंग समुदाय के सदस्यों को भी अपनी जिंदगी के अनुभव साझा करने का अवसर प्रदान किया गया। उन्होंने अपने जीवन के अनेक संघर्षों अकेलेपन का संकट, परिवार से निकाला जाना, समाज का व्यवहार और दृष्टिकोण को साझा किया। उन्हें अभिव्यक्ति का अवसर दिए जाने पर देश के विभिन्न राज्यों के शोधार्थियों सहित अतिथियों एवं विषय विशेषज्ञों ने सराहना की।
देशभर से आए शोध पत्र
हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. रेशमा अंसारी ने बताया कि इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के अनेक राज्यों से शोधार्थियों एवं प्राध्यापकों ने शोध पत्र प्रेषित किए। संगोष्ठी में 150 से भी ज्यादा शोधार्थियों एवं प्राध्यापकों ने पंजीयन कराया एवं सौ से भी ज्यादा शोध पत्र प्रेषित किए। इससे यह स्पष्ट होता है कि तृतीय लिंग व्यक्तियों के प्रति समाज में परिवर्तन हो रहा है और इस विषय पर देशभर में शोध किया जा रहा है। शोध पत्र प्रस्तुतकर्ताओं में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, असम, बिहार आदि के शोधार्थी प्रमुख रूप से शामिल थे।